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    मां करती थी यतीमखाने में काम, पढ़ाई छोड़ टीन-पतंग बनाने लगे थे एक्टर, पहली फिल्म मिली थी सड़क पर

    Jagdeep हिंदी सिनेमा के बेहतरीन कलाकारों में से एक थे। बड़े पर्दे पर कॉमेडी से दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान लाने वाले अभिनेता ने असल जिंदगी में काफी तकलीफें झेलीं। कभी वह अमीर घराने से ताल्लुक रखा करते थे लेकिन फिर किस्मत ने ऐसी पलटी मारी कि गुजारा करने के लिए उन्हें छोटे-मोटे काम करने पड़े। जानिए वह फिल्मों में कैसे आये...

    By Rinki Tiwari Edited By: Rinki Tiwari Updated: Tue, 18 Jun 2024 03:40 PM (IST)
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    जगदीप का हिंदी सिनेमा में ऐसे शुरू हुआ था अफसाना। फोटो क्रेडिट- इंस्टाग्राम

     एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। यूं तो फिल्मी दुनिया में लोग आने के लिए तरसते हैं, लेकिन एक ऐसा अभिनेता है जो फिल्मों के पास नहीं बल्कि फिल्में उसके पास गईं। यह हैं हिंदी सिनेमा के 'सूरमा' जगदीप (Jagdeep) जिनका असली नाम सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी था। फिल्मों में आने के बाद उन्हें जगदीप नाम मिला और वह इसी नाम से दुनिया भर में मशहूर हो गये। 

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    बीआर चोपड़ा की फिल्म अफसाना से बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट करियर शुरू करने वाले जगदीप को फिल्म ब्रह्मचारी से पॉपुलैरिटी मिली थी। इससे पहले उन्होंने कई फिल्मों में लीड रोल निभाया था, लेकिन ब्रह्मचारी में कॉमेडियन बनकर वह छा गये थे। फिर उनकी झोली में आई शोले (Sholay) जिसने उन्हें बेशुमार शोहरत दी। पुराना मंदिर, अंदाज अपना अपना और सूरमा भोपाली से वह इंडस्ट्री पर राज करने लगे। मगर क्या आपको पता है कि फिल्मों में आने से वह क्या करते थे?

    अमीर घराने से थे जगदीप

    मध्य प्रदेश में 29 मार्च 1939 को जन्मे जगदीप एक अमीर घराने से ताल्लुक रखते थे। मगर भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद उनका सब कुछ उजड़ गया। अपना शहर छोड़ वह मां के साथ बॉम्बे आ गये और मां यतीमखाने में खाना पकाकर उनका पालन-पोषण करती थीं। 

    Jagdeep

    हरिकृत फिल्म्स को दिए एक इंटरव्यू में अभिनेता ने अपनी जर्नी के बारे में बात की थी। उन्होंने कहा था-

    मेरे पिता लॉ में थे, फिर हिंदुस्तान-पाकिस्तान बना। सब तितर-बितर हुआ। बहुत ज्यादा लोग परेशान हुए। मेरे एक भाई बॉम्बे में रहते थे तो मेरी मां मुझे ले आईं जब मैं 6-7 साल का था। इसलिए मैं बॉम्बे आ गया। सब बर्बादी हो गई थी। कोठी, मकान, पैसा, बंगला सब खत्म हो गया था। मां ने यतीमखाने में खाना पकाकर मुझे पाला, जबकि उनके पास चार नौकरियां थीं और मुझे स्कूल में दाखिल किया।

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    टीन बनाते थे जगदीप

    शोले एक्टर ने बताया था कि उन्हें अपनी मां को काम करता देख अच्छा नहीं लगता था। इसीलिए उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ काम करने का फैसला लिया। जगदीप ने कहा था- 

    मुझे ऐसा लगा कि इतने सारे बच्चे सड़कों पर काम कर रहे हैं और मेरी मां इतनी मेहनत कर रही है। मुझे पढ़ाने के लिए यतीमखाने में खाना बना रही है। फिर यह पढ़ाई किस काम की। उससे बेहतर यह है कि मैं भी इन बच्चों की तरह कुछ काम करूं तो कुछ आगे जिंदगी बढ़ेगी।

    मैंने अपनी मां से कहा कि मुझे भी काम करना है तो उन्होंने कहा कि आपको पढ़ना चाहिए। फिर मैंने कहा कि पढ़ाई में ऐसा क्या है, जबकि मैं आपको कोई सुख नहीं दे पा रहा हूं और ना हम दोनों सुखी हैं।

    जगदीप ने जब अपनी मां से कहा कि वह काम करना चाहते हैं तो वह रोने लगीं। बाद में उन्होंने बेटे को काम करने की इजाजत दे दी। फिर अभिनेता ने कारखाने में टीन बनाने का काम किया और पतंगे बनाकर पैसे कमाये।

    ऐसे शुरू हुआ था फिल्मी करियर

    बॉम्बे में बामुश्किल से पेट पालने वाले जगदीप का फिल्मी दुनिया में आने का कोई खास प्लान नहीं था और ना ही उन्होंने कभी इस बारे में सोचा था। मगर किस्मत का लिखा आखिर कौन मिटा सकता है। एक रोज सड़क पर 9 साल के जगदीप को एक शख्स मिला, जिसने उन्हें फिल्म में काम करने का ऑफर दिया। यह फिल्म थी बीआर चोपड़ा की अफसाना। इसके लिए उन्हें 3 रुपये मिलने थे।

    Actor Jagdeep Movies

    वह एक दर्शक के रूप में नजर आने वाले थे। जगदीप ने बताया था कि उसमें एक किरदार था, जिसको उर्दू में डायलॉग बोलना था। वहां मौजूद बच्चों को उर्दू नहीं आती थी, लेकिन उनको आती थी। अब जब उन्हें पता चला कि इस एक्ट के लिए उन्हें 6 रुपये मिलने हैं तो वह तुरंत बोल पड़े कि वह यह कर सकते हैं। फिर क्या। इस तरह वह फिल्मी दुनिया में आ गये।

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