Hindi Diwas 2025: हिंदी बोलने में कोई नहीं पकड़ सकता इन सितारों का हाथ, नए एक्टर्स को लेना चाहिए ये मूल मंत्र
बॉलीवुड को हिंदी सिनेमा भी ही कहा जाता है। जहां कुछ स्टार्स हिंदी शुद्ध होने की वजह से अपनी एक्टिंग से सबको दीवाना बना रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ आज के नए एक्टर्स को हिंदी ढंग से आती ही नहीं है। आज की जनरेशन की हिंदी को लेकर मनोज बाजपेयी सहित सितारों ने क्या कहा चलिए जानते हैं

दीपेश पांडेय, मुंबई। ‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल’ भारतेंदु हरिश्चंद्र की यह पंक्तियां आज के हिंदी सिनेमा के संदर्भ में भी प्रासंगिक लगती हैं। सिनेमा सिर्फ दृश्यों से नहीं, बल्कि संवादों, शब्दों और भावनाओं के माध्यम से दर्शकों के दिल तक पहुंचता है। दर्शक जब हिंदी फिल्में देखते हैं, तो अपेक्षा यही रहती है कि अभिनय में माहिर होने के साथ कलाकार की भाषा पर भी मजबूत पकड़ हो।
हालांकि, वर्तमान में कई कलाकार गर्व से कहते हैं कि मेरी हिंदी कमजोर है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हिंदी सिनेमा में अच्छे काम के लिए हिंदी पर मजबूत पकड़ आवश्यक है? इस विषय पर बातचीत की कुछ कलाकारों के साथ...
हिंदी सीखकर आएं
अभिनेता मनोज बाजपेयी कहते हैं, ‘कायदा तो यही कहता है कि जिस भाषा के सिनेमा में आप काम कर रहे हैं, वो आपको अच्छी तरह से आनी चाहिए। हालांकि, हमारी युवा पीढ़ी यह भाषा अच्छी तरह से सीख नहीं पाई। मैं इसमें उनकी गलती भी नहीं मानता हूं। वो अंग्रेजी माध्यम में पढ़े-लिखे हैं, घर पर भी अंग्रेजी बोलते हैं। ऐसे में उनसे अच्छी हिंदी की अपेक्षा थोड़ा अन्याय होगा।
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हालांकि, जब वे यह निर्णय लेते हैं कि उन्हें हिंदी सिनेमा में आना है, तो एक-दो साल लगाकर हिंदी भाषा अच्छी तरह से सीख लेनी चाहिए। अगर वह हिंदी सिनेमा में आने के बाद भी नहीं सीखते हैं, तो उनसे सवाल जरूर बनता है।मुझे खुशी होती है कि जब मेरी बेटी सही उच्चारण के साथ पढ़ने का अभ्यास करती है। मुझे वह कोशिश देखकर गर्व महसूस होता है। मैं हिंदी पर अपनी अच्छी पकड़ का श्रेय थिएटर और अपने स्कूल में होने वाली कविता प्रतियोगिताओं को देता हूं।’
समझ बढ़ाती है अच्छी हिंदी
अभिनेता अपारशक्ति खुराना हिंदी भाषा को लेकर कहते हैं, ‘हमारी तो फिल्म इंडस्ट्री का नाम ही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री है। भाई (आयुष्मान खुराना) और मेरी हम दोनों की हिंदी अच्छी है। हम हिंदी की अच्छी किताबें पढ़कर, हिंदी अखबार पढ़कर और हिंदी नाटक करते हुए इस पर अपनी अच्छी पकड़ बना सकते हैं। बतौर अभिनेता जब हम कोई भूमिका निभाते हैं तो अपनी भाषा पर अच्छी पकड़ से उस पात्र, उसके हाव भाव और भावनाओं को समझना आसान होता है।
पात्र की कुछ बातें ऐसी भी हो सकती हैं, जिन्हे आप तभी पकड़ पाएंगे, अगर आपकी भाषा पर अच्छी पकड़ हो। हिंदी सिनेमा में ऐसे कई कलाकार हैं, जिनकी हिंदी से मैं बहुत प्रभावित रहा हूं। अपनी पहली ही फिल्म ‘सात उचक्के’ में मैंने मनोज बाजपेयी, अनुपम खेर, विजय राज, के.के. मेनन और अन्नू कपूर जैसे कलाकारों के साथ काम किया। हिंदी पर इन सबकी पकड़ कमाल की है।’
लय पकड़ने में सहायक
‘बागी 4’ और ‘हाउसफुल 4’ फिल्मों के अभिनेता श्रेयस तलपड़े हिंदी भाषा को लेकर कहते हैं, ‘मैं महाराष्ट्रीयन परिवार से हूं। हमारे घर में मराठी भाषा में ही बात की जाती है। मैंने यह सोचा था कि जब कैमरे के सामने हिंदी में बात करूं तो कहीं भी उसमें मराठी की शैली की झलक न दिखे। इसके लिए मैंने अपने आप पर काफी काम किया। एक मराठी फिल्म करते समय मैंने लिखे हुए डायलॉग में कुछ बदलाव कर दिया था। उसके निर्देशक को यह बात खटकी।
उन्होंने मुझसे कहा कि जब लेखक कोई चीज लिखता है तो उसमें एक लय होती है, वह सबसे अच्छे शब्दों को पिरोकर स्क्रिप्ट की रचना करता है। उसमें बदलाव करके आप उस लय को तोड़ देते हैं। हिंदी फिल्मों में भी काम करते समय यह बात मेरे जेहन में रहती है। ऐसे में अगर किसी व्यक्ति को भाषा की अच्छी समझ नहीं है, तो वह उस लय को बरकरार नहीं रख सकता है।’
मां, माटी और मातृभाषा को समर्पित
अभिनेता मनोज जोशी कहते हैं, ‘सही संवाद के लिए भाषा पर पकड़ बहुत जरूरी है। विशेषकर तब जब आप नाटक, सिनेमा या टेलीविजन का हिस्सा हैं। अगर कलाकार को किसी शब्द का मतलब या भाव नहीं पता होंगे, तो वह उस शब्द को अपने अभिनय से कैसे पहुंचाएगा? हिंदी भाषा की अपनी विशेषता है। हिंदी पर अपनी अच्छी पकड़ का श्रेय मैं अपने पिताजी और चाचा जी को दूंगा।
कभी-कभी तो यह देखकर भी दुख होता है कि यहां कुछ कलाकारों को देवनागरी लिपि पढ़ने भी नहीं आती। उन्हें अपनी भाषा की समझ नहीं है और इसे वह सम्मान की बात समझते हैं। मुझे देवनागरी में लिखी स्क्रिप्ट चाहिए होती है। उसे पढ़कर पूरा भाव समझ में आता है। मैं तो अपनी मां, माटी और और मातृभाषा के प्रति समर्पण के सिद्धांत पर यकीन करता हूं।’
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