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    Guru Dutt Birth Anniversary: काम से जल्दी संतुष्ट नहीं होते थे गुरुदत्त, इस फिल्म के न चलने से हो गए थे परेशान

    Updated: Sun, 07 Jul 2024 12:40 PM (IST)

    निर्माता निर्देशक और अभिनेता गुरुदत्त फिल्म इंडस्ट्री का एक जाना-माना नाम रहे हैं। उनकी फिल्में एक्टिंग लोगों को काफी पसंद आती थी। सिर्फ इतना ही नहीं फिल्मों में मौजूद गानों से लेकर फिल्मांकन की कार्यशैली तक उनकी किसी भी चीज को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 9 जुलाई को उनकी 99वीं जन्मतिथि है। ऐसे में चलिए जानते हैं कि उनसे जुड़े कुछ अनसुने किस्सों के बारे में।

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    निर्देशक और अभिनेता गुरुदत्त (Photo Credit: Imdb)

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। भारतीय सिनेमा में गीतों के फिल्मांकन को लेकर हमारे निर्देशकों का समर्पण किसी से कम नहीं रहा। ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’, ‘चौदहवीं का चांद’, ‘साहब बीवी और गुलाम’ जैसी कालजयी फिल्में देने वाले गुरुदत्त की फिल्मों में मौजूद गीतों से लेकर फिल्मांकन की कार्यशैली तक को आप नजरअंदाज नहीं कर पाएंगे। 9 जुलाई, 1925 को उनकी 99वीं जन्मतिथि पर उनकी कार्यशैली और फिल्मों से जुड़ी यादों को ताजा करता आलेख...

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    विविध प्रकार का सिनेमा बनाकर निर्माता, निर्देशक और अभिनेता गुरुदत्त ने अपने नाम की सार्थकता को साबित किया। हालांकि, उनका शुरुआती जीवन काफी संघर्षमय रहा, लेकिन जीवन में कुछ बड़ा करने की चाहत उन्हें लगातार आगे बढ़ने को प्रेरित करती थी। शुरुआत में कुछ फिल्मकारों को असिस्ट करने के बाद फिल्म ‘बाजी’ से बतौर निर्देशक अपने करियर की शुरुआत करने वाले गुरुदत्त की यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल रही।

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    वहीं इसी फिल्म के लिए साहिर लुधियानवी द्वारा लिखित गाना ‘तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले’ की रिकॉर्डिंग के दौरान उन्हें मिली अपनी हमसफर गायिका गीता राय। इस फिल्म के दौरान ही गुरुदत्त की जॉनी वॉकर से भी मुलाकात हुई थी, जो बाद में उनकी कई फिल्मों का हिस्सा बने।

    गुरुदत्त की फिल्मों की खासियत उनके गानों का फिल्मांकन भी होता था। वह अपनी सभी फिल्मों में गानों को इस प्रकार चित्रित करते थे जैसे वे संवाद के ही अंश हो। ‘बाजी’ के बाद गुरुदत्त ने फिर देव आनंद के साथ फिल्म ‘जाल’ बनाई। गुरुदत्त की लिखी यह कहानी एक छोटे से गांव के मछुआरों के जीवन संघर्ष पर थी। इस फिल्म के लिए उन्हें समीक्षकों की भी भरपूर सराहना मिली।

    ‘जाल’ का गाना ‘ये रात ये चांदनी फिर कहां’ में उन्होंने बहुत खूबसूरती से नायिका की मनोदशा दिखाई। गुरुदत्त की मौलिकता ही सभी को पसंद आती थी। उनके गानों की एक खासियत यह भी होती थी कि उनके गानों को पात्रों से अलग नहीं किया जा सकता। फिल्म ‘प्यासा’ में जॉनी वॉकर पर फिल्माया गीत ‘सिर जो तेरा चकराए’ भी इसकी बनाया गया है।

    Photo Credit: Imdb

    गुरुदत्त की एक आदत यह भी थी कि अपने काम से जल्दी संतुष्ट नहीं होते थे। वह अपनी फिल्मों के कई रीटेक लेते थे। उन्होंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी गुरुदत्त फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड के तहत पहली फिल्म ‘आर-पार’ बनाई। यह मुंबई के एक टैक्सी ड्राइवर कालू बिरजू (गुरुदत्त) की कहानी है। गुरुदत्त ने ‘आर-पार’ की दो रील बनाकर फिल्म वितरकों को दिखाईं।

    कुछ वितरकों ने कालू के रूप में गुरुदत्त के अभिनय पर असंतोष जताया। इस पर गुरुदत्त ने उस समय के उभरते सितारे शम्मी कपूर से इस भूमिका को निभाने का आग्रह किया। इन दो रील को देखने के बाद उन्होंने इन्कार कर दिया। उनका मानना था कि गुरुदत्त ही भूमिका के लिए उपयुक्त हैं। उनका सोच सही साबित हुआ। फिल्म प्रदर्शित हुई और सफल रही।

    Photo Credit: Imdb

    इसी तरह फिल्म ‘प्यासा’ को बनाने के दौरान भी उन्होंने कई बदलाव किए। ‘प्यासा’ की कहानी कोलकाता की पृष्ठभूमि में उर्दू शायर विजय के जीवन के आसपास बुनी गई थी, जो समाज में अपनी जगह बनाने के लिए प्रयासरत है। फिल्म का निर्देशन करने के साथ गुरुदत्त ने ही विजय की भूमिका भी अभिनीत की थी। फिल्म में विजय की पूर्व प्रेमिका मीना की भूमिका को माला सिन्हा, जबकि वेश्या गुलाबो का पात्र वहीदा रहमान ने अभिनीत किया।

    हालांकि, पहले मीना की भूमिका के लिए मधुबाला को लिया गया था, जबकि श्याम के लिए जॉनी वॉकर को चुना गया था। श्याम विजय का मौकापरस्त और कुटिल दोस्त होता है। जॉनी वॉकर के साथ कुछ दृश्यों को शूट करने के बाद गुरुदत्त को लगा कि दर्शक अपने चहेते हास्य अभिनेता को नकारात्मक भूमिका में देखना पसंद नहीं करेंगे, तो उन्होंने उस भूमिका के लिए फिर श्याम कपूर को चुना। विजय की भूमिका पहले दिलीप कुमार निभाने वाले थे, लेकिन वह पहले दिन की शूटिंग पर सेट पर नहीं पहुंचे।

    Photo Credit: Imdb

    उस स्थिति में गुरुदत्त ने ही इस धीर-गंभीर पात्र को निभाने का निर्णय लिया। बदलाव यहीं तक सीमित नहीं रहे। फिल्म के अंत को भी बदलकर सुखांत बनाया गया था। इसी तरह पूरे मनोयोग से बनी उनकी फिल्म ‘कागज के फूल’ को उस समय दर्शकों से लेकर समीक्षकों तक की अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली थी। इसे अवसादपूर्ण और असंबद्ध कहानी कहा गया।

    कुछ शहरों में यह फिल्म महज एक सप्ताह चली थी। गुरुदत्त इस झटके से उबर नहीं पाए। वह इस बात से परेशान नहीं थे कि फिल्म नहीं चली। उन्हें तकलीफ इस बात की हुई कि लोग उनकी फिल्म को समझ नहीं पाए। हालांकि बाद में इस फिल्म को क्लासिकल फिल्म का दर्जा मिला, लेकिन इस गुरुदत्त का दिल इस कदर टूटा कि उन्होंने दोबारा निर्देशन न करने का फैसला कर लिया।

    बहरहाल, काम के प्रति समर्पित रहने के साथ गुरुदत्त की नेकदिली के भी किस्से हैं। जब उन्होंने ‘चौदहवीं का चांद’ फिल्म बनाने का फैसला किया, तो उसके निर्देशन की कमान उन्होंने एम. सादिक को सौंपी। त्रिकोणीय प्रेम कहानी पर आधारित इस फिल्म में गुरुदत्त के साथ वहीदा रहमान, रहमान और जॉनी वॉकर प्रमुख भूमिका में थे। सादिक का करियर उन दिनों अच्छा नहीं चल रहा था। उनकी पिछली कुछ फिल्में अच्छा प्रदर्शन करने में असफल रही थी।

    Photo Credit: Imdb

    गुरुदत्त के सहयोगियों ने उन्हें सादिक को न लेने की सलाह दी, लेकिन उन्होंने अनसुना कर दिया। गुरुदत्त का मानना था कि फिल्म की सफलता या असफलता व्यक्ति की प्रतिभा का पैमाना नहीं होती। उस समय सादिक आर्थिक संकट से गुजर रहे थे। उनकी मदद करने के लिए गुरुदत्त ने यह फिल्म उन्हें निर्देशित करने को दी। उनका निर्णय सही साबित हुआ। फिल्म बाक्स आफिस पर सफल रही।

    इस सत्य को नकारा नहीं जा सकता कि फिल्मों में तमाम प्रयोग करने को लेकर गुरुदत्त अपनी फिल्मों के जरिए सदियों तक गुरु के तौर पर याद रखे जाएंगे।

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