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ये उन दिनों की बात है: 'बचपन' से ही 'बूढ़े' रहे गुलज़ार

गुलज़ार ने कहा कि आज के दौर में फिल्म मेकर गजब के साहसी हैं और अपनी बात को खुल कर कहने से कभी हिचकिचाते नहीं हैं।

By Manoj KhadilkarEdited By: Published: Tue, 22 May 2018 01:21 PM (IST)Updated: Wed, 23 May 2018 11:59 AM (IST)
ये उन दिनों की बात है: 'बचपन' से ही 'बूढ़े' रहे गुलज़ार
ये उन दिनों की बात है: 'बचपन' से ही 'बूढ़े' रहे गुलज़ार

मुंबई। हिंदी सिनेमा को अपनी कलम के जरिये कई बेहतरीन कहानियां और गीत देने वाले गुलज़ार का मानना है कि वो हमेशा से ही बूढ़े रहे और इस कारण वो कभी भी एक लड़का-लड़की के मिलने और उनके प्यार के फार्मूले की तरफ़ आकर्षित नहीं हुए।

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दिल्ली में 13वें हेबिटाट फिल्म फेस्टिवल में ‘कल आज और कल’ परिचर्चा में गुलज़ार ने कहा कि एक बुजुर्ग आदमी हमेशा अपनी चेतना की गहराई में जा कर सोचता है। गुलज़ार को हमेशा बुजुर्गियत ही भाई है। रेखा, नसीरुद्दीन शाह और अनुराधा पटेल स्टारर फिल्म इज़ाजत का उदाहरण देते हुए गुलज़ार कहते हैं “ इस फिल्म को ही देख लीजिए। लगता है मैं हमेशा ही बूढ़ा रहा। लोग इस फिल्म में विवाहित महिला की कहानी देख कर उलझन में थे और फिल्म बॉक्स ऑफ़िस पर लुढ़क गई। लेकिन इससे मेरी सोच में फ़र्क नहीं था। मैंने हमेशा ही मेच्योर आदमी और औरत की कहानी को तवज्जो दी है”। गुलज़ार ने कहा “ अब आंधी को ही ले लीजिए। पहली बार किसी राजनेता (इंदिरा गांधी) के किरदार को फिल्म में उतारा गया, जिसे सुचित्रा सेन ने निभाया था। अगर आप उस फिल्म को ध्यान में देखे तो पाएंगे कि सुचित्रा के किरदार के अलावा उस फिल्म में कोई भी और महिला किरदार नहीं था। मैंने फिल्म की कहानी को ऐसा ही रहा था कि उसी महिला पात्र की कहानी कही जाए”।

गुलज़ार ने कहा कि आज के दौर में फिल्म मेकर गजब के साहसी हैं और अपनी बात को खुल कर कहने से कभी हिचकिचाते नहीं हैं। समारोह में विशाल भारद्वाज और राकेश ओमप्रकाश मेहरा की मौजूदगी में गुलज़ार ने कहा अपने ज़माने में श्याम बेनेगल, गोविन्द निहलानी और बलराज सहानी जैसे फिल्मकारों में कुछ कहने का बेचैनी थी। इसी बेचैनी से ही क्रिएटिव लोगों का जन्म होता है। फिर चाहे वो सिनेमा में हो या साहित्य में। उन्होंने कहा कि उस समय भी सेंसर और सरकार की सख्ती थी। आज भी है लेकिन आज का आदमी अपनी आवाज़ उठाता है। मैंने विशाल भारद्वाज के साथ मटरू की बिजली का मंडोला में काम किया था। ये फिल्म भू-माफ़िया पर थी। ये इस जनरेशन की अभिव्यक्ति है। पहले तो मैं ही अकेला चलता था लेकिन अब आज की जनरेशन के साथ उनका हाथ पकड़ता हूं। आज का सिनेमा एक्सप्रेशन का सिनेमा है। जमीन कब्ज़ा करने की कहानी पर एक म्यूजिकल फिल्म बनाना महान काम ही है।

मेरे अपने, आंधी, माचिस और अंगूर सहित कई बेहतरीन फिल्में बनाने वाले गुलज़ार ने आगे कहा – “ जब मैं फिल्मों में आया तो सिनेमा ने कहानियाँ बतानी शुरू ही की थीं। मैं बहुत ही वाचाल था। भारी भरकम डायलॉग लिखा करता था। लेकिन आज की जनरेशन विजुवल्स पर भरोसा करती हैं। चाहती हैं कि दृश्य के जरिये अपनी बात उन तक पहुंचाई जाय ।

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