देविका रानी ने Dilip Kumar का नाम बदलने के लिए रखे थे तीन सुझाव, फिर भी एक ही नाम पर क्यों बनी सहमति?
इंडियन सिनेमा की फर्स्ट लेडी कहलाने वाली देविका रानी (Devika Rani) बेहद बिंदासबेबाक और अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने वाली महिला थीं। उन्होंने उस जमाने में हिमांशु राय से प्रेम विवाह किया था। भारत में फिल्म स्टूडियो बॉम्बे टाकीज की नींव रखने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। उन्होंने अशोक कुमार के अंदर फिल्म अभिनेता बनने की संभावनाएं देखीं और उन्हें लॉन्च किया।
अनंत विजय, मुंबई। जब महिलाएं घर की चहारदीवारी में भी घूंघट से चेहरा छुपाए रहती थीं, उस दौर में देविका रानी ने चलचित्रों में काम करके अदम्य साहस का प्रदर्शन किया था। भारत की पहली महिला सुपरस्टार देविका रानी की जन्मतिथि (30 मार्च 1908) पर अनंत विजय का आलेख...
मां ने दी थी लड़कियों से दूर रहने की हिदायत
कौन जानता था कि 1933 के उत्तरार्ध में लंदन से भारत आने वाले दो युवा भारतीय हिंदी फिल्मों की दिशा बदलने वाले साबित होंगे। ये दोनों थे हिमांशु राय और देविका रानी। हिमांशु राय और देविका रानी ने ना केवल भारत में फिल्म स्टूडियो की नींव रखी बल्कि उनको व्यावसायिक तरीके से चलाया भी। बॉम्बे टाकीज ने हिंदी फिल्मों को कई चमकदार सितारे दिए।
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एक तरफ जहां हिमांशु राय ने अशोक कुमार के अंदर फिल्म अभिनेता बनने की संभावनाएं देखीं। उनको अपनी फिल्म में काम देकर सफलतम अभिनेताओं में से एक बनने का अवसर प्रदान किया। वो अशोक कुमार, जिनकी मां ने उनको लड़कियों से दूर रहने की हिदायत दी थी, वो अशोक कुमार, जो अपनी पहली फिल्म में अपनी अभिनेत्री के गले में हार नहीं पहना पा रहे थे क्योंकि वो इस बात पर नर्वस थे कि हीरोइन उनको छू न दे। इसी तरह से देविका रानी ने हिंदी फिल्म को दिलीप कुमार जैसा अभिनेता दिया।
नाम के साथ बदल दी किस्मत
हिमांशु राय के निधन के बाद देविका रानी बॉम्बे टाकीज चला रही थीं। फिल्म ‘किस्मत’ को लेकर अशोक कुमार और अमिय चक्रवर्ती में विवाद हुआ और अशोक ने बॉम्बे टाकीज छोड़ दिया। यह बॉम्बे टाकीज के लिए बड़ा झटका था। जब अशोक कुमार बॉम्बे टाकीज छोड़ गए तो देविका रानी किसी नए हीरो की खोज में जुट गईं। कई जगह इस बात की चर्चा मिलती है कि देविका रानी ने दिलीप कुमार को नैनीताल के फल मार्केट में देखा। वहीं उनको मुंबई में मिलने को कहा। परंतु दिलीप कुमार आत्मकथा, ‘द सब्सटेंस एंड द शैडो’ में अलग ही कहानी बताते हैं।
क्या है इसकी दूसरी कहानी?
एक दिन बॉम्बे (अब मुंबई) के चर्चगेट पर उनकी भेंट मनोविज्ञानी डा. मसानी से होती है। बातों-बातों में डा. मसानी ने बताया कि वो बॉम्बे टाकीज की मालकिन से मिलने जा रहे हैं। दिलीप कुमार, जो तब यूसुफ खान थे, डा. मसानी के साथ हो लिए। डा. मसानी ने यूसुफ खान का परिचय देविका रानी से करवाया और साथ लाने का उद्देश्य बताया। देविका रानी ने यूसुफ से पूछा कि क्या आप उर्दू जानते हैं? फिर पूछा कि क्या आप सिगरेट पीते हैं? और अगला प्रश्न था कि क्या कभी अभिनय किया है?
क्या तय हुआ था पहला वेतन?
सभी उत्तर सुनने के बाद देविका रानी ने पूछा कि क्या आपअभिनय करना चाहते हैं? जवाब आया हां। देविका रानी ने यूसुफ खान के सामने 1,250 प्रतिमाह के वेतन का प्रस्ताव दे दिया। उनको इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उन्हें इतना वेतन मिलेगा। ये वो समय था जब हीरो मासिक वेतन पर काम करते थे। अगले दिन जब वो काम पर पहुंचे तो देविका रानी ने युसूफ खान का नाम बदलने का प्रस्ताव दिया। उन्होंने यूसुफ खान के सामने तीन नाम रखे- जहांगीर,वासुदेव और दिलीप कुमार। देविका रानी को दिलीप कुमार नाम पसंद था क्योंकि ये अशोक कुमार से मिलता-जुलता था। जाहिर सी बात है कि दिलीप कुमार के नाम पर ही सहमति बनी।
सबने सराहा अतुलनीय अभिनय
लंदन से भारत लौटने के तीन साल बाद देविका रानी ने अशोक कुमार के साथ ‘अछूत कन्या’ फिल्म की। स्वाधीनता संग्राम के इस दौर में अस्पृश्यता पर महात्मा गांधी निरंतर प्रहार कर रहे थे। ऐसे समय में ‘अछूत कन्या’ फिल्म ने इस विमर्श को बल दिया। माना जाता है कि देविका रानी के अभिनय के कारण ये फिल्म बेहद सफल रही थी। आज भी इसको क्लासिक फिल्म माना जाता है। कुछ फिल्म समीक्षकों ने तो देविका रानी के इस रोल की तुलना ग्रेटा गार्बो के अभिनय से की थी। ये अकारण नहीं है कि देविका रानी को हिंदी फिल्मों में वही रुतबा हासिल है जो हालीवुड में ग्रेटा गार्बो का है।
इस फिल्म की एक और विशेषता रही है। इसमें देविका रानी और अशोक कुमार ने गाना भी गाया है। इन्होंने अलग-अलग भी अपने गाने गाए व देविका रानी और अशोक कुमार का एक युगल गीत भी है-‘मैं बन की चिड़ियां...’। इस गाने की रिकार्डिंग के समय काफी दिक्कत हुई थी, क्योंकि अशोक कुमार और देविका रानी को जिस तरह से म्यूजिक डायरेक्टर सरस्वती देवी गवाना चाहती थीं, वो हो नहीं पा रहा था।
हर चुनौती की रानी
1937 में देविका रानी ने एक और फिल्म में अभिनय किया था जिसका नाम है ‘सावित्री’। इस फिल्म में भी देविका रानी का अभिनय उत्कृष्ट रहा। सावित्री और सत्यवान की कहानी हमारे देश के लोक में व्याप्त है। उस रोल को पर्दे पर सफलतापूर्वक निभाना बड़ी चुनौती थी। देविका ने वो चुनौती स्वीकार की। 1933 में पहली फिल्म ‘कर्मा’ से आरंभ करें तो देविका रानी के खाते में 15 फिल्में हैं, लेकिन बांबे टाकीज में हिमांशु राय के साथ उनका काम बहुत महत्वपूर्ण है। देविका रानी स्वभाव से बेहद बिंदास और खुले विचारों की थीं। हिमांशु राय से प्रेम विवाह किया।
बॉम्बे टाकीज के दौरान एक साथी कलाकार के साथ उनका नाम जुड़ा। हिमांशु के निधन के बाद उन्होंने विवाह किया और कुछ समय तक बॉम्बे टाकीज को चलाया। उसके बाद कुछ दिनों तक मनाली में रहीं और फिर बेंगलुरू के पास अपने फार्म हाउस में जीवन बिताया। जब दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की स्थापना हुई तो पहले पुरस्कार के लिए देविका रानी का चयन हुआ। भारत सरकार ने उनको पद्मश्री से भी अलंकृत किया!
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