Pandit Ravi Shankar जिनसे संगीत सीखने विदेश से भेष बदलकर आया था गिटारिस्ट, डांस छोड़कर बने थे सितार वादक
पंडित रविशंकर का जन्म बनारस में साल 1920 को अप्रैल महीने में हुआ था। उनके पिता बनारस के एक नामी वकील थे लेकिन उनका अपने परिवार के साथ काफी कम संपर्क रहा। एक सितारवादक से पहले वो एक शास्त्रीय नर्तक थे जिन्होंने यूरोप में अपनी एक नृत्य कंपनी बनाई थी। उनकी पुण्यतिथि पर जानिए रविशंकर से जुड़े कुछ रोचक किस्से।

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। सितार वादक के बारे में अगर कभी भी सोचेंगे तो सबसे पहले नाम आता है पंडित रविशंकर का। रविशंकर का जन्म 7 अप्रैल, 1920 को वाराणसी में हुआ था। उन्होंने अपनी युवावस्था अपने भाई उदय की नृत्य मंडली के सदस्य के रूप में पूरे यूरोप और भारत में प्रदर्शन करते हुए बिताई। इस वजह से उन्हें भारत का पहला अंतरराष्ट्रीय संगीतज्ञ कहा जाता है। उन्होंने सितार को भारत से निकालकर विश्व मंच पर पहुंचाया और पहचान दिलाई।
लेकिन क्या आपको पता है कि संगीत सीखने से पहले रविशंकर जाने माने डांसर थे। उन्होंने 1938 में प्रसिद्ध दरबारी संगीतकार उस्ताद अलाउद्दीन खान से सितार वादन सीखने के लिए नृत्य छोड़ दिया। इसी हफ्ते उनकी 12वीं पुण्यतिथि है। 11 दिसंबर 2012 को उनका निधन हो गया था। इस मौके पर जानेंगे पंडित रविशंकर से जुड़े कुछ रोचक किस्सें।
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क्यों छोड़ा संगीत
रविशंकर के भाई उदय ने एक बार मैहर घराने के अलाउद्दीन खां साहब का संगीत सुना था। खां को वो अपने साथ यूरोप टूर पर ले जाने के लिए तैयार हो गए। इस टूर पर रविशंकर ने उनसे बहुत कुछ सीखा और आगे भी सीखने की इच्छा जताई। लेकिन मैहर के महाराजा ने एक शर्त रख दी। उन्होंने कहा कि वो उन्हें सितार तभी सिखाएंगे, जब वो नाचना पूरी तरह से बंद कर देंगे।
बीटल्स बैंड के गिटारिस्ट को दी संगीत की शिक्षा
1960 का दशक आते आते विश्व स्तर पर रविशंकर का बड़ा नाम हो गया था। मशहूर बीटल्स बैंड भी उनके संगीत का दीवाना था। बैंड के गिटारिस्ट जॉर्ज हैरिसन रविशंकर के सितार वादन से बहुत प्रभावित थे। वे उनसे सितार सीखने के लिए भारत आए। उनकी इस भारत यात्रा को लेकर रविशंकर ने सलाह दी थी कि आप भेष बदलकर आइएगा ताकि आपको लोग पहचान न सके। संगीत सिखाने के लिए रविशंकर,हैरिसन को लेकर श्रीनगर गए, वहां वे हाऊसबोट में रहकर उन्हें सितार सिखाते थे।
बनाई दूरदर्शन की सिग्नेचर ट्यून
इसके बाद पंडित रविशंकर ने बीटल्स के साथ कई परफॉर्मेंस भी दीं। साल 1971 में बांग्लादेश में हैरिसन के साथ चैरिटी के लिए शो का आयोजन भी किया था। पंडित रविशंकर आकाशवाणी से भी जुड़े थे। जब महात्मा गांधी का निधन हुआ तो उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए रविशंकर से बिना तबले की संगीत के सितार बजाने के लिए कहा गया था। तब रविशंकर ने गा, नि, धा राग बजाई। इसके लिए उन्होंने तीसरे, सातवें और छठें नोट का इस्तेमाल किया था। इस राग को उन्होंने मोहनकौंस नाम दिया था। क्योंकि इस राग से गांधी के नाम के सुर निकले थे। उन्होंने ही दूरदर्शन की सिग्नेचर ट्यून बनाई थी।
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