दीपेश पांडेय, मुंबई। Varun Dhawan On Actors Fees: पिछले कुछ समय से बाक्स आफिस पर हिंदी सिनेमा की चमक फीकी रहने के बावजूद वरुण धवन की फिल्में 'जुगजुग जीयो' व 'भेड़िया' दर्शकों को सिनेमाघरों में लाने में सफल रहीं। जी सिने अवार्ड-2023 की ट्राफी के अनावरण के बाद दिए साक्षात्कार में वरुण ने हिंदी सिनेमा में परिवर्तन की आवश्यकता और आगामी प्रोजेक्ट्स पर बात की दीपेश पांडेय से...
बतौर कलाकार पुरस्कार आपके लिए क्या महत्व रखते हैं?
मेरे हिसाब से अवार्ड्स आपको प्रशंसकों से जोड़कर रखते हैं। अगर आपका साल अच्छा रहता है, कोई फिल्म अच्छी रहती है, तो प्रशंसक चाहते हैं कि आप अवार्ड भी जीतें। कभी-कभी कोई फिल्म बाक्स आफिस पर नहीं चल पाती, लेकिन जब उसे अवार्ड समारोह में पहचान मिलती है तो टीम का उत्साहवर्धन होता है। फिर लोग उन्हें टीवी या डिजिटल प्लेटफार्म पर देखते हैं। अच्छी फिल्मों के लिए अवार्ड्स बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।
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क्या फिल्मों की कार्यशैली में बदलाव या पुनर्विचार की आवश्यकता है?
यह शत प्रतिशत सही है कि पिछले साल ने हमें परिवर्तन की आवश्यकता का अनुभव कराया। 'जुगजुग जीयो' और 'भेड़िया' ने सिनेमाघरों में अच्छा प्रदर्शन किया। सफल रहीं, लेकिन वहां तक पहुंचने में हमें बहुत मेहनत लगी। तो हमें इस विषय में सोचने की आवश्यकता है कि अगर हमें अच्छी और मनोरंजक फिल्म बनानी है तो क्या करना चाहिए। फिलहाल तो मैं सिर्फ मसाला फिल्में करने के लिए उत्सुक हूं। मेरी उत्सुकता इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि पिछले कुछ समय से मैंने ऐसी फिल्में ज्यादा की नहीं हैं।
मसाला फिल्मों के बीच आप 'बदलापुर' और 'अक्टूबर' भी कर लेते हैं...
मुझे लगता है कि अब 'बदलापुर' और 'अक्टूबर' जैसी फिल्मेंिसनेमाघर के लिए बनाना मुश्किल है। आज लोग सिनेमाघर के लिए उस तरह की स्क्रिप्ट नहीं लिख रहे। अगर आपके साथ श्रीराम राघवन और शूजित सरकार जैसे निर्देशक हों, तो निश्चित तौर पर आप ऐसी फिल्में कर सकते हैं। हालांकि वे भी हर बार ऐसी फिल्में नहीं बनाते। मुझे लगता है कि आज के दौर मेंिसनेमाघर के लिए 'बदलापुर' और 'अक्टूबर' जैसी फिल्में करना मुश्किल है। निर्माता करण जौहर ने कलाकारों के ज्यादा फीस लेने और उस हिसाब से दर्शकों की भीड़ न जुटा पाने की शिकायत की थी।
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क्या फीस के मामले में कलाकारों को संवेदनशील होना चाहिए?
जो भी फिल्में बनती हैं, उसमें सबसे ज्यादा निर्देशक और निर्माता का हाथ होता है। कलाकार को ध्यान में रखकर बजट उनको ही तय करना होता है। पैसे देने वाला तो निर्माता ही होता है, तो काटने वाला भी वही होना चाहिए। मुझे लगता है हमारी इंडस्ट्री में इतने बेहतरीन निर्माता हैं, उन्हें पता है कि इससे कैसे बेहतर तरीके से निपटना है। मुझे पक्का विश्वास है कि अगर पटकथा अच्छी है, तो कलाकार फीस को लेकर भी नरमी बरतेंगे।
सिटाडेल इंडिया का कैसा अनुभव रहा
वेब सीरीज 'सिटाडेल इंडिया' से डिजिटल प्लेटफार्म पर कदम रख रहे हैं, उस प्लेटफार्म का कैसा अनुभव रहा? जहां तक सिटाडेल इंडिया की बात है, तो वह रूसो ब्रदर्स ('एवेंजर्स एंडगेम' के निर्देशक) के प्रोडक्शन में बन रही है। राज एंड डीके (निर्देशक जोड़ी राज निदिमोरू और कृष्णा डीके) उसे निर्देशित कर रहे हैं। फिलहाल तय अनुबंध के अनुसार, मैं इस शो के बारे में ज्यादा नहीं बता सकता। अभी उसकी शूटिंग जारी है। शूटिंग का अनुभव अभी तक तो बहुत अच्छा रहा है। हम इस शो को फिल्म के जैसे ही शूट कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि जैसे कोई बहुत बड़ी फिल्म बन रही हो। शायद मेरे जीवन की सबसे बड़ी फिल्म बन रही है। इससे ज्यादा मैं इस पर टिप्पणी नहीं कर सकता।
क्या आगे हालीवुड या अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में भी जाने की योजना है?
इस बारे में आगे देखते हैं। अभी कोई योजना तो नहीं है, फिलहाल मैं अपने काम का आनंद ले रहा हूं। मेरे पास जो भी काम आ रहा है, उस पर ध्यान दे रहा हूं। अभी आगे निर्देशक नितेश तिवारी की 'बवाल' फिल्म आएगी।