आशिकी सिखाने वाली अभिनेत्री अनु अग्रवाल को आज भूल गए सब, 50 की उम्र में दिखती हैं ऐसी
आज अनु पूरी तरह से ठीक हैं, लेकिन बॉलीवुड से उन्होंने अब अपना नाता पूरी तरह से तोड़ लिया है। अब वह बिहार के मुंगेर जिले में अकेली ही रहती हैं और लोगों को योग सिखाती हैं। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति भी दान कर दी है!
मुंबई। 11 जनवरी को पूर्व अभिनेत्री अनु अग्रवाल का बर्थडे है। आज अनु को समय ने भुला दिया है लेकिन उनकी ज़िंदगी में एक दौर ऐसा भी आया था जब वो महेश भट्ट की फ़िल्म आशिकी से रातों-रात स्टार बन गयी थीं। 50 वर्षीय अभिनेत्री अनु अग्रवाल की कहानी वाकई में पूरी फ़िल्मी है!
‘मैं दुनिया भुला दूंगा तेरी चाहत में...’ उन्हें देख कर कभी यह गीत ज़माने के होंठों पर तैरा करते पर आज इस दुनिया ने उन्हें भुला दिया है। शोहरत की बुलंदी से गुमनामी तक का उनका सफर बेहद ही दर्दनाक है। लेकिन, समय से उनकी लड़ाई हर किसी को प्रेरित करती हैं और खुद को संभाल लेने के लिए उनकी मिसाल दी जाती है! कहते हैं, 1990 में आई फ़िल्म ‘आशिकी’ ने लोगों को प्यार करने का एक नया अंदाज़ सिखाया था। आज भी उस फ़िल्म के गीत चाहे वो ‘मैं दुनिया भुला दूंगा तेरी चाहत में’ हो या ‘धीरे-धीरे से मेरी ज़िंदगी में आना’ इन्हें सुनते ही हम यादों में चले जाते हैं। इन गीतों से घर-घर में पहचाने बनाने वाली अभिनेत्री अनु अग्रवाल की याद आयी कभी आपको? आइये हम आपको बताते हैं कि 90 के दशक में अपनी पहली ही फ़िल्म से लोकप्रियता के शिखर पर जा बैठी अनु आखिर आज क्या कर रहीं हैं? लेकिन, उससे पहले देखिये अनु आज कैसी दिखती हैं! यह तस्वीर तब की है जब साल 2017 में महेश भट्ट के बुलावे पर वो मुंबई आई थीं!
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11 जनवरी 1969 को दिल्ली में पैदा हुई अनु अग्रवाल उस समय दिल्ली विश्वविद्यालय से समाज-शास्त्र की पढ़ाई कर रही थीं, जब दिग्गज फ़िल्मकार महेश भट्ट ने उन्हें अपनी आने वाली म्यूजिकल फ़िल्म ‘आशिकी’ में पहला ब्रेक दिया। यह फ़िल्म ज़बरदस्त हिट साबित हुई और सिर्फ 21 साल की उम्र में एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने वाली अनु ने पहली ही फ़िल्म से अपनी मासूमियत, संजीदगी और बहेतरीन अदाकारी से लोगों को अपना मुरीद बना लिया। लेकिन, आशिकी से मिले स्टारडम को वो बहुत दिनों तक कायम नहीं रख सकीं और उसके बाद उनकी एक के बाद एक फ़िल्में जैसे ‘गजब तमाशा’, ‘खलनायिका’, ‘किंग अंकल’, ‘कन्यादान’ और ‘रिटर्न टू ज्वेल थीफ़’ बुरी तरह फ्लॉप हुईं! इस बीच उन्होंने एक तमिल फ़िल्म ‘थिरुदा-थिरुदा’ में भी काम किया। यहां तक अनु ने एक शॉर्ट फ़िल्म ‘द क्लाऊड डोर’ भी की लेकिन, कुछ भी उनके फेवर में नहीं रहा!
अब तक अनु को जैसे इसका अहसास हो गया था कि वो फ़िल्मों के लिए नहीं बनी है और शायद इसलिए 1996 आते -आते अनु ने अपने आपको बॉलीवुड से अलग कर अपना रुख योग और अध्यात्म की तरफ़ कर लिया। लेकिन, अनु अग्रवाल के जीवन में बड़ा तूफ़ान तो तब आया जब वो 1999 में वो एक भयंकर सड़क हादसे की शिकार हो गयीं। इस हादसे ने न सिर्फ़ उनकी याददाश्त पे असर किया, बल्कि उन्हें चलने-फिरने में भी अक्षम (पैरालाइज़्ड) बना दिया।
लगभग एक महीने तक कोमा में रहने के बाद जब अनु होश में आईं तो वह खुद को पूरी तरह से भूल चुकी थीं। आसान शब्दों में कहा जाए तो वो अपनी याददाश्त खो चुकी थीं। बताते हैं कि लगभग 3 साल चले लंबे और सघन उपचार के बाद वे अपनी धुंधली यादों को जानने में सफ़ल हो पाईं। जब वो धीरे-धीरे सामान्य हुईं तो उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया और उन्होंने अपनी सारी संपत्ति दान करके संन्यास की राह चुन ली।
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साल 2015 में अनु अपनी आत्मकथा 'अनयूजवल: मेमोइर ऑफ़ ए गर्ल हू केम बैक फ्रॉम डेड' को लेकर ख़बरों में रहीं। यह आत्मकथा उस लड़की की कहानी है जिसकी ज़िंदगी कई टुकड़ों में बंट गई थी और बाद में उसने खुद ही उन टुकड़ों को एक कहानी की तरह जोड़ा है। आज अनु पूरी तरह से ठीक हैं, लेकिन उन्होंने अपने आप को बॉलीवुड से अलग कर लिया है। अब वह बिहार के मुंगेर जिले में अकेले रहती हैं और लोगों को योग सिखाती हैं।