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    जावेद अख्तर के लिखे 10 सबसे यादगार गाने

    17 जनवरी, 1945 को जन्में जावेद अख्तर आज अपना 70वां जन्मदिन मना रहे हैं। उन्होंने अपना करियर बतौर डायलॉग राइटर शुरू किया था। फुलटाइम लिरिसिस्ट बनने से पहले वो स्क्रिप्टराइटर बने। अख्तर ने अपने पाटर्नर रहे सलीम खान के साथ 70 और 80 के दशक में कई यादगार और लोकप्रिय

    By Monika SharmaEdited By: Updated: Sat, 17 Jan 2015 11:23 AM (IST)

    मुंबई। 17 जनवरी, 1945 को जन्में जावेद अख्तर आज अपना 70वां जन्मदिन मना रहे हैं। उन्होंने अपना करियर बतौर डायलॉग राइटर शुरू किया था। फुलटाइम लिरिसिस्ट बनने से पहले वो स्क्रिप्टराइटर बने। अख्तर ने अपने पाटर्नर रहे सलीम खान के साथ 70 और 80 के दशक में कई यादगार और लोकप्रिय फिल्में दी जिसमें 'जंजीर', 'त्रिशूल', 'दोस्ताना', 'सागर', 'काला पत्थर', 'मशाल', 'मेरी जंग' और 'मि. इंडिया' शामिल हैं।

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    बतौर स्क्रिप्ट राइटर काम करने के बावजूद वो अपने पोएटिक लिरिक्स के लिए याद किए जाते हैं। 'लगान', 'कल हो ना हो', 'मैं हूं ना', 'रॉक ऑन', 'नमस्ते लंदन', 'ओम शांति ओम' जैसी फिल्मों में लिखे उनके गाने काफी लोकप्रिय हैं।

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    जावेद अख्तर के जन्मदिन पर देखते हैं उनके टॉप 10 गानें

    - मैं हूं गुमसुम, तू भी खामोश है - 'तलाश' (2012)

    - तुम हो तो गाता है दिल, तुम नहीं तो गीत कहां, तुम हो तो है सब हासिल, तुम नहीं तो क्या है यहां - 'रॉक ऑन' (2008)

    - मैं जहां रहूं, मैं कहीं भी हूं, तेरी याद साथ है - 'नमस्ते लंदन' (2007)

    - किस का है तुमको इंतजार मैं हूं ना - 'मैं हूं ना' (2004)

    - हर पल यहां जी भर के जियो, जो है समा कल हो ना हो - 'कल हो ना हो' (2003)

    - घनन घनन घिर आए बदरा, घन घन घोर काली छाए बदरा - 'लगान' (2001)

    - पंछी नदियां पवन के झोंके, कोई सरहद ना इन्हें रोके - 'रिफ्यूजी' (2000)

    - संदेसे आते हैं, हमें तड़पाते हैं, जो चिट्ठी आती है, तो पूछे जाती है, कि घर कब आओगे - 'बॉर्डर' (1997)

    - घर से निकलते ही, कुछ दूर चलते ही, रस्ते में है उसका घर - 'पापा कहते हैं' (1996)

    - एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - '1942: अ लव स्टोरी' (1994)

    (साभार नई दुनिया)

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