LS Election 2019: दीदी के गढ़ में कमल खिलाने की जुगत में BJP, बंगाल के रक्तरंजित सियासत से चौकन्ना हुआ आयोग
Lok Sabha Election 2019 भाजपा जहां दीदी के दुर्ग में कमल खिलाने की जुगत में लगी है वहीं दुसरी और निर्वाचन आयोग की चिंता थोड़ी इससे इतर है।
नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। देश में हो रहे आम चुनाव, 2019 के दूसरे चरण पर सबकी नजर पश्चिम बंगाल पर टिकी है। भारतीय जनता पार्टी जहां दीदी के गढ़ में कमल खिलाने की जुगत में हैं। वहीं निर्वाचन आयोग की चिंता इससे इतर है। राज्य में राजनीतिक झड़पों के इतिहास को देखते हुए यहां शांतिपूर्वक चुनाव कराना उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। जी हां, बंगाल में राजनीतिक झड़पों का एक लंबा रक्तरंजित इतिहास रहा है। ऐसे में चुनाव आयोग की यह चिंता लाजमी है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े भी यही गवाही देते हैं। स्थानीय निकायों के चुनावों में भी हिंसा का लंबा इतिहास रहा है।
एनसीआरबी के दिल दहला देने वाले आंकड़े
एनसीआबी के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016 में राजनीतिक हिंसा की 91 घटनाएं हुईं थी। इस हिंसा में 205 लोगों की मौत हुई थी। वर्ष 2015 में राजनीतिक हिंसा की 131 घटनाएं हुईं। इसमें 184 लोग मारे गए। वर्ष 2013 में राजनीतिक हिंसा में 26 लोगों की मौत हुई थी। इतनी राजनीतिक हिंसा और संघर्ष की घटनाएं किसी राज्य में नहीं हुई है। राज्य में राजनीतिक हिंसा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1997 में तत्कालीन वामदल की सरकार में रहे गृहमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने विधानसभा में यह जानकारी दी थी कि वर्ष 1977 से 1996 तक पश्चिम बंगाल में 28,000 लोग राजनीतिक हिंसा में मारे गए।
1960 के दशक में शुरू हुआ राजनीतिक हिंसा का दौर
बंगाल में राजनीतिक हिंसा का इतिहास कोई नई बात नहीं है। राज्य में राजनीतिक हिंसा की शुरुआत 1960 के दशक में हुई। इस राजनीतिक हिंसा के पीछे राजनीतिक झड़पों में बढ़ोत्तरी के पीछे मुख्य तौर पर तीन अहम कारण हैं। राज्य में बढ़ती बेरोजगारी, विधि शासन पर सत्ताधारी दल का वर्चस्व इसका प्रमुख कारण है। इसके अलावा एक अन्य प्रमुख कारण यह भी है कि जिस तरह से दीदी के गढ़ में भाजपा का उभार हुआ है, उससे यहां तनाव में इजाफा हुआ है।
उत्तर बंगाल में भाजपा और तृणमूल की कड़ी टक्कर
हाल के दिनों में पश्चिम बंगाल में खासकर उत्तर बंगाल में तृणमूल के लिए भाजपा ने एक नई चुनौती पेश की है। यहां अधिकांश सीटों पर मुकाबला भाजपा और तृणमूल के बीच ही है। अगर हाल में हुए निर्वाचन आयोग द्वारा जारी नामांकन के आंकड़ों पर ध्यान दे तो स्थानीय निकाय के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने 1,614 सीटों के लिए नामांकन दाखिल किया था, जबकि भाजपा ने 1,143 सीटों ने के लिए नामांकन भरा। कांग्रेस और माकपा इस मामले में काफी पीछे हैं। माकपा 351 सीटों और कांग्रेस 124 सीटों के लिए ही नामांकन कर पाई थी। इससे यह तस्वीर साफ हो जाती है कि देश में हो रहे आम चुनाव में भी उत्तर बंगाल में मुकाबला भाजपा और तृणमूल के बीच ही होना है।
बेरोजगारी और कानून व्यवस्था पर राजनीतिक हस्तक्षेप
राज्य में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है। उद्योग धंधे कम होने के कारण राज्य में रोजगार के अवसर नहीं बन सके हैं। राज्य में एक बड़ी जनसंख्या खेती किसानी पर ही निर्भर है। इससे राज्य में युवाओं की बड़ी तादाद रोजगार के लिए भटक रहा है। वह पूरी तरह से खाली है। इसके अलावा विधि शासन में सत्ताधारी पार्टी के हस्तक्षेप ने राज्य में राजनीतिक हिंसा को जन्म दिया है। हाल के दिनों में सत्ताधारी तृणमूल पर यह आरोप लगे हैं कि उसने राजनीतिक लाभ के लिए पुलिस का इस्तेमाल किया है। राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते यहां पुलिस अफसर निष्पक्ष होकर कार्रवाई नहीं कर पा रही है। इतना ही नहीं राज्य में हुए पंचायत चुनाव में विपक्षी पार्टियों ने सत्ताधारी पार्टी के साथ पुलिस पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया था।
चुनाव की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें