उत्तराखंड: भारी बहुमत के कारण नहीं चली दबाव की राजनीति
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में भाजपा को मिले प्रचंड बहुमत ने मौके की राजनीति करने वाले नेताओं के अरमानों पर पानी फेर दिया है।
By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 16 Mar 2017 11:40 AM (IST)Updated: Fri, 17 Mar 2017 04:00 AM (IST)
देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: प्रदेश में मौजूदा विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिले प्रचंड बहुमत ने मौके की राजनीति करने वाले नेताओं के अरमानों पर पानी फेर दिया है। कुछ नेताओं ने अपनी पसंद के दावेदारों को लेकर केंद्र में दबाव बनाने की कोशिश की तो वहां उन्हें दो टूक कह दिया गया कि अब किसी तरह का दबाव काम नहीं आएगा। आलाकमान जो भी निर्णय लेगा, वह सबको मानना ही होगा।
प्रदेश में अभी तक जब भी नई सरकार का गठन हुआ है तब-तब तगड़ी लॉबिंग देखने को मिली है। वर्ष 2007 में जब भाजपा सत्ता में आई तब मुख्यमंत्री पद के दो अहम दावेदार थे। चूंकि भाजपा बहुमत से थोड़ा पीछे थी। ऐसे में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों ने बहुमत साबित करने के लिए निर्दल के साथ ही पार्टी के भीतर विधायकों की लॉबिंग शुरू कर दी थी। इस दौरान भाजपा साफ दो गुटों में नजर आई।
विधायक अपने-अपने नेताओं के साथ बैठकों में मशगूल दिखे। इस दौरान आलाकमान ने बामुश्किल भुवन चंद्र खंडूडी को मुख्यमंत्री का ताज पहनाया। बावजूद इसके हालत यह बनें की दो साल बाद ही प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन करना पड़ा। हालांकि, नया मुख्यमंत्री बनाने के लिए फिर से आलाकमान को खासी मशक्कत करनी पड़ी। ऐसे में मुख्यमंत्री पद का सेहरा रमेश पोखरियाल निशंक के सिर बंधा।
हालांकि, इसके बाद चुनाव से ऐन पहले भाजपा आलाकमान ने फिर से खंडूड़ी को मौका दिया और उनके नाम पर ही चुनाव लड़ा। बावजूद इसके चुनाव में इस गुटबाजी का असर साफ नजर आया और भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा। इस बार भाजपा ने प्रदेश में किसी स्थानीय चेहरे नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा। जनता ने भी मौजूदा चुनाव में भाजपा का साथ दिया और प्रचंड बहुमत देकर सत्ता उनके हाथों सौंप दी।
पूर्ण बहुमत होने के कारण इस बार बीते वर्षों की तरह फिलहाल विधायकों की लॉबिंग नजर नहीं आ रही है। नेताओं को भी पता है कि इस बार दबाव की रणनीति काम नहीं करेगी। ऐसे में अब विधायक किसी नेता विशेष के यहां आने की बजाय प्रदेश मुख्यालय में अपना समय बिता रहे हैं। आलाकमान के निर्देशों पर ही संभावित दावेदार दिल्ली के चक्कर काट रहे हैं।
सूत्रों की मानें तो नतीजे आने के बाद प्रदेश के एक वरिष्ठ नेता ने आलाकमान के सामने स्वयं की दावेदारी को लेकर लॉबिंग करने का प्रयास किया था लेकिन आलाकमान ने दो टूक कहा कि इस बार किसी तरह की लॉबिंग नहीं चलेगी। इस बार देखपरख कर ही मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर लगाई जाएगी।
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