उत्तराखंड इलेक्शन: फ्लोटिंग वोट तय करेंगे कई सीटों का भविष्य
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में कई सीटों का भविष्य फ्लोटिंग वोट तय करेंगे। आंकड़ों पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि तमाम सीटों पर एक से पांच फीसद वोटों के अंतर से ही हार-जीत तय हुई है।
देहरादून, [अनिल उपाध्याय]: मतदान में अब बस दो दिन शेष हैं। तमाम मतदाता इस वक्त तक तय कर चुके हैं कि उन्हें किसके हक में अपना मत इस्तेमाल करना है। मतदान से ठीक पूर्व बना माहौल और लहर तीन से पांच फीसद मतदाताओं की पसंद तय करती है।
इन मतदाताओं को फ्लोटिंग मतदाता कहा जाता है, जो अंतिम समय में अपने मत का सदुपयोग करने का ट्रेंड दिखाते हैं। फ्लोटिंग मतदाताओं में कमोबेश हर तबके और वर्ग के वोटर शामिल होते हैं।
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राज्य में बीते उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि तमाम सीटों पर एक से पांच फीसद वोटों के अंतर से ही हार-जीत तय हुई है। ऐसे में इन सीटों पर फ्लोटिंग मतदाताओं की भूमिका अहम हो जाती है, या कहें कि ये मतदाता ही इन सीटों पर भविष्य तय करते हैं। विधानसभा चुनाव-2012 में राज्य की 70 सीटों में से 17 फीसद सीटों पर हार-जीत का अंतर एक हजार मतों से कम था।
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वहीं, 55 फीसद सीटें ऐसी थी जहां पांच हजार से कम मतों से जीत हुई। 90 फीसद सीटों पर हार-जीत का अंतर 10 हजार मतों से कम था।
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राज्य की अधिकांश सीटों पर मतदाताओं की संख्या एक लाख के आसपास हैं। राज्य में बीते चुनाव में 66.17 फीसद मतदान हुआ था। ऐसे में बेहद कम वोटों से होने वाली हार जीत का आधार ये फ्लोटिंग वोटर ही बनते हैं।
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आमतौर पर फ्लोटिंग वोटर स्टार प्रचारकों और अंतिम समय में बने माहौल के हिसाब से अपना मत निर्धारित करते हैं। बीते दो-तीन दिन में जिस तरह से राज्य में भाजपा-कांग्रेस समेत तमाम दलों के स्टार प्रचारक मैदान में उतरे हैं, ऐसे में माना जा रहा है कि 50 फीसद सीटों पर अंतिम समय में परिणाम बदलने की स्थिति बन गई है। स्टार प्रचारकों के अलावा फ्लोटिंग वोटर अपने मत के सदुपयोग को लेकर भी व्यवहार करते हैं।
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ऐसे में वे अंतिम समय तक यह भांपने की कोशिश करते हैं कि कौन प्रत्याशी जीत रहा है और कहां उनका मत सत्ता निर्धारण में अहम भूमिका निभा सकता है। इसलिए अब राज्य की तमाम सीटों पर फ्लोटिंग मतदाता अपने मत निर्धारण की प्रक्रिया में आ गए हैं और तमाम दलों की नजर भी इन पर है।
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इन्हें अपने खेमे में लाने के लिए तमाम कोशिशें भी की जा रही हैं। राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों की कोशिश है कि बहाव के साथ बहने वाले इस तीन से पांच फीसद मतदाताओं को अपने हक में खड़ा करें।
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इसके लिए माहौल बनाया जा रहा है और ऐसे मतदाताओं तक ये संदेश पहुंचाया जा रहा है कि उनके मत का सही उपयोग उनके साथ ही हो पाएगा।
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2012 में हार का अंतर
100 से कम मतों से-01
500 से कम मतों से-05
1000 से कम मतों से-06
2000 से कम मतों से 10
5000 से कम मतों से-17
10000 से कम मतों से-24
25000 से कम मतों से-06
40000 से कम मतों से-01
कुल सीटें-70
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