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    यूपी चुनाव : 2007 में सोलह साल बाद पड़ी बहुमत सरकार की नींव

    By Dharmendra PandeyEdited By:
    Updated: Fri, 10 Mar 2017 04:06 PM (IST)

    उत्तर प्रदेश में 2007 के इस चुनाव को इस मायने में याद किया जाएगा कि प्रदेश की जनता ने करीब 16 वर्ष बाद किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का सौभाग्य प्रदान किया था।

    यूपी चुनाव : 2007 में सोलह साल बाद पड़ी बहुमत सरकार की नींव

    लखनऊ (अवनीश त्यागी)। उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव का पिछले दस वर्षों का इतिहास इस मायने में महत्वपूर्ण है कि मतदाताओं ने दो अलग-अलग धुर विरोधी पार्टियों को बहुमत की सरकार बनाने का अवसर प्रदान किया। 2007 में बहुजन समाज पार्टी ने सोशल इंजीनियरिंग जैसी शब्दावली प्रचलित की और इसने विरोधियों के पैर उखाड़ दिए। 
    बसपा 2012 में भी इसी लाइन पर रही लेकिन युवा अखिलेश का चेहरा लोगों को भा गया। उत्तर प्रदेश में 2007 के इस चुनाव को इस मायने में याद किया जाएगा कि प्रदेश की जनता ने करीब 16 वर्ष बाद किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का सौभाग्य प्रदान किया था।
    उससे पहले सरकार बनाने के लिए दलों के स्वार्थ आड़े आने की वजह से जनता प्रदेश का बुरा हाल देख चुकी थी। फिर भी कोई यह अनुमान नहीं लगा पा रहा था कि वोटिंग मशीनों में किसका भाग्य लिखा रखा है। आकलन करना भी मुश्किल था लेकिन यह माना जा रहा था कि बहुजन समाज पार्टी सबसे अधिक सीटें पाएगी। फिर भी कोई उसे डेढ़ सौ से अधिक सीटें देने को तैयार न था। 
    परिणाम आया तो चौंकाने वाला था। गत 14 अप्रैल 1984 को स्थापना के बाद बसपा को प्रदेश में अपने दम पर सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचाने में मायावती कामयाब हुई। बसपा के वोटबैंक में भी भारी इजाफा हुआ था। अपने पहले चुनाव में 9.41 फीसद मत पाने वाली बसपा को 2007 में 30.43 प्रतिशत वोट मिले थे और 206 सीटों पर विजयश्री हासिल हुई। तब चढ़ गुंडों की छाती पर, मोहर लगा दो हाथी- जैसे नारों के सहारे सत्ता में पहुंच चौथी मर्तबा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाली मायावती ने पार्टी की चुनावी रणनीति (सोशल इंजीनियरिंग) में व्यापक बदलाव किए थे।
    तिलक तराजू और तलवार... जैसे नारों को बदलकर हाथी नहीं है गणेश है... जैसे स्लोगनों से सवर्ण जातियों में भरोसा जमाने की कोशिश की थी और अपने सियासी गुरु स्व. कांशीराम की रणनीति को भी बदल दिया। ब्राह्मणों को गालियां देने के बजाए सिराहने पर बैठाने के प्रयोग को कामयाबी मिली। दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण गठजोड़ में अतिपिछड़ों के तड़के ने मायावती को चौथी बार न केवल मुख्यमंत्री बनाया बल्कि पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने का मौका भी दिया। 
    139 सवर्णों को टिकट दिए
    2007 में बसपा को अभूतपूर्व समर्थन मिलने की वजह बताते हुए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में राजनीतिक विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. एसके चतुर्वेदी का कहना है कि मंदिर आंदोलन के बाद से प्रदेश की राजनीति का मिजाज मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद बदला है। वर्ष 1993 में सपा बसपा के गठजोड़ के आगे राममंदिर लहर भी ठहर गयी थी। तब से हाशिए पर पहुुंचे सवर्ण वर्ग के मतदाताओं को बसपा की बदली रणनीति से उम्मीद जगी थी और सम्मान बचाने की चाहत में बसपा का साथ दिया था। 
    बसपा अध्यक्ष मायावती ने वर्ष 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के अंतर्गत 139 सीटों पर सवर्ण उम्मीदवारों को टिकट प्रदान किया था। तब बसपा ने 114 पिछड़ों व अतिपिछड़ों, 61 मुस्लिम व 89 दलित को टिकट दिया था। सवर्णो में सबसे अधिक 86 ब्राह्मण प्रत्याशी बनाए गए थे और इसके अलावा 36 क्षत्रिय व 15 अन्य सवर्ण उम्मीदवार चुनावी जंग में उतारे थे। 
    वर्ष 2012 में बदली रणनीति
    बसपा ने वर्ष 2007 से 2012 तक बहुमत की सरकार चलायी जरूर परंतु पांच वर्ष के शासन में अपना जनाधार बचाए न रख सकी। वर्ष 2012 में लगभग पांच प्रतिशत वोट कम होकर 25.91 पर आया और बसपा सरकार से बाहर हो गयी। हालांकि वर्ष 2012 में बसपा अध्यक्ष ने इस फॉर्मूले को त्याग दिया था। बसपा ने वर्ष 2012 में सोशल इजीनियरिंग में फेरबदल किया। सवर्ण उम्मीदवारों की कटौती करते हुए मुसलमानों को तरजीह दी। बसपा ने 113 पिछड़े- अतिपिछड़े, 85 मुस्लिम, 88 दलित व 117 सवर्ण प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। सवर्णो में 74 ब्राह्मण, 33 क्षत्रिय और 10 अन्य उम्मीदवारों को टिकट दिया गया परन्तु बसपा को करारा झटका लगा था। 
    इस बार बसपा ने फिर से मुस्लिमों पर भरोसा जताया है।
    बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का विलय करने के अलावा बसपा ने सौ मुस्लिमों को टिकट दिया है। इस के अलावा बसपा सुप्रीमों मायावती ने दलित-मुस्लिम गठजोड़ मजबूत बनाने के लिए अपनी सभी सभाओं में भाजपा को हराने के लिए मुस्लिमों से समर्थन देने की अपीलों पर जोर ही दिया है। बसपा ने 106 ओबीसी, 87 दलित और 113 सवर्ण उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। पिछले चुनावों की तुलना में सवर्णो व पिछड़ों के टिकटों में कटौती की और मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि की। गत लोकसभा चुनाव में मात खायी मायावती के लिए 2017 का चुनाव जीवन मरण जैसा है। इसीलिए पूरी ताकत नए सोशल गणित को चुनावी समीकरण में बदलकर सूबे की सत्ता पाने कीे कोशिश की है। 
    वर्ष 2007 के चुनावी नतीजे
    पार्टी   चुनाव लडें   जीते    मत फीसद 
    बसपा  403        206     30.43 
    सपा    393          97     26.07 
    भाजपा 350        51     19.62 
    कांग्रेस 393         22       8.84 

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