Maharashtra Assembly Elections 2019: फिर नकारात्मक प्रचार में जुटे राज ठाकरे
Maharashtra Assembly Elections 2019. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे खुद को प्रमुख विपक्ष बनाने के लिए वोट मांगते दिखाई दे रहे हैं।
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। सामान्यतया राजनीतिक दल सत्ता पाने के लिए प्रचार करते हैं। लेकिन महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे खुद को प्रमुख विपक्ष बनाने के लिए वोट मांगते दिखाई दे रहे हैं। इस बार विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी करीब 103 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
हाल के लोकसभा चुनाव में राज ठाकरे ने अपना कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था। लेकिन करीब 11 सभाएं करके ऑडियो-विजुवल प्रस्तुति के जरिए मोदी सरकार और प्रदेश की फड़नवीस सरकार को घेरने की भरपूर कोशिश की थी। इन सभाओं में भीड़ भी खूब जुटती रही। इससे तंग आकर भाजपा नेताओं को इनका जवाब देने को मजबूर होना पड़ा था। लेकिन राज ठाकरे की इन सभाओं का नतीजा शून्य रहा। जहां-जहां उनकी सभाएं हुई थीं, वहां भी भाजपा-शिवसेना का परचम बुलंद ही रहा। हालांकि अब विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे ने अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। लेकिन उन्होंने अपनी पहली ही सभा में संकेत दे दिया कि वह सत्ता में आने के लिए चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।
गुरुवार को सांताक्रूज की सभा में उन्होंने साफ कहा कि उन्हें राज्य का प्रमुख विपक्षी दल बनने का अवसर प्रदान कीजिए। वास्तव में इस चुनाव में राज ठाकरे के प्रचार अभियान की शुरुआत ही अच्छी नहीं रही। बुधवार को उनकी पहली सभा पुणे में आयोजित की गई थी। लेकिन सभा शुरू होने से पहले ही वहां हुई धुआंधार बारिश ने राज ठाकरे की सभा धो डाली थी। वह सभा नहीं हो सकी।
गुरुवार को राज ठाकरे द्वारा जताई गई मुख्य विपक्षी दल बनने की इच्छा भी हास्यास्पद सी ही प्रतीत होती है। क्योंकि वह लड़ ही 103 सीटों पर रहे हैं, जबकि कांग्रेस 150 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी 126 सीटों पर लड़ रही हैं। इन दोनों मुख्य विपक्षी दलों का संगठन भी राज ठाकरे की पार्टी मनसे से ज्यादा बड़ा है। राज ठाकरे अपनी पार्टी के 13 वर्षों में पूरे महाराष्ट्र में अपना सुगठित संगठन भी खड़ा नहीं कर पाए हैं। 2006 में शिवसेना से अलग होकर बनाई गई इस पार्टी से खासतौर से महाराष्ट्र के युवाओं को बड़ी उम्मीदें थीं।
इन्हीं उम्मीदों की बदौलत राज ठाकरे की पार्टी 2009 के विधानसभा चुनाव में 13 सीटें जीतने में कामयाब भी रही। तब उसनें पुणे, नासिक, मुंबई और ठाणे में शिवसेना को करारा झटका दिया था। लेकिन वह इस सफलता को कायम नहीं रख पाए। 2014 में ही उनकी पार्टी ढलान पर आ गई। यानी प्रबल मोदी लहर के कारण वह 2009 के 13 विधायकों से घटकर सीधे एक की संख्या पर आ गिरी।
राज ठाकरे चाहते थे कि भारतीय जनता पार्टी शिवसेना के बजाय उनसे हाथ मिला ले। लेकिन 2014 में भाजपा अपनी 25 साल पुरानी सहयोगी शिवसेना से ही गठबंधन का प्रयास करती रही। गठबंधन न हो पाने की स्थिति में भी वह अकेली ही लड़ी, लेकिन राज ठाकरे को साथ नहीं लिया। राज के मन में खुद को ठुकराए जाने की यह खीझ बराबर बनी रही और 2019 के लोकसभा चुनाव में खुलकर सामने आई।
राज ठाकरे ने उस समय संभवतः यह सोचकर अपना कोई उम्मीदवार खड़े किए बिना कांग्रेस-राकांपा के पक्ष में प्रचार किया था कि छह माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-राकांपा उन्हें अपने गठबंधन में सम्मानजनक स्थान देंगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस ने तो उन्हें पूरी तरह ठुकरा दिया। जबकि राकांपा ने ठाणे और पुणे में सिर्फ कुछ सीटों पर उनके साथ समझौता किया है। ऐसी स्थिति में राज ठाकरे प्रमुख विपक्षी दल बनने का सपना साकार कर पाएंगे, इसमें संदेह ही होता है।
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