MP Election 2023: दल-बदल करने वालों की बढ़ी धड़कनें, बदल रहे हैं सियासी मायने; नेताओं को झेलनी पड़ रही बेगानगी
MP Election 2023 मध्य प्रदेश की राजनीति में दलबदल करने वालों में अजब सी बेचैनी दिख रही है। दरअसल कमल नाथ का विरोध कर भाजपा में आए और अमरवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से 2008 में चुनाव जीते लेकिन मंत्री नहीं बनाए गए। अंतत वे हाशिए पर चले गए और उनके धुर विरोधियों को अब पार्टी में वापस लाया जा रहा है।

धनंजय प्रताप सिंह, भोपाल। मध्य प्रदेश की राजनीति में दलबदल करने वालों में अजब सी बेचैनी दिख रही है। इसकी वजह भी है।साढ़े तीन साल पहले कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया हों या 2014 में कांग्रेस छोड़कर आए संजय पाठक, ये तो भाजपा में घुल-मिल गए। पार्टी की रीति-नीति को भी अपना लिया, लेकिन उनके साथ आए समर्थक अब तक एकरस नहीं हो पाए हैं।
यही हाल कई अन्य नेताओं का है, जिन्हें भाजपा ने शामिल तो कराया लेकिन उन्हें उनके ही हाल पर छोड़ दिया। कांग्रेस के कद्दावर आदिवासी नेता रहे पूर्व मंत्री प्रेमनारायण ठाकुर का ही उदाहरण लें तो वे कमल नाथ का विरोध कर भाजपा में आए और अमरवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से 2008 में चुनाव जीते लेकिन मंत्री नहीं बनाए गए। अंतत: वे हाशिए पर चले गए और उनके धुर विरोधियों को अब पार्टी में लाया जा रहा है।
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पहले गोंडवाना पार्टी के नेता मनमोहन शाह बट्टी को लाने के प्रयास हुए अब उनकी बेटी मोनिका शाह बट्टी को भाजपा में ले लिया गया। यही हाल पूर्व मंत्री मानवेंद्र सिंह, विधायक नारायण त्रिपाठी, पूर्व सांसद भागीरथ प्रसाद, विधानसभा में कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष रहे चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी हों अथवा पूर्व मंत्री बालेंदु शुक्ल, समंदर पटेल, बैजनाथ यादव, वीरेंद्र रघुवंशी का भी रहा। कुछ भाजपा का साथ छोड़कर फिर कांग्रेस में लौट गए तो कुछ अभी भी इस प्रतीक्षा में हैं कि उनका पुनर्वास अवश्य होगा। भाजपा ने बहुजन समाज पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष भुजबल सिंह अहिरवार को भी शामिल कराया लेकिन अब वो भी मुख्यधारा में नहीं हैं।
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साल 2013 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस विधायक दल के कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष रहे चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी भाजपा में शामिल हुए थे पर लंबा समय बीतने के बाद भी वे मुख्यधारा में शामिल नहीं हो पाए। पार्टी ने उनके छोटे भाई चौधरी मुकेश सिंह को विस पहुंचाया लेकिन उनका पुनर्वास नहीं कर पाई। चतुर्वेदी को भाजपा में लाते वक्त प्रदेश भाजपा संगठन महामंत्री अरविंद मेनन थे। उनके जाने के बाद किसी ने परवाह नहीं की।
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