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    लोकसभा चुनावों की तारीखों के एलान के साथ ही देश में लागू हुई आदर्श चुनाव आचार संहिता

    By Bhupendra SinghEdited By:
    Updated: Mon, 11 Mar 2019 07:12 AM (IST)

    आयोग का चुनाव आचार संहिता चुनावों से पहले राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए जारी एक दिशानिर्देश है। इसका उद्देश्य स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना होता है।

    लोकसभा चुनावों की तारीखों के एलान के साथ ही देश में लागू हुई आदर्श चुनाव आचार संहिता

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने 2019 के लोकसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा कर दी है। तारीखों की घोषणा के साथ, मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट (आदर्श चुनाव आचार संहिता) तुरंत प्रभाव में लागू हो चुकी है। यह संहिता सरकारों को नीतिगत निर्णयों की घोषणा करने से रोकती है। आइए जानते हैं क्या होती है चुनाव आचार संहिता। साथ ही जानें इसका पालन न करने के क्या परिणाम हो सकते हैं?

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    चुनाव आचार संहिता

    आयोग का चुनाव आचार संहिता चुनावों से पहले राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए जारी एक दिशानिर्देश है। इस संहिता के लागू करने का उद्देश्य स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना होता है।

    कब आया प्रभाव में

    इस कोड को पहली बार 1960 में केरल में राज्य विधानसभा चुनावों में लागू किया गया था। 1962 के आम चुनाव में सभी दलों द्वारा इसका बड़े पैमाने पर अनुसरण किया गया था और बाद के आम चुनावों में भी इसका पालन किया जाता रहा। अक्टूबर 1979 में चुनाव आयोग ने सत्ता में पार्टी को नियंत्रित करने के लिए इस कोड में एक नियम जोड़ा, जो चुनाव के समय अनुचित लाभ प्राप्त करने से सत्ताधारी पार्टियों को रोकता है।

    क्या लगते हैं प्रतिबंध

    इस कोड में सामान्य आचरण, बैठकें, जुलूस, मतदान दिवस, मतदान केंद्र, पर्यवेक्षक, सत्ता में पार्टी और चुनाव घोषणा पत्र के साथ आठ प्रावधान हैं। जैसे ही कोड लागू होता है, सत्ताधारी पार्टियां (चाहे वह केंद्र में हो या राज्यों में) चुनाव प्रचार के लिए अपनी आधिकारिक शक्ति का उपयोग नहीं कर सकती हैं। साथ ही किसी भी नीति, परियोजना या योजना की घोषणा नहीं कर सकती हैं।

    चुनाव में जीत की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए पार्टियां सरकारी खजाने का इस्तेमाल विज्ञापन देने या प्रचार के लिए भी नहीं कर सकती हैं। कोड के लागू होते ही मंत्री चुनाव कायरें के साथ आधिकारिक यात्राओं को संयोजित नहीं कर सकते हैं।

    सत्ता पक्ष भी चुनाव प्रचार के लिए सरकारी परिवहन या मशीनरी का उपयोग नहीं कर सकता है। यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि चुनावी सभाओं के आयोजन के लिए सार्वजनिक स्थानों जैसे कि मैदान आदि, और हेलीपैड के उपयोग की सुविधा विपक्षी दलों को उन्हीं नियमों और शर्तों पर प्रदान की जानी चाहिए, जिनका पालन सत्ताधारी पार्टी करती है।

    राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों की आलोचना उनके काम के रिकॉर्ड के आधार पर की जा सकती है और मतदाताओं को लुभाने के लिए किसी भी जाति और सांप्रदायिक भावनाओं का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

    मस्जिदों, चर्चों, मंदिरों या किसी अन्य पूजा स्थलों का उपयोग चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जाना चाहिए। मतदाताओं को रिश्वत देना, डराना या धमकाना भी वर्जित है। मतदान के समापन के लिए निर्धारित घंटे से पहले 48 घंटे की अवधि के दौरान सार्वजनिक बैठकें आयोजित करना भी अपराध है।

    क्या यह कोड कानूनी रूप से बाध्यकारी है?

    मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग द्वारा विकसित किया गया है। यह सभी राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति का परिणाम है। इसका कोई वैधानिक समर्थन नहीं है। सब कुछ स्वैच्छिक है। चुनाव आयोग किसी भी राजनेता या दल को कोड का उल्लंघन करने के जुर्म में नोटिस जारी कर सकता है। नोटिस जारी होने के बाद व्यक्ति या पक्ष को ( गलती स्वीकार करना और बिना शर्त माफी मांगना या आरोप को खारिज करना) लिखित रूप में देना होता है।

    कोड उल्लंघन के कुछ मामले

    2017 के गुजरात चुनावों में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने एक दूसरे पर कोड के उल्लंघन का आरोप लगाया था। भाजपा ने मतदान से 48 घंटे पहले राहुल गांधी के टीवी चैनलों को दिए गए साक्षात्कारों की ओर इशारा किया था जबकि कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर वोट डालने के बाद अहमदाबाद में रोड शो 'करके समान प्रावधानों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था।

    गोवा चुनावों के दौरान दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने मतदाताओं से कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों से पैसे लेकर आप को वोट करने को कहा था। इसको लेकर चुनाव आयोग ने कड़ा रुख अपनाया था। हालांकि कोड को लागू करने के लिए आयोग शायद ही कभी दंडात्मक कार्रवाई का समर्थन करता है, लेकिन हाल ही में एक उदाहरण है, जब बिना उल्लंघन के चुनाव आयोग ने दंडात्मक कार्रवाई की।

    2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान, चुनाव आयोग ने भाजपा नेता और अब पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और सपा नेता आजम खान के चुनाव प्रचार पर रोक लगा दी थी ताकि वे उनके भाषणों से मतदान के माहौल को और अधिक खराब होने से रोक सकें। आयोग ने प्रतिबंध लगाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का सहारा लिया था। नेताओं द्वारा माफी मांगने और कोड के भीतर काम करने का वादा करने के बाद ही इसे हटाया गया था।

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