हरसिमरत के लिए चौथी बार जीत चुनौतीपूर्ण, पहली बार प्रकाश सिंह बादल की अनुपस्थिति में अकाली दल लड़ रहा चुनाव
Lok sabha Election 2024 प्रकाश सिंह बादल की अनुपस्थिति में पंजाब में शिरोमणि अकाली दल पहला लोकसभा चुनाव लड़ रहा है। यहां शहरी वोटों को साधने वाली भाजपा के इस बार शिअद के साथ नहीं है। इससे शिअद यानी शिरोमणि अकाली दल के लिए चुनौती बढ़ी है। पंजाब की बठिंडा सीट से चुनाव लड़ रही हरसिमरत के लिए चौथी बार जीत चुनौतीपूर्ण है। पढ़िए पूरी रिपोर्ट।

इन्द्रप्रीत सिंह, बठिंडा। अकाली राजनीति के बाबा बोहड़ कहे जाने वाले प्रकाश सिंह बादल की अनुपस्थिति में पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) पहला लोकसभा चुनाव लड़ रहा है। यह चुनाव न सिर्फ बादल परिवार, बल्कि शिअद का अस्तित्व बचाने का भी सवाल है। वर्ष 2015 में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के कारण पंजाब की सत्ता के हाशिये पर गई पार्टी को तो अपना वर्चस्व बहाल करना ही है, लेकिन सबसे बड़ी जिम्मेदारी सुखबीर बादल पर है, जिन्हें अपनी पत्नी हरसिमरत कौर बादल की सीट को भी बचाना है। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि स्वयं सुखबीर बादल जो, पिछली बार फिरोजपुर से सांसद थे, इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि हर सीट पर अपने प्रत्याशियों को जितवाने के लिए प्रचार कर रहे हैं।
हालांकि, चौथी बार जीतने को मैदान में उतरीं हरसिमरत के लिए इस बार राह आसान नहीं हैं। हरसिमरत अपने हर भाषण में प्रकाश सिंह बादल की ओर से इस सीट पर किए गए कार्यों को याद कराती हैं। उनकी इन दलीलों की काट उनके विरोधियों के पास नहीं है। वह लोगों को याद दिलाती हैं बठिंडा में बनाए गए एम्स की, केंद्रीय यूनिवर्सिटी की और इसी तरह के कई और कार्यों की...।
2009 से लगातार जीत रहीं हरसिमरत
बठिंडा के हरिंदर सिंह का कहना है कि अगर लोगों ने काम के आधार पर वोट दिया तो उनके लिए हरसिमरत बादल के साथ-साथ बादल परिवार की अनदेखी करना मुश्किल होगा। जिन प्रोजेक्टों के बारे में हरसिमरत लोगों को बता रही हैं, वे पूरे केवल इसलिए हुए हैं, क्योंकि वह केंद्र की एनडीए सरकार में लंबे समय तक मंत्री रही हैं। हरसिमरत सबसे पहले 2009 में जीतीं, तब से वह लगातार जीत रहीं हैं। जब राज्य में शिअद-भाजपा की सरकार थी। इस संसदीय क्षेत्र में जो भी काम हुआ है, निश्चित रूप से उसका श्रेय हरसिमरत कौर को मिलेगा ही।
इस बार है चुनौती, क्योंकि बीजेपी और शिअद की राहें अलग
वह पिछले लंबे समय से महिलाओं के साथ जुड़ी रही हैं, लेकिन इस बार वक्त कुछ बदल भी गया है। शहरी वोटों को साधने वाली भाजपा अब शिअद के साथ नहीं है। भाजपा की प्रत्याशी परमपाल कौर जितने भी वोट प्राप्त करेंगी, उनमें से ज्यादातर हरसिमरत बादल के खाते से ही जाएंगे। परमपाल कौर के ससुर सिकंदर सिंह मलूका, जो वर्षों शिअद के जिलाध्यक्ष रहे हैं, वह भी हरसिमरत का साथ नहीं दे रहे हैं। संसदीय सीट की विधानसभा सीटों के प्रभारी चाहे दर्शन सिंह कोटफत्ता हों या जीत मोहिंदर सिंह सिद्धू दूसरी पार्टियों में शामिल हो गए हैं। बलविंदर सिंह भूंदड़ जैसे नेता बूढ़े हो चुके हैं।
केजरीवाल और भगवंत मान ने अपने प्रत्याशी के लिए लगाया जोर
दूसरी ओर, बादल को उनका अंतिम चुनाव हराने वाले आप के गुरमीत सिंह खुड्डियां, जो राज्य की आप सरकार में मंत्री भी हैं, अब हरसिमरत कौर के खिलाफ मैदान में हैं। उनके लिए मुख्यमंत्री भगवंत मान व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रोड शो किया। साफ है कि आप जानती है कि जब तक शिअद का पंथक वोट पूरी तरह से टूटकर बिखर नहीं जाता, यह कभी भी पार्टी के लिए खतरा बनकर खड़ा हो सकता है। आखिर आप के पास जो भी काडर है, वह दूसरी पार्टियों के निराश लोगों का ही है। वह खुद कृषि मंत्री हैं, लेकिन भाजपा से नाराज किसान मतदाताओं को अपने पाले में नहीं कर पा रहे हैं।
लक्खा सिधाना काटेंगे शिअद के वोट!
आप के एक सीनियर विधायक मानते हैं कि संसदीय सीट की विधानसभा सीटों के पार्टी विधायकों के प्रति लोगों की नाराजगी हमारे प्रत्याशियों को झेलनी पड़ रही है, लेकिन उनकी अपनी छवि अच्छी होने के कारण हम लोगों को मनाने में कामयाब हो रहे हैं। हमें दिक्कत गैंगस्टरों की दुनिया से राजनीति में आए लक्खा सिधाना से भी है। पिछले विधानसभा चुनाव में जिन युवाओं ने झाड़ू को पकड़कर सारी गंदगी साफ की थी, अब वे लक्खा सिधाना के साथ चल रहे हैं।
वह जीतने की स्थिति में तो नहीं है, लेकिन हमारा नुकसान जरूर कर रहा है। भाजपा प्रत्याशी परमपाल कौर मलूका को शहरी वोटों पर भरोसा है, लेकिन लंबे समय तक इस सीट पर भाजपा के अपना प्रसार न कर पाने के चलते परमपाल कौर को दिक्कतें आ रही हैं। कांग्रेस के जीत मोहिंदर सिंह सिद्धू को कोई ऐसी दिक्कत नहीं है। हर विस सीट पर पार्टी का काडर उनके साथ चल रहा है।
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