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उत्तराखंड में चुनाव को लेकर गंभीर नहीं उक्रांद, अतित्व पर छाया संकट

अलग उत्तराखंड राज्य आंदोलन की अवधारणा की पैदाइश प्रदेश के एकमात्र क्षेत्रीय दल के रूप में पहचान बनाने वाले उत्तराखंड क्रांति दल के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है।

By BhanuEdited By: Published: Wed, 27 Mar 2019 10:36 AM (IST)Updated: Wed, 27 Mar 2019 10:36 AM (IST)
उत्तराखंड में चुनाव को लेकर गंभीर नहीं उक्रांद, अतित्व पर छाया संकट

देहरादून, राज्य ब्यूरो। अलग उत्तराखंड राज्य आंदोलन की अवधारणा की पैदाइश प्रदेश के एकमात्र क्षेत्रीय दल के रूप में पहचान बनाने वाले उत्तराखंड क्रांति दल के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। आलम यह कि दल को चुनाव लड़ाने के लिए प्रत्याशी नहीं मिल पा रहे हैं। 

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जिस तरह इस चुनाव में उक्रांद ने लगातार प्रत्याशी बदले, उससे साफ नजर आया कि वह चुनावों को लेकर गंभीर ही नहीं है। ऐसा लगा कि उक्रांद यह चुनाव केवल अपना वजूद बरकरार रखने और मत प्रतिशत का आंकड़ा जुटाने के लिए लड़ रहा है। 

उत्तर प्रदेश के पर्वतीय जिलों को मिलाकर अलग राज्य बनाने की अवधारणा को लेकर उत्तराखंड क्रांति दल का जन्म जुलाई 1979 में हुआ। राज्य आंदोलन को धार देने में उक्रांद की अहम भूमिका रही। अविभाजित उत्तर प्रदेश में भी उक्रांद के बैनर तले रानीखेत व पिथौरागढ़ से विधायक चुने गए। 

राज्य गठन के बाद वर्ष 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में दल के चार प्रत्याशियों ने जीत दर्ज कर विधानसभा में प्रवेश किया। दल ने जितनी सीटों पर चुनाव लड़ा, वहां उसका वोट प्रतिशत 6.36 रहा। यह प्रदर्शन पहली बार उतरने वाले राजनीतिक दल के लिहाज से खासा अच्छा था। 

वर्ष 2007 में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में उक्रांद का प्रदर्शन सीटों के लिहाज से अपेक्षाकृत कमजोर रहा। दल केवल तीन ही सीटों पर जीत दर्ज कर पाया। हालांकि, दल का वोट प्रतिशत 5.49 रहा। वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में दल के खाते में केवल एक ही सीट आई। दल का वोट प्रतिशत भी घट कर कुल 1.93 फीसद रह गया। 2017 के चुनावों में उक्रांद का सूपड़ा ही साफ हो गया। 

मौजूदा लोकसभा चुनावों में तो दल को मैदान में उतारने के लिए प्रत्याशी ही नहीं मिले। लोकसभा चुनावों की आहट हुई तो दल ने नैनीताल से पूर्व केंद्रीय अध्यक्ष व वरिष्ठ नेता काशी सिंह ऐरी को उम्मीदवार बनाया। ऐरी संयुक्त उत्तर प्रदेश और राज्य गठन के बाद विधायक रह चुके हैं। 

देहरादून से पूर्व केंद्रीय अध्यक्ष बीडी रतूड़ी को प्रत्याशी बनाया गया। यहां तक कि पौड़ी लोकसभा सीट से मौजूदा केंद्रीय अध्यक्ष दिवाकर भट्ट को लड़ाने की बात कही गई। नामांकन तक स्थिति यह हुई कि इन तीनों में से कोई भी प्रत्याशी मैदान में उतरने का साहस नहीं दिखा पाया। 

देहरादून में तो नामांकन केंद्र पर ही प्रत्याशी बदला गया, जबकि नैनीताल में प्रत्याशी तय समय पर नामांकन केंद्र पर नहीं पहुंचा। अब अल्मोड़ा, पौड़ी व हरिद्वार सीटों पर दल ने प्रत्याशी तो खड़े किए हैं, लेकिन इनमें कोई बड़ा नाम नहीं है। 

दल के सभी बड़े नेता मसलन, केंद्रीय अध्यक्ष दिवाकर भट्ट, काशी सिंह ऐरी, पुष्पेश त्रिपाठी, नारायण सिंह जंतवाल, त्रिवेंद्र पंवार चुनावों से कन्नी काट गए हैं। इनके चुनाव लडऩे से दल का ग्राफ बढ़ने की उम्मीद भी दी क्योंकि ये सभी जाने पहचाने चेहरे हैं। अब जिस तरह से उक्रांद चुनाव लड़ रहा है उससे साफ है कि दल लोकसभा चुनावों को लेकर कतई गंभीर नहीं है। 

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