Lok Sabha Elections 2019: महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में लोकतंत्र के आगे घुटने टेकता नक्सलवाद
Lok Sabha Elections 2019. नक्सलवाद प्रभावित महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जनपद में अब नक्सलवाद लोकतंत्र के आगे घुटने टेकता नजर आ रहा है।
गढ़चिरौली (महाराष्ट्र), ओमप्रकाश तिवारी। नक्सलवाद प्रभावित महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जनपद में अब नक्सलवाद लोकतंत्र के आगे घुटने टेकता नजर आ रहा है। दो दिन पहले जनपद की कोरची तहसील के कोचिनारा-बोटेकसा मार्ग पर नक्सलियों द्वारा लगाए गए मतदान बहिष्कार के पोस्टर और बैनर ग्रामीणों ने जला दिए।
देश के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में मतदान का बहिष्कार बड़ी सामान्य सी घटना मानी जाती रही है। इसमें ग्रामीण भी स्थानीय नक्सली संगठनों का साथ देते थे और उन्हें हर प्रकार का सहयोग भी करते थे। लेकिन अब ग्रामीणों का रुख बदल रहा है। लोकसभा चुनाव की चालू प्रक्रिया के दौरान कोरची तहसील में दिखा ग्रामीणों का रुख आश्चर्यजनक है। नक्सली संगठनों ने दहशत फैलाने के इरादे से मंगलवार को इस तहसील के कोचिनारा-बोटेकसा मार्ग पर मतदान बहिष्कार के बैनर लगाए थे एवं गांवों में पर्चे भी बांट रहे थे। लेकिन इस बैनर की जानकारी मिलने के बाद कोचिनारा, बोटेकसा, सातपुती आदि गांवों के लोगों ने इकट्ठा होकर नक्सलवाद के खिलाफ जमकर नारेबाजी की एवं नक्सलियों द्वारा लगाए गए बैनर-पोस्टर जला डाले।
बता दें कि बुधवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गढ़चिरौली जिले के पड़ोसी लोकसभा क्षेत्र गोंदिया-भंडारा में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि सरकार नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने का प्रयास कर रही है। उन्होंने लोगों से ऐसी शक्तियों को मजबूत न होने देने का आह्वान भी किया था जो शहरी नक्सलियों पर सरकार की कार्रवाई का विरोध करती नजर आती हैं।
गढ़चिरौली में करीब एक साल पहले नक्सलियों और ग्रामीणों में टकराव की शुरुआत तब हुई थी, जब ग्रामीणों ने महाराष्ट्र के प्रसिद्ध त्यौहार गुड़ी पाड़वा के दिन भामरागढ़ तालुका के चार गांवों नेलगुंडा, मिडाडापल्ली, गोनवाड़ा एवं पेनगुंडा के ग्रामीणों ने मिलकर पुलिस एनकाउंटर में मारे गए नक्सल कमांडरों की याद में बनाए गए एक नक्सली स्मारक को ध्वस्त कर दिया था। इसे ग्रामीणों की सोच में आए बड़े बदलाव के रूप में देखा गया था। क्योंकि कुछ समय पहले तक यही ग्रामीण नक्सलियों को न सिर्फ पनाह देते थे, बल्कि उन्हें राशन-पानी भी उपलब्ध कराते थे।
इस क्षेत्र की धोडराज पुलिस चौकी के प्रभारी शिवराज थाडवे ने तब बताया था कि यह स्मारक इस क्षेत्र में नक्सल प्रभुत्व का प्रतीक माना जाता था। नक्सली इसी स्थान पर ग्रामीणों को इकट्ठा होने का फरमान सुनाया करते थे। नक्सली इन दिनों ग्रामीणों के प्रत्येक परिवार से पांच-दस किलो चावल इकट्ठा कर रहे थे। इससे ग्रामीणों में गुस्सा भडका और उन्होंने मिलकर नक्सलियों का स्मारक तोड़ डाला। पुलिस सूत्रों के अनुसार, हालांकि यह स्मारक मूलतः चार गांवों के बीच ही स्थित था। लेकिन इसे तोड़ने में आठ-दस गांवों के लोग शामिल थे। हालांकि इस घटना के कुछ दिनों बाद ही नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर चुके एक नक्सली युवक की जान ले ली थी।
घट रहा है माओवादियों का प्रभुत्वः हंसराज अहीर
चंद्रपुर (महाराष्ट्र)। केंद्रीय गृहराज्यमंत्री हंसराज अहीर का मानना है कि देश में माओवादियों के प्रभुत्ववाले क्षेत्रों में तेजी से कमी आई है। वह इसका श्रेय केंद्र सरकार द्वारा इन क्षेत्रों में किए जा रहे विकास कार्यों एवं सुरक्षा बलों की मुस्तैदी को देते हैं।
गृहराज्यमंत्री हंसराज अहीर।
चंद्रपुर लोकसभा क्षेत्र से चार बार सांसद रहे हंसराज अहीर इस बार फिर भाजपा के उम्मीदवार है। दैनिक जागरण से बात करते हुए उन्होंने नक्सलवाद की समस्या पर खुलकर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि 2014 के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से आज की तुलना की जाए तो जमीन-आसमान का अंतर नजर आएगा। मोदी सरकार अतिवादी वाम संगठनों अर्थात सीपीआई(एम) पर काबू पाने में काफी हद तक सफल रही है। उनके अनुसार केंद्र सरकार ने नक्सलप्रभावित राज्यों की सरकारों के साथ मिलकर कई कारगर कदम उठाए हैं। इनमें सड़कों के निर्माण, सिंचाई योजनाएं, कौशल विकास योजनाएं आदि शामिल रही हैं। पिछले वर्ष अप्रैल में मारे गए 40 नक्सलियों की घटना की ओर इशारा करते हुए अहीर कहते हैं कि जब जरूरत पड़ी है, सुरक्षाबलों ने भी सख्त कदम उठाए हैं। इस प्रकार दोहरे प्रयासों से नक्सलवाद पर काफी हद तक काबू पाया जा सका है।
अहीर के अनुसार सुरक्षाबलों को अच्छे हथियार देने के साथ-साथ उनके कैंपों की सुरक्षा के लिए नाइटविजन कैमरे एवं ड्रोन का भी इस्तेमाल किया जाने लगा है। जिसके कारण अब सुरक्षाबलों के कैंप पर नक्सली हमला आसान नहीं रह गया है। अच्छे हथियार एवं सुरक्षा उपकरण मिलने से हमारे जवानों का मनोबल भी बढ़ा है। उनके अनुसार केंद्र सरकार द्वारा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए विशेष केंद्रीय सहायता (एससीए) की योजना तैयार की गई है। इसके तहत सड़कों, पुलों और सिंचाई सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है। यही कारण है कि कभी 11 राज्यों के 90 जिलों में फैला नक्सलवाद अब छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों तक सीमित हो गया है।