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Jharkhand Lok Sabha Election 2019 : हरदिल अजीज होते हुए भी हार गए थे रूसी मोदी

Lok Sabha Election 2019. टाटा स्टील के चेयरमैन सह प्रबंध निदेशक (सीएमडी) रहे रूसी मोदी वर्ष 1998 के आमचुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार थे। उनकी टक्कर भाजपा की आभा महतो से थी।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sun, 24 Mar 2019 10:40 AM (IST)Updated: Sun, 24 Mar 2019 10:40 AM (IST)
Jharkhand Lok Sabha Election 2019 : हरदिल अजीज होते हुए भी हार गए थे रूसी मोदी
Jharkhand Lok Sabha Election 2019 : हरदिल अजीज होते हुए भी हार गए थे रूसी मोदी

जमशेदपुर [वीरेंद्र ओझा]।  आम धारणा यही है कि चुनाव में वही उम्मीदवार जीत सकता है, जो अपने क्षेत्र में सबका चहेता हो, ऊंची शख्सियत हो, बेदाग हो। लेकिन ये मानक रूसी मोदी के मामले में फेल हो गए थे। टाटा स्टील के चेयरमैन सह प्रबंध निदेशक (सीएमडी) रहे रूसी मोदी वर्ष 1998 के आमचुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार थे। उनकी टक्कर भाजपा की आभा महतो से थी। मोदी ने जमकर प्रचार किया, पैसे भी खूब खर्च किए। इसके बावजूद आभा महतो से 97433 वोट से हार गए थे।

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पुराने कांग्रेसी जगदीश नारायण चौबे बताते हैं कि रूसी मोदी कांग्रेसी विचारधारा के थे। उनके पिता सर होमी मोदी कभी उत्तर प्रदेश के राज्यपाल थे, तो भाई पीलू मोदी लोकसभा सदस्य रहे थे। टाटा स्टील से सेवानिवृत्त होने के पांच साल बाद उन्हें भी चुनाव लडऩे की इच्छा हुई। 1998 के चुनाव में उन्होंने जमशेदपुर संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवारी का आवेदन कांग्रेस आलाकमान को भेजा था, लेकिन जब उनकी जगह पटमदा के घनश्याम महतो को टिकट मिल गया तो निराश हो गए। रूसी मोदी तब के धाकड़ मजदूर नेता डॉ. एमके अखौरी (अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा के नाना) के घर आदित्यपुर पहुंचे। पूरी बात बताते हुए कहा कि वे निर्दलीय चुनाव लडऩा चाहते हैं, आप लोग मदद करें। सभी ने मदद का आश्वासन दिया और पूरे चुनाव में मदद भी की। जब चुनाव परिणाम आया तो आभा महतो को 2,96,686 और रूसी मोदी को 1,99,253 वोट मिले। चुनाव में उनकी मदद करने वालों में पूर्व विधायक सनातन माझी, डॉ. एमके अखौरी, लखनचंद्र दास, जगदीश नारायण चौबे समेत कई कांग्रेसी शामिल थे। 

गले में ढोलक लटकाकर घूमते

रूसी मोदी को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ढोलक चुनाव चिह्न मिला था। वह सचमुच का एक ढोलक रंगीन कपड़े से लपेटकर गले में लटका लेते थे। एक-एक बार में लगातार दो-तीन घंटे घूमते थे। बीच-बीच में छोटी छड़ी से ढोलक बजाते भी थे। इतनी बड़ी शख्सियत को इस तरह ढोलक बजाते देख लोग दंग रह जाते थे। मोदी को वर्ष 1989 में पद्मविभूषण भी मिल चुका था। सीएच एरिया में उनका कार्यालय था, जो सुबह नौ से शाम सात बजे तक खुला रहता था। वे चुनाव प्रचार टाटा सुमो से करते थे। वे सभी मतदाताओं से यही कहते थे 'मैं आपको जानता हूं, आप मुझे जानते हैंÓ, बस यही काफी है। मैं जीत गया तो आपके सारे तकलीफ मेरे हो जाएंगे। 

निरूप महंती भी हारे

जमशेदपुर संसदीय क्षेत्र से रूसी मोदी के बाद टाटा स्टील के बड़े अधिकारी निरूप महंती भी चुनाव लड़ चुके हैं। उन्हें वर्ष 2014 के चुनाव में झामुमो ने उम्मीदवार बनाया था। जी-तोड़ मेहनत करने के बावजूद महंती तीसरे नंबर पर रहे। इसमें विद्युत वरण महतो विजयी रहे, जबकि झाविमो के टिकट पर डॉ. अजय कुमार दूसरे स्थान पर थे।

दिलचस्प चुनाव

  • कांग्रेस से थी चुनाव लडऩे की इच्छा, निराश होकर निर्दलीय लड़े
  • पिता थे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, भाई पीलू मोदी लोकसभा सदस्य
  • दूसरे नंबर पर रहे टाटा स्टील के पूर्व अधिकारी
  • भाजपा की आभा महतो से 97,433 वोट कम मिले

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