Chunavi किस्सा: एक छात्र जो अपने घर से दिल्ली UPSC का इंटरव्यू देने आया और सांसदी का टिकट लेकर लौटा; फिर...
Lok Sabha Election 2024 चुनावी किस्से की सीरीज में आज हम आपके लिए लाए हैं एक ऐसे नेता की कहानी जो अपने घर से 1200 किलोमीटर दूर दिल्ली लोक सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा पास कर इंटरव्यू देने आया था लेकिन यहां से नौकरी नहीं सांसदी का टिकट लेकर अपने जिले यानी बिहार के दरभंगा वापस लौटा। पढ़िए पूरा किस्सा
चुनाव डेस्क, नई दिल्ली। सोचिए आप अपने घर से करीब 1200 किलोमीटर दूर सबसे इज्जतदार मानी जाने वाली नौकरी का इंटरव्यू देने गए हों। वहां किसी से आपकी मुलाकात हो और वो इंटरव्यू देने से रोककर चुनाव लड़ने को कहे तो ऐसे में आप क्या चुनेंगे? सोच में पड़ गए ना, लेकिन बिहार के एक युवा ने उस वक्त तनिक भी नहीं सोचा और टिकट लेकर बिना प्रैक्टिस किए ही राजनीति के पिच पर उतर गया। वह युवा कोई और नहीं बिहार के दरभंगा जिले के रहने वाले राम भगत पासवान थे।
बिहार में रोसड़ा लोकसभा सीट से दो बार कांग्रेस से सांसद और एक बार राज्यसभा सदस्य रहे दरभंगा के पतोर क्षेत्र के मधुबन निवासी राम भगत पासवान के परिवार में राजनीति में अब कोई सक्रिय नहीं है। पत्नी विमला देवी (85) प्रधानाध्यापक पद से सेवानिवृत्ति के बाद परिवार के साथ लहेरियासराय में रहती हैं।
राम भगत पासवान वर्ष 1970 में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की मुख्य परीक्षा पास करने के बाद इंटरव्यू देने दिल्ली आए तो उनकी मुलाकात पूर्व मंत्री ललित नारायण मिश्रा, विनोदानंद झा और नागेंद्र झा से हुई थी। उन लोगों ने उन्हें इंटरव्यू देने से रोक दिया और कांग्रेस से जोड़कर वर्ष 1971 में रोसड़ा संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार बनवा दिया।
रामभगत पासवान बिना किसी राजनीतिक अनुभव के मैदान में पहुंच गए। उनके पास सिर्फ पार्टी का नाम था। उनके पास प्रचार के लिए एक साइकिल होती थी। नाव पर साइकिल रखकर दियारा क्षेत्र का भ्रमण करने निकले थे। चुनाव में उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार रामसेवक हजारी को पराजित कर दिया था।
चुनाव के लिए छोड़ी नौकरी
उस दौरान रोसड़ा लोकसभा क्षेत्र में दरभंगा के बहेड़ी और घनश्यामपुर विधानसभा क्षेत्र सहित समस्तीपुर के वारिसनगर, सिंघिया, रोसड़ा और हसनपुर आते थे। चुनाव लड़ने के लिए उन्हें सीएम कॉलेज स्थित डाकघर के पोस्टमास्टर की नौकरी छोड़नी पड़ी। डेढ़ सौ रुपये की नौकरी छोड़ने से पत्नी के 75 रुपये के वेतन पर आश्रित होना पड़ा था।
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पहली बार चार पहिया का किया उपयोग
आपातकाल के बाद साल 1977 में राम भगत पासवान भारतीय लोकदल से लड रामसेवक हजारी के हाथों चुनाव हार गए तो राज्यसभा के सदस्य बनाए गए। साल 1984 के चुनाव में उन्होंने एक बार फिर लोकदल से प्रत्याशी रहे रामसेवक हजारी को पराजित कर दिया था।
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इस चुनाव में पहली बार उन्होंने प्रचार के लिए चारपहिया वाहन उपयोग किया था। चार सौ रुपये प्रतिमाह की दर से गाड़ी और चालक भाड़े पर लिया था। राशि चंदे से प्राप्त हुई थी। इसके बाद वर्ष 1989 और 1996 के चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। 12 जुलाई, 2010 को उनका निधन
हो गया।
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अब न रही पहले सी राजनीति
राम भगत पासवान की पत्नी विमला देवी कहती हैं कि पति के सांसद रहने के बाद भी नौकरी नहीं छोड़ी और पूरी ईमानदारी से अपनी ड्यूटी की। तीन पुत्र अरविंद कुमार, तेजनारायण मणि, सरोज कुमार और दो पुत्रियां कविता कुमारी और कल्पना कुमारी हैं। सभी अपने रोजी-रोजगार में लगे हैं। राजनीति में कोई नहीं है। मां के साथ पुत्र तेजनारायण मणि रहते हैं। कहते हैं, अब पहले वाली राजनीति नहीं है।
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