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    Election 2024: पार्टी बनाई और भूल गए, अधिकांश दल नहीं लड़ते हैं चुनाव

    Updated: Thu, 07 Mar 2024 04:02 AM (IST)

    लोक प्रतिनिधित्व कानून के तहत यदि कोई दल एक बार रजिस्टर्ड हो जाता है तो उसके रजिस्ट्रेशन को रद नहीं किया जा सकता है। इसके चलते राजनीतिक दल बेखौफ रहते हैं। यह बात अलग है कि चुनाव सुधारों के क्रम में आयोग ने सरकार को इसके लिए एक प्रस्ताव दिया था। इसमें गंभीर मामलों में दलों के रजिस्ट्रेशन को रद करने का अधिकार भी मांगा है जो लंबित है।

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    2019 के लोकसभा चुनाव में 623 पार्टियों ने लड़ा था चुनाव।

    अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। चुनाव आयोग देश में राजनीतिक दलों की तेजी से बढ़ रही संख्या और उनके रवैये से चिंतित है। लंबे-चौड़े दावों और बड़े- बड़े नामों से दल तो बना लिए गए, लेकिन अधिकांश गंभीरता से चुनाव नहीं लड़ते हैं या फिर लड़ते ही नहीं।

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    ऐसे में लोकतंत्र को मजबूती देने की जगह चुनावी व्यवस्था के सामने वे एक बोझ जरूर बन गए हैं, क्योंकि ये भले ही चुनाव लड़ें या न लड़ें, आयोग को इनके लिए भी सारी मशक्कत ठीक वैसे ही करनी पड़ती है, जैसी गंभीरता से चुनाव लड़ रहे दलों के लिए की जाती है। चौंकाने वाली बात यह है ऐसे दलों का आंकड़ा कोई सौ-दो सौ नहीं, बल्कि दो हजार से ज्यादा है। इनमें से अधिकांश ऐसे हैं, जिन्होंने एक बार भी चुनाव नहीं लड़ा है। चुनाव आयोग ऐसे दलों की चुनौतियों से निपटने में जुटा हुआ है।

    गैर-मान्यता प्राप्त दलों को हटाया

    हाल के दिनों में आयोग ने कई चुनावों से निष्क्रिय और सालाना रिपोर्ट न देने वाले रजिस्टर्ड करीब चार सौदों के खिलाफ कार्रवाई भी की है। इसके तहत इन दलों को रजिस्टर्ड गैर-मान्यता प्राप्त दलों की सूची से हटा दिया है । साथ ही इन्हें दिए गए चुनाव चिह्न को छीनते हुए इन्हें निष्क्रिय घोषित कर दिया है। चुनावी चंदे का हिसाब न देने और पिछले चुनावों के खर्च का ब्योरा प्रस्तुत न करने पर करीब ढाई सौ दलों को आयकर में मिलने वाली उनकी छूट को समाप्त करने की भी सिफारिश की है।

    आयोग का मानना है कि निष्क्रिय और खानापूर्ति के लिए चुनाव लड़ने वाले दलों के खिलाफ कार्रवाई जरूरी है, क्योंकि ये चुनावी व्यवस्था पर एक बोझ हैं। इससे चुनावों में अव्यवस्था भी फैलती है। आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में करीब 28 सौ दलों में से 623 ने ही चुनाव लड़ा था। इनमें भी गंभीरता से चुनाव लड़ने वाले दल सिर्फ 60 थे ।

    इसलिए बढ़ रही दलों की संख्या

    चुनावी विश्लेषकों के मुताबिक राजनीतिक दलों की संख्या बढ़ने के पीछे बड़ी वजह दलों से जुड़ा मौजूदा रजिस्ट्रेशन नियम है । इसमें कोई भी दल सिर्फ सौ ऐसे समर्थकों (जिनका नाम मतदाता सूची में दर्ज हो) को जोड़कर और 10 हजार रुपये की फीस चुकाकर चुनाव आयोग में खुद को रजिस्टर करा लेता है। इसके साथ उसे टैक्स सहित वह तमाम छूट मिल जाती हैं, जो दल बनाने के इस खेल को रफ्तार देती हैं।

    आयोग के मुताबिक 2018-19 में 199 गैर मान्यता प्राप्त रजिस्टर्ड दलों ने 445 करोड़ की टैक्स छूट ली थी, जबकि 2019-20 में 219 गैर-मान्यता प्राप्त दलों ने 608 करोड़ की टैक्स छूट ली थी। हालांकि, आयोग ने आडिट रिपोर्ट पेश न करने पर इन दलों के खिलाफ कार्रवाई की थी । इन्हें निष्क्रिय सूची में डाल दिया था । गैर मान्यता प्राप्त रजिस्टर्ड करीब 28 सौ दलों में करीब 740 दलों का गठन 2019 के बाद हुआ है।

    रजिस्ट्रेशन नहीं हो सकता रद

    लोक प्रतिनिधित्व कानून के तहत यदि कोई दल एक बार रजिस्टर्ड हो जाता है तो उसके रजिस्ट्रेशन को रद नहीं किया जा सकता है। इसके चलते राजनीतिक दल बेखौफ रहते हैं। यह बात अलग है कि चुनाव सुधारों के क्रम में आयोग ने सरकार को इसके लिए एक प्रस्ताव दिया था। इसमें गंभीर मामलों में दलों के रजिस्ट्रेशन को रद करने का अधिकार भी मांगा है, जो लंबित है।