Lok Sabha Result 2024: बसपा ने उतारे सबसे अधिक 35 मुस्लिम प्रत्याशी, किस दल ने उतारे कितने उम्मीदवार? जानिए इस बार क्यों टूटा भरोसा?
Lok Sabha Result 2024 लोकसभा चुनाव समाप्त होने के बाद अब वोटों की गिनती बाकी है। सभी की नजर 4 जून को होने वाली मतगणना पर है। इस चुनाव में बसपा ने सबसे अधिक मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे। हालांकि कई दलों ने मुस्लिम उम्मीदवारों से किनारा किया। आखिर इस बार इन पर पार्टियां क्यों भरोसा नहीं कर पाईं पढ़िए रिपोर्ट।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के पहले दो चरणों तक सब कुछ सामान्य था कि इसी बीच कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की भतीजी मारिया आलम ने 29 अप्रैल को उत्तर प्रदेश की एक जनसभा में भाजपा के विरुद्ध "वोट जिहाद " की अपील की तो मुस्लिम फैक्टर का प्रवेश हो गया।
रही-सही कसर सात मई को राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने पूरी कर दी। उन्होंने मुस्लिमों को आरक्षण का हकदार बताकर अन्य मुद्दों को हाशिये पर ढकेल दिया। इसके बाद चुनाव प्रचार की दिशा और भाषा ही बदल गई। भाजपा भी चुप नहीं रही। विजय के सारे मंत्र पोथी से बाहर आने लगे।
मुस्लिम मुद्दा उछाला जाने लगा। दोनों तरफ बेताबी बढ़ी और सवालों का जवाब भी उसी अंदाज में मिलने लगा। अब इंतजार है उन क्षेत्रों के परिणाम का, जहां का वोट प्रतिशत सर्वाधिक है। सामान्य से ऊपर है। इनमें मुस्लिम आबादी वाली सीटें ही सबसे ज्यादा हैं।
जीत की गारंटी हुई कम
इस बार मुस्लिमों को टिकट देने से उन दलों ने भी कन्नी काट ली, जिन्हें इस समुदाय का वोट मिलता रहा है। ऐसे में यह प्रश्न मुस्लिमों को मथ रहा है कि उन्हें सिर्फ वोट बैंक भर क्यों मान लिया जाता है? दरअसल भाजपा के अभ्युदय के साथ राजनीति का प्रवाह ऐसा बदला कि मुस्लिम प्रत्याशियों की जीत की गारंटी कम होती गई। ऐसे में मुस्लिम प्रत्याशी उतारने से कई दलों ने परहेज किया।
लालू ने की अनदेखी
कांग्रेस, सपा, तृणमूल, राजद, बसपा, राकांपा एवं वामदलों ने पिछली बार 115 मुस्लिमों को प्रत्याशी बनाया था। इस बार यह संख्या 78 पर सिमट गई, 37 कम। सबसे ज्यादा बसपा ने 35 टिकट दिए। उत्तर प्रदेश में 17 और बाकी अन्य प्रदेशों में। कांग्रेस ने 19 और तृणमूल ने छह मुस्लिमों को ही प्रत्याशी बनाया। आबादी के अनुसार, हिस्सेदारी का नारा देने वाले लालू प्रसाद ने भी अनदेखी की।
बीजेपी ने एक को दिया टिकट
बिहार में मुस्लिमों की 17.70 प्रतिशत आबादी है। फिर भी सिर्फ दो टिकट दिए। लालू को पता था कि राजद को मुस्लिम वोट तभी मिलेगा जब उन्हें हिंदुओं का समर्थन मिलेगा । मुसलमानों को जब लगेगा कि राजद के पास हिंदू का समर्थन नहीं है तो वह ओवैसी की पार्टी के साथ खड़े हो सकते हैं।
ऐसे में लालू ने टिकटों में मुस्लिमों की हिस्सेदारी घटाकर यादवों की बढ़ा दी। भाजपा ने सिर्फ केरल में एक मुस्लिम प्रत्याशी दिया। उसके सहयोगी जदयू ने भी एक मुस्लिम को टिकट थमाकर अपने समाजवादी आईने को साफ कर लिया।
अन्य मुद्दों पर भारी
राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार इसे वोट तंत्र की कड़वी सच्चाई मानते हैं। उनका कहना है कि मुस्लिमों को कोई संतुष्ट करने का वादा करके उन्हें अपना बताता है तो कोई अल्पसंख्यक होने का डर दिखाकर हित रक्षक होने का दावा करता है।
भाजपा भी अपनी लाइन के विपरीत मानकर उन्हें अक्सर कठघरे में ही खड़ा करते दिखती है। ऐसे में साफ है कि लोकतंत्र की लड़ाई जब चरम पर पहुंचने लगती है तो मुस्लिम मुद्दा अन्य सभी मुद्दों पर भारी पड़ जाता है।
ओवैसी से सहमति, पर वोट नहीं
इस बार मुस्लिमों का एक ट्रेंड और देखने को मिला। अधिकांश मुस्लिम ओवैसी की बातों के मुरीद हैं, लेकिन उन्हें वोट नहीं करने के लिए विवश हैं। उन्हें पता है कि असदुद्दीन ओवैसी के पास सिर्फ मुस्लिमों का वोट है, हिंदुओं का नहीं। देश में गिनी-चुनी सीटों पर ही मुस्लिम अपने दम पर अपने समुदाय के प्रत्याशी को जीत दिला सकते हैं।
अन्य सीटों पर भाजपा को हराने के लिए उन्हें वैसे दलों को समर्थन देना मजबूरी है, जिनके पास हिंदू वोटर भी हैं। उदाहरण बिहार है, जहां विधानसभा चुनाव-2020 में ओवैसी की पार्टी को पांच सीटों पर जीत मिली थी। फिर भी लोकसभा चुनाव में 70 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाली किशनगंज सीट के अतिरिक्त कहीं भी मुस्लिमों का समर्थन नहीं दिखा।
मुस्लिम की मजबूरी, विपक्ष की सहमति
पिछले तीन चुनावों से भाजपा का व्यापक होता जनाधार मुसलमानों के लिए चिंता का विषय है। मुस्लिम वोटर भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए हर वैसे दल के साथ खड़ा नजर आता है जो भाजपा को टक्कर दे। विपक्षी दल मुस्लिमों की इस मजबूरी को समझते हैं।
इसीलिए उनका प्रयास मुस्लिमों से अधिक हिंदू वोटरों से समर्थन लेने का होता है। वह मानकर चलते हैं कि भाजपा के विरुद्ध लड़ाई में आ जाने पर मुस्लिम वोटर खुद उनके साथ खड़ा हो जाएगा। असम का बरपेटा सीट उदाहरण है जहां कांग्रेस का मुस्लिम प्रत्याशी 1967 से लगातार जीतते आ रहा है।
हिंदू वोटर के खिसकने का खतरा
एक लाख 40 हजार वोट से जीतने वाले मुस्लिम सांसद को इस बार बेटिकट करके कांग्रेस ने हिंदू प्रत्याशी उतार दिया। कभी इस सीट से पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद भी जीता करते थे। कांग्रेस को पता था कि एक छोटी सी गलती से भाजपा को बड़ा मौका मिल जाएगा। मुस्लिमों के प्रति हमदर्दी का प्रदर्शन हुआ तो हिंदू वोटर के खिसक जाने का खतरा हो सकता है।
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