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    अतीत के आईने से: हरियाणा के चार पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस छोड़ बना चुके हैं अलग पार्टी, तीन को करना पड़ा विलय; चौथे पर भी संकट के बादल

    Updated: Tue, 09 Apr 2024 01:09 PM (IST)

    Lok Sabha Election 2024 हरियाणा में अब तक चार पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस को छोड़कर अपनी अलग पार्टी बना चुके हैं। हालांकि उनमें से तीन को बाद में वापस कांग्रेस में विलय करना पड़ा था जबकि चौथी पार्टी के राज्य दर्ज पर खतरा बना हुआ है। चारों पार्टियां लोकसभा चुनावों में भी कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाईं। पढ़ें रिपोर्ट ..

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    चारों पार्टियां लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाईं।

    परमजीत सिंह, गोहाना। हरियाणा के चार पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस को छोड़कर अलग राह पर चले थे। चारों ने अपनी अलग पार्टियां बनाई थीं। उनकी पार्टियों ने प्रदेश की राजनीति में अच्छा प्रदर्शन भी किया, लेकिन लोकसभा चुनाव में ज्यादा कमाल नहीं कर पाईं।

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    किसी भी पूर्व मुख्यमंत्री की पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रतिशत से अधिक वोट हासिल नहीं पाई। हालात ऐसे बने कि तीन पूर्व सीएम को अपनी पार्टियों को कांग्रेस में विलय करना पड़ा। इनेलो के स्टेट पार्टी के दर्जे पर खतरा बना हुआ है।

    चुनी अलग राह

    हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह, तीसरे मुख्यमंत्री बंसीलाल, पांचवें मुख्यमंत्री चौ. देवीलाल व छठे सीएम भजनलाल की शुरुआती राजनीति की पृष्ठभूमि कांग्रेस से जुड़ी थी। इन्होंने अपनी राजनीति कांग्रेस से ही शुरू की थी। एक नवंबर 1966 को हरियाणा के अस्तित्व में आने के बाद जैसे-जैसे प्रदेश की राजनीति आगे बढ़ती गई, इन चारों नेताओं ने कांग्रेस से अलग राह चुन ली और अपनी पार्टियां बनाईं।

    सबसे पहले राव बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर विशाल हरियाणा पार्टी (वीएचपी) बनाई। उसके बाद चौ. देवीलाल अलग हुए हुए और उन्होंने इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) का गठन किया। उसके बाद बंसीलाल ने कांग्रेस छोड़कर हरियाणा विकास पार्टी (हविपा) बनाई। सबसे आखिर में भजनलाल ने कांग्रेस छोड़कर हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) का गठन किया।

    राज्य में बनी सरकार

    हरियाणा जनहित कांग्रेस को छोड़कर अन्य तीनों पार्टियों के नेताओं ने प्रदेश की सत्ता को संभाला। चौ. देवीलाल अपनी पार्टी का गठन करने से पहले दिल्ली की राजनीति का केंद्र जरूर रहे। उस समय वह भारतीय लोकदल, जनता पार्टी, जनता दल से जुड़े हुए थे।

    लेकिन इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के गठन के बाद उसका ज्यादा अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा। लोकसभा चुनाव में चारों दल देश में होने वाले कुल मतदान में से एक प्रतिशत मत भी हासिल नहीं सके थे। हालात ऐसे बनते गए कि बीरेंद्र सिंह, बंसीलाल और भजनलाल को अपनी पार्टियों का कांग्रेस में ही विलय करना पड़ा। अब इनेलो का स्टेट पार्टी का दर्जा खतरे में है।

    राव बीरेंद्र सिंह ने वीएचपी बनाई

    इन्होंने 1952 में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। उन्होंने किसान मजदूर पार्टी बनाई, लेकिन बाद में कांग्रेस से मिले। हरियाणा गठन के बाद 1967 में अपनी विशाल हरियाणा पार्टी बनाई और मुख्यमंत्री बने। 1971 में सांसद बने। उन्होंने 1978 में अपनी पार्टी को कांग्रेस में विलय कर दिया।

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    चौ. बंसीलाल ने बनाई हविपा

    इन्होंने अपनी राजनीति कांग्रेस से शुरू की। कांग्रेस से तीन बार मुख्यमंत्री बने। केंद्र में भी रक्षा मंत्री रहे। 1996 में कांग्रेस से अलग होकर हरियाणा विकास पार्टी बनाई और मुख्यमंत्री बने। 2004 में अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय किया।

    चौधरी देवीलाल ने बनाया था इनेलो 

    इन्होंने शुरुआत में देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। आजादी से पहले ही कांग्रेस से उन्होंने राजनीति शुरू की। हरियाणा को अलग राज्य के रूप में गठन में सक्रिय भूमिका निभाई। 1971 में कांग्रेस छोड़ दी। आपातकाल के समय उनको जेल में डाल दिया गया। चौ. चरण सिंह के साथ मिलकर भारतीय लोकदल का गठन किया।

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    इसके बाद वे जनता पार्टी और जनता दल से दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। वे हमेशा हरियाणा के साथ केंद्र की राजनीति में भी सक्रिय रहे और 1989 में उपप्रधानमंत्री बने। 1998 में उन्होंने अपना इंडियन नेशनल लोकदल बनाया। लोकदल की बागडोर उनके बेटे पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला संभाल रहे हैं।

    चौ. भजनलाल की हजकां

    भजनलाल की राजनीति का सफर उलटफेर से भरा रहा। शुरुआत में वे कांग्रेस से विधायक बने। बाद में जनता पार्टी में गए और मुख्यमंत्री बने। 1977 में देवीलाल की बहुमत वाली सरकार को गिराने पर चर्चा में आए। बाद में कांग्रेस से दो बार मुख्यमंत्री बने। 2007 में वह कांग्रेस से अलग हो गए थे और हरियाणा जनहित कांग्रेस का गठन किया। 2016 में उनके बेटे ने हरियाणा जनहित कांग्रेस का कांग्रेस में विलय किया।

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