Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'वंचित' बनाते 131 सीटों का सुरक्षित घेरा, एससी और एसटी मतदाता तय करने लगे राजनीतिक दशा-दिशा

    Updated: Tue, 19 Mar 2024 11:27 AM (IST)

    Lok Sabha Election 2024 2019 के लोकसभा चुनाव में इसका परिणाम साफ दिखा। भाजपा एससी के लिए आरक्षित 46 सीटें जीती तो कांग्रेस मात्र पांच और एसटी वर्ग की 31 सीटें भाजपा की झोली में आईं तो कांग्रेस को सिर्फ चार पर जीत मिली। वर्तमान में एससी की 84 में से 46 पर भाजपा का कब्जा है। एसटी की 70 प्रतिशत सीटें भाजपा के पास हैं।

    Hero Image
    'वंचित' बनाते 131 सीटों का सुरक्षित घेरा, एससी और एसटी मतदाता तय करने लगे राजनीतिक दशा-दिशा (फोटो जागरण ग्राफिक्स)

    जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। Lok Sabha Election 2024: मंडल-कमंडल की राजनीति के दौर से निकले देश ने आबादी में प्रभुत्व रखने वाले ओबीसी यानी अन्य पिछड़े वर्ग को यदि राजनीतिक दलों की प्राथमिकता में अग्रिम पंक्ति पर खड़ा कर दिया है तो वंचित कहे जाने वाले अनुसूचित जाति (अजा) और अनुसूचित जनजाति वर्ग (अजजा) ने भी अपनी राजनीतिक चेतना से दलों को चेतावनी दे दी है कि उनका हाथ छोड़कर सत्ता की सीढ़ी चढ़ना अब आसान नहीं है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'वंचित' बनाते 131 सीटों का सुरक्षित घेरा

    यह वर्ग कुल 543 सीटों आरिक्षत 131 सीटों पर तो सत्ता का सुरक्षित घेरा देता ही है, साथ ही विभिन्न राज्यों में इनके अतिरिक्त सीटों पर भी हार-जीत में इनकी निर्णायक भूमिका रहती है। 2024 के महासमर में भी यह रणनीति साफ दिखाई दे रही है। इन दोनों वर्गों पर अपनी पकड़ मजबूत कर चुकी भाजपा हर हाल में इन्हें थामे रखना चाहती है तो कांग्रेस इन्हें फिर से पाने के लिए परेशान है। वहीं, इन वर्गों की राजनीति करने वाले क्षेत्रीय दलों के साथ अन्य पार्टियां भी इस वोटबैंक में हिस्सेदारी के लिए हाथ-पैर मारती दिखाई दे रही हैं।

    अनुसूचित वर्ग के लिए 84 सीटें हैं आरक्षित

    देश की कुल आबादी में लगभग 17 प्रतिशत भागीदारी रखने वाले अनुसूचित वर्ग के लिए 84 तो करीब नौ प्रतिशत आबादी वाले अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। कभी यह वर्ग सामाजिक-राजनीतिक उपेक्षा का शिकार भले ही रहा, लेकिन ईवी रामासामी, ज्योतिबाराव फुले और डॉ. भीमराव आंबेडकर जैसे महापुरुष अनुसूचित जाति वर्ग के सामाजिक उत्थान की प्रेरणा बने तो पंजाब से निकल उत्तर प्रदेश को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले बसपा संस्थापक कांशीराम, बाबू जगजीवन राम, मायावती सरीखे नेताओं ने इस वर्ग की राजनीतिक चेतना को जगाया।

    कितनी सीटों पर किसे मिली जीत?

    • 84- एससी के लिए आरक्षित सीटों में से भाजपा 40 तो कांग्रेस सात ही जीत सकी थी 2014 में।
    • 46 एससी सीटें भाजपा जीती तो कांग्रेस मात्र पांच पर सिमट गई 2019 के लोकसभा चुनाव में।
    • 47- एसटी के लिए आरक्षित सीटों में से भाजपा ने 27 पर परचम लहराया तो कांग्रेस पांच पर सिमट गई थी 2014 में।
    • 31 एसटी सीटें भाजपा की झोली में आईं तो कांग्रेस को सिर्फ चार पर जीत मिली 2019 में।

    इन दलों ने की अनुसूचित जनजाति वर्ग की राजननीति

    इसी तरह अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आदिवासी नेता आगे आए और सत्ता के शिखर तक पहुंचे। राजनीतिक परिदृश्य को समझें तो जहां बसपा, लोजपा, आरपीएल, झामुमो जैसे दल खालिस अनुसूचित वर्ग की ही राजनीति करते थे, वहां इस वर्ग ने इन दलों का साथ दिया और बाकी जगह यह कांग्रेस का पारंपरिक वोटबैंक दशकों तक बने रहे। 2014 में राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा के मजबूत होने के साथ ही समीकरण बदलने लगे।

    मायावती का साथ छोड़ भाजपा पर जताया भरोसा

    देश में अनुसूचित जाति की सबसे कद्दावर नेता मायावती का साथ भी छोड़कर इस वर्ग ने भाजपा पर भरोसा जताया तो बसपा शून्य पर सिमट गई। सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, देशभर में एससी-एसटी ने क्षेत्रीय दलों की छतरी छोड़कर भाजपा को कांग्रेस का विकल्प बनाया तो राजनीतिक तस्वीर में भगवा रंग चटख हो गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा अनुसूचित जाति की 84 में से 40 तो कांग्रेस सात सीटें जीत सकी। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 में से भाजपा ने 27 पर परचम लहराया तो कांग्रेस पांच पर सिमट गई। यहां से भाजपा ने अपनी रणनीति को और धार दी।

    पीएम मोदी ने बिछाया कल्याणकारी योजनाओं का 'कालीन'

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कल्याणकारी योजनाओं का 'कालीन' बिछाया तो सुविधा, सम्मान और स्वाभिमान की छड़ी थामे यह दोनों वर्ग भाजपा के पीछे-पीछे तेज गति से चल पड़े। तमाम योजनाओं के सहारे भाजपा का जो लाभार्थी वोटबैंक बना, उसमें अधिक हिस्सेदारी इन वंचित वर्गों के मदाताओं की ही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में इसका परिणाम साफ दिखा। भाजपा एससी के लिए आरक्षित 46 सीटें जीती तो कांग्रेस मात्र पांच और एसटी वर्ग की 31 सीटें भाजपा की झोली में आईं तो कांग्रेस को सिर्फ चार पर जीत मिली। वर्तमान में एससी की 84 में से 46 पर भाजपा का कब्जा है। एसटी की 70 प्रतिशत सीटें भाजपा के पास हैं।

    इन वर्गों के लिए तमाम कल्याणकारी योजनाओं पीएम जनमन योजना जैसे प्रयासों से भगवा खेमा इन्हें थामे रखना चाहता है तो कांग्रेस सहित अन्य दलों के लिए चुनौती है कि कैसे 131 सीटों के इस सुरक्षित घेरे में सेंध लगाई जा सके।

    प्रतीकों की राजनीति का दिखा प्रभाव

    अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के बीच प्रतीकों की राजनीति का पूरा प्रभाव अब दिखाई देने लगा है। भाजपा ने 2017 में अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाले राम नाथ कोविन्द को राष्ट्रपति के पद तक पहुंचाया तो उनके बाद इस स्थान के लिए अनुसूचित जनजाति की द्रौपदी मुर्मु को चुना। माना जाता है कि भाजपा के इस कदम का काफी बड़ा संदेश उक्त वर्गों में गया।

    • 17% भागीदारी है अनुसूचित जाति वर्ग की देश की आबादी में
    • 9% आबादी है देश में अनुसूचित जनजाति वर्ग की

    आंबेडकर के योगदान को किया याद

    भाजपा ने संसद में 26 नवंबर को संविधान दिवस से रूप में मनाने और डॉ. भीमराव आंबेडकर के योगदान को याद करने की परंपरा शुरू की। उनके जीवन से जुड़े स्थानों को पंचतीर्थ के रूप में विकसित कर दिया। पीएम मोदी के प्रयासों से पहली बार संयुक्त राष्ट्र में बाबा साहेब की जयंती मनाई गई। इसे देख अन्य दलों का भी रुख बदला। सपा ने एससी वर्ग के लिए विंग बना दी। आंबेडकर जयंती मनाने लगे।

    कांग्रेस ने भी की पहल- बनाया खरगे को अध्यक्ष

    कांग्रेस ने देशभर के अनुसूचित वर्ग को साधने के प्रयास में मल्लिकार्जुन खरगे को पार्टी अध्यक्ष बना दिया। हालांकि, कांग्रेस के प्रयासों का भी असर दिखा। माना जाता है कि कर्नाटक और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में खरगे के स्थानीय प्रभाव ने भी एससी मतदाताओं को कांग्रेस की ओर मोड़ा।

    यह भी पढ़ें- BJP के लिए इस राज्य में आई अच्छी खबर, गठबंधन होते ही सीट शेयरिंग पर भी डील डन; जानिए कौन है NDA का नया साथी

    यह भी पढ़ें- Lok Sabha Election: एनडीए खेमे से निशाने पर जदयू का तीर, विधानसभा ही नहीं लोकसभा चुनाव में भी दिखी राजग की ताकत

    comedy show banner