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    Lok Sabha Election 2024: बड़बोले नेताओं से पार्टियों ने बनाई दूरी! न टिकट मिला, न प्रचार में जगह

    Updated: Sat, 06 Apr 2024 11:59 AM (IST)

    Lok Sabha Election 2024 हालिया घटनाक्रमों से पता चलता है कि विवादित बयानों से सुर्खियां बटोरने वाले नेताओं को राजनीतिक पार्टियों ने चुनाव के दौरान उतनी तरजीह नहीं दी। ऐसे नेताओं को न ही टिकट दिया गया और न ही चुनावी अभियान में जगह। प्रज्ञा ठाकुर वरुण गांधी समेत इसके कई उदाहरण मौजूद हैं। पढ़ें बयानवीरों पर ये खास रिपोर्ट-

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    Lok Sabha Election 2024: भाजपा, कांग्रेस समेत तमाम दलों ने बयानबाज नेताओं से दूरी बना रखी है।

    अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। राजनीति में आगे बढ़कर बयान देना चर्चा में तो लाता है, पर कभी-कभी उल्टा भी पड़ जाता है। लोकसभा चुनाव में भाजपा, कांग्रेस, सपा और राजद जैसे कई दलों ने बयानबाज नेताओं से दूरी बना रखी है। टिकट नहीं दिया और तरजीह भी नहीं दे रहे।

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    दो महीने पहले तक कई नेताओं को उनके आलाकमान की चुप्पी ने प्रोत्साहित किया, किंतु जब कुछ देने का समय आया तो मुंह फेर लिया। ऐसे दर्जनभर नेता आज चर्चा से दूर हैं। सपा के स्वामी प्रसाद मौर्य, राजद के प्रो. चंद्रशेखर और भाजपा की प्रज्ञा ठाकुर जैसे नेता या तो पार्टियों के विश्राम कक्ष में हैं।

    स्वामी प्रसाद मौर्य खूब बोलते थे। प्रतिक्रिया भी होती थी। आलाकमान की चुप्पी से उनका मनोबल बढ़ता गया, किंतु चुनाव करीब आते ही सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भाव देना बंद कर दिया। उनके बयानों को निजी विचार बताया जाने लगा तो उन्हें दल छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। अलग पार्टी बना ली।

    INDI गठबंधन से टिकट की गुहार

    हिंदू को धर्म नहीं, धोखा बताने वाले स्वामी को अब एक सीट के लिए INDI गठबंधन से गुहार लगानी पड़ रही है। उनके बिगड़े बोलों का खामियाजा उनकी बेटी एवं बदायूं की भाजपा सांसद संघमित्रा मौर्य को भी भुगतना पड़ा। हिमाचल प्रदेश के मंडी से भाजपा प्रत्याशी कंगना रनौत पर अरुचिकर टिप्पणी करने की गाज कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत पर गिरी है। कांग्रेस ने उन्हें महाराजगंज से टिकट देना जरूरी नहीं समझा।

    भाजपा ने भी बनाई दूरी

    भाजपा ने भी अपने कई बयानवीरों को विश्राम दिया है। कई ऐसे सांसदों से दूरी बना ली है, जिन्हें काम के आधार पर नहीं, बल्कि बयानों के चलते जाना जाता है। बिहार के मुजफ्फरपुर के सांसद अजय निषाद के बेतुके बोलों को भी भाजपा ने याद रखा और टिकट काटने में कोताही नहीं की। कोरोना के समय अजय ने देश के सारे मुसलमानों को आतंकी बताया था। मामला अदालत तक भी पहुंचा था।

    उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से वरुण गांधी के बेटिकट होने के पीछे भी ऐसे ही बिगड़े बोल को कारण बताया जा रहा। भोपाल की सांसद प्रज्ञा ठाकुर पर भी दोबारा विचार नहीं किया गया। नाथुराम गोडसे को देशभक्त बताना भारी पड़ गया। दक्षिण दिल्ली के भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी भी बयानों के शिकार हो गए। बसपा सांसद दानिश अली के लिए उन्होंने संसद में ही अपशब्द बोले थे, तब खूब हंगामा हुआ था। असर अब हुआ।

    प्रवेश वर्मा का कटा टिकट

    दिल्ली के एक अन्य सांसद प्रवेश वर्मा को भी बयानों ने ही बेटिकट किया। ढाई वर्ष पहले एक समुदाय पर उन्होंने विवादित बयान दिया था। इन बयानों के चलते भाजपा ने कर्नाटक के सांसद अनंत हेगड़े को भी बेटिकट कर दिया। छह बार के सांसद अनंत पर संविधान बदलने के नाम पर वोट मांगना भारी पड़ गया। ये सारे नेता चुप हैं। चुनावी मंच से गायब भी।

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    रामचरित मानस पर बेतुके बयान

    बिहार में महागठबंधन सरकार में राजद कोटे से मंत्री थे प्रो. चंद्रशेखर। मंत्री रहते हुए रामचरित मानस और तुलसीदास पर बेतुके बयान दिए। मीडिया में आने लगे तो उत्साह बढ़ता गया। इस दौरान राजद मुखिया लालू प्रसाद और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कुछ नहीं कहा। हालांकि, धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से लालू संकेत देते रहे। चंद्रशेखर ने समझने में भूल कर दी। लोकसभा चुनाव में टिकट के दावेदार थे। विवादों में आए तो दावा खत्म हो गया।

    राजद के ही एक अन्य विधायक हैं फतेह बहादुर। दो महीने पहले तक अपने विवादास्पद बयानों के चलते मीडिया में छाये रहे। कुशवाहा बहुल सीटों पर टिकट के दावेदार बन गए, किंतु जब समय आया तो लालू ने दूसरे दलों से लाकर दो कुशवाहा को औरंगाबाद और नवादा सीट से टिकट दे दिया।

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    माहौल बिगाड़ने की आशंका

    पार्टियों को लगता है कि बयानवीर नेता वोट के लिए उर्वर नहीं होते हैं। इसलिए चुनाव के पहले तक उनके बतुके बयानों की अनदेखी की जाती है। उनके दलों की तरफ से प्रतिबंध नहीं लगाया जाता है, पर चुनाव का समय नजदीक आते ही माहौल बिगड़ने की आशंका के चलते शीर्ष नेतृत्व द्वारा उन्हें किनारे लगा दिया जाता है।

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