Lok Sabha Election 2024: बंगाल में इस समुदाय की है निर्णायक भूमिका, टिकीं हैं कई दलों की निगाहें, तृणमूल के सामने ये चुनौती
Lok Sabha Election 2024 पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मतदाता को तृणमूल कांग्रेस का कोर वोट बैंक माना जाता है। अब कई अन्य दलों की नजर भी इस समुदाय पर है। राज्य में 30 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी निर्णायक भूमिका में है। यही वजह है कि तृणमूल कांग्रेस ने इस बार छह मुस्लिम उम्मीदवारों को लोकसभा चुनाव में उतारा है।

राजीव कुमार झा, कोलकाता। बंगाल में मुस्लिम वोट बैंक व तुष्टीकरण की राजनीति हमेशा चर्चा का विषय रही है। राज्य में 30 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी है, जो निर्णायक भूमिका में है। राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से करीब 17 सीटों और 294 विधानसभा सीटों में से लगभग 100 सीटों पर जीत-हार तय करने में उनकी अहम भूमिका है।
तुष्टीकरण के सहारे पहले लगातार 34 वर्षों तक वाममोर्चा ने राज किया। 2011 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में पहुंचने वाली तृणमूल कांग्रेस अब उसी वोट बैंक के सहारे पिछले 13 वर्षों से शासन कर रही है। मुस्लिम मतदाता को तृणमूल का कोर वोट बैंक माना जाता है।
राज्य में मुख्य विपक्षी भाजपा ममता बनर्जी सरकार पर तुष्टीकरण का लगातार आरोप लगाती रही है। बंगाल में सत्ता के आने-जाने के खेल में मुस्लिम वोटरों की बड़ी भूमिका होती है। वे ही तारणहार माने जाते हैं। भाजपा से फिर मिल रही चुनौतियों के बीच ममता फिर मुस्लिम वोटरों के सहारे जीत का दम भर रही हैं। तृणमूल को लगता है कि ये उनका सुरक्षित वोट है। पार्टी ने छह मुस्लिम उम्मीदवार भी उतारे हैं।
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मुर्शिदाबाद में मुस्लिम आबादी 66 प्रतिशत से अधिक
बांग्लादेश से लगे जिलों मुर्शिदाबाद और मालदा में तो मुस्लिम आबादी क्रमश: 66.8 प्रतिशत और 51.27 प्रतिशत तक है। इसके अलावा चार और जिलों, उत्तर दिनाजपुर में 49.92 प्रतिशत, बीरभूम में 37.06 प्रतिशत, दक्षिण 24 परगना में 35.57 प्रतिशत और उत्तर 24 परगना में 30 प्रतिशत से अधिक आबादी है। इन जिलों में मुस्लिमों का खासा दबदबा है, जहां बड़ी संख्या में अवैध घुसपैठिए हैं।
भाजपा इस बात को लेकर लगातार घेरती रही है कि वोट बैंक के चलते बांग्लादेशी घुसपैठियों को तृणमूल संरक्षण दे रही है। सालों से रह रहे घुसपैठियों ने कथित तौर पर वोटर कार्ड से लेकर राशन, आधार कार्ड व पासपोर्ट जैसे दस्तावेज तक बना लिए हैं, जो चुनाव में अहम रोल निभाते हैं।
2011 से ही ममता पर तुष्टीकरण के लग रहे आरोप
ममता पर तुष्टीकरण के आरोप साल 2011 से ही लग रहे हैं, जब वह वाममोर्चा को हटाकर सत्ता में आईं और साल भर बाद ही उन्होंने इमामों के लिए मासिक ढाई हजार रुपये भत्ते की घोषणा कर दी थी। इस पर खासा विवाद हुआ था और मामला अदालत तक पहुंचा था। तुष्टीकरण का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि राज्य में मुसलमानों की आबादी के लगभग 90 प्रतिशत हिस्से को अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) की श्रेणी में रखा गया है। इस आधार पर राज्य सरकार की नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण मिलता है।
यही नहीं बंगाल सरकार ने पिछले साल केंद्रीय ओबीसी सूची में 83 जातियों को शामिल करने की सिफारिश की थी, जिनमें से 73 अकेले मुस्लिम समुदाय से थे। इस पर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने गंभीर आपत्ति जताई। राजनीतिक विश्लेषक प्रो विश्वनाथ चक्रवर्ती के अनुसार, बंगाल में जब ममता वामपंथियों को हराकर सत्ता में आईं तो उन्होंने देखा कि उन्हें अपनी जमीन बनाए रखनी है तो मुस्लिमों का सहयोग बनाए रखना है। इसलिए तुष्टीकरण के पीछे वोट बैंक की राजनीति है।
मुस्लिम वोट पर अन्य दलों की भी नजर
2021 के विधानसभा चुनाव में बंगाल की राजनीति में हुगली जिले के मशहूर सूफी दरगाह फुरफुरा शरीफ के अब्बास सिद्दीकी की अगुवाई में इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आइएसएफ) की एंट्री के बाद से ममता को मुस्लिम वोटों के बंटने का खतरा का भी लगातार सता रहा है।
पिछले साल मुर्शिदाबाद की सागरदिघी विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस-वाम गठबंधन के हाथों करारी हार इसकी प्रमुख वजह है, जिसमें तृणमूल को मुस्लिम वोट बैंक खिसकने का डर सता रहा है। मुस्लिम वोटों पर वामदलों व कांग्रेस की भी नजर रहती है। यहां मुस्लिमों को नजरअंदाज कर किसी भी पार्टी के लिए चुनावी जंग जीतनाआसान नहीं है।
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