Chunavi किस्सा: जब वित्त राज्यमंत्री को हराकर सांसद बने थे केदार पासवान, भाड़े की जीप में किया था प्रचार
Lok Sabha Election 2024 चुनावी किस्सों की सीरीज में आज हम आपके लिए लाए हैं एक ऐसे नेता की कहानी जिसने कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं तत्कालीन वित्त राज्यमंत्री को लोकसभा चुनाव में हरा दिया था। हालात यह थे कि उन्हें क्षेत्र में चुनाव प्रचार करने के लिए जीप भाड़े पर लेनी पड़ी थी लेकिन इसके बावजूद बड़े नेता को शिकस्त देकर उन्होंने सबको चौंका दिया था।
मुकेश कुमार श्रीवास्तव, दरभंगा। दरभंगा जिले के बहेड़ी प्रखंड स्थित चनमाना गांव निवासी केदार पासवान ने 1967 के लोकसभा चुनाव में केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री रहे रामेश्वर साहू उर्फ रामेश्वर महतो को रोसड़ा सीट से 11 हजार, 388 मतों से पराजित किया था।
इससे पहले भी उन्होंने 1962 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़कर कांग्रेस के बड़े नेता रामेश्वर साहू को कड़ी टक्कर दी थी। छह तांगों के सहारे पूरे लोकसभा क्षेत्र का भ्रमण किया और कार्यकर्ताओं में बदलाव का विश्वास जताया था।
जारी रखा संघर्ष
हालांकि, 55 हजार 76 मत लाने के बाद भी वे हार गए थे। उन्हें 29.6 और रामेश्वर साहू को 66.1 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। इस चुनाव में हार के बाद भी उनका संघर्ष जारी रहा था। 1967 में कांग्रेस नेता को चुनौती देने के लिए उनके गांव के लोग भी समर्थन में उतर गए और घर-घर चंदा करने लगे थे।
इसके बाद उनके चुनाव प्रचार के लिए एक जीप भाड़े पर ली गई। इस चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता को हार का सामना करना पड़ा था। चुनाव में केदार पासवान को एक लाख 24 हजार 908 और उनसे पराजित होने वाले कांग्रेस के रामेश्वर साहू को एक लाख 13 हजार 520 मत प्राप्त हुए थे।
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1971 में नहीं मिला टिकट
हालांकि, इसके अगले चुनाव 1971 में पार्टी ने उनका टिकट काट दिया था। उनके बदले पार्टी ने रामसेवक हजारी को टिकट दे दिया। इससे नाराज होकर केदार पासवान निर्दलीय चुनाव लड़ गए। उन्हें शिकस्त मिली और सातवें स्थान पर रहे। कांग्रेस से रामभगत पासवान चुनाव जीत गए। इसके बाद केदार पासवान ने राजनीति से संन्यास ले लिया था। 12 फरवरी, 2016 को उनका निधन हो गया।
आईने से
केदार पासवान वर्ष 1957 में बेनीपुर विधानसभा से चुनाव निर्दलीय लड़े थे। उस दौरान उन्होंने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री पं. हरिनाथ मिश्रा के खिलाफ अपनी दावेदारी पेश की थी। बेनीपुर विधानसभा क्षेत्र का पैदल भ्रमण कर पहचान बनाई थी। केदार पासवान के जुनून को देख हरिनाथ मिश्रा उन्हें अपने पक्ष करने के लिए उनके घर पहुंच गए। लेकिन, वे बैठने के लिए तैयार नहीं हुए।
छात्र जीवन से ही केदार पासवान का राजनीति से गहरा लगाव था। आठवीं पास करने के बाद स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए। जगह-जगह बैठक कर स्वतंत्रता की अलख जगाने लगे। देश आजाद हुआ तो समाजसेवा से जुड़ गए। पौत्र अजीत कहते हैं कि मेरे दादाजी सांसद थे, यह यकीन नहीं हो रहा है। आज के नेताओं के पास काफी शान-शौकत होता है। मेरा घर आज भी छप्पर का है।
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