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    गजब है झारखंड की ये लोकसभा सीट! नक्सली कमांडर और पूर्व डीजीपी को भी मिल चुकी जीत, पढ़ें रोचक जानकारी

    Updated: Sat, 06 Apr 2024 12:54 PM (IST)

    Lok Sabha Election 2024 झारखंड की एक लोकसभा सीट ऐसी भी है जहां से नक्सली कमांडर और पूर्व डीजीपी को भी जीत मिल चुकी है। वहीं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास को हार का सामना करना पड़ा था। 1991 लोकसभा चुनाव में पहली बार यहां कमल खिला था। पढ़ें - झारखंड की इस लोकसभा क्षेत्र से जुड़ी रोचक जानकारी।

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    Lok Sabha Chunav 2024: नक्सली कमांडर से लेकर पूर्व डीजीपी तक बन चुके हैं पलामू के सांसद।

    संदीप केसरी शौर्य, गढ़वा। पलामू लोकसभा क्षेत्र की जनता का जवाब नहीं है। कब किसको सिर पर बिठा ले और किसको खारिज कर दे, इसकी गारंटी नहीं है। यही वजह है कि यहां की जनता लोकसभा में अपना नेतृत्व करने के लिए टॉप नक्सली कमांडर से लेकर पूर्व डीजीपी तक को चुन चुकी है।

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    पूर्व डीजीपी दो बार जीते चुनाव

    2009 में जब टॉप नक्सली कमांडर कामेश्वर बैठा सांसद के लिए चुने गए तो पलामू देशभर में चर्चा का विषय बन गया था। राज्य के पूर्व डीजीपी वीडी राम मोदी लहर पर सवार होकर साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में पलामू से निर्वाचित हुए थे।

    अभी महागठबंधन का प्रत्याशी तय नहीं

    भाजपा ने वीडी राम पर विश्वास करते हुए तीसरी बार प्रत्याशी बनाया है। पलामू लोकसभा सीट को लेकर राजद और कांग्रेस के बीच पेंच फंसा है। अभी तक महागठबंधन से प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं हुई है।

    यहां से होते थे दो सांसद

    देश की आजादी के बाद जब 1951-52 में प्रथम लोकसभा का चुनाव हुआ, तो पलामू संसदीय क्षेत्र का नाम था- पलामू सह हजारीबाग सह रांची। यह दो सदस्यीय सीट थी। यहां से एक सीट पर कांग्रेस के गजेंद्र प्रसाद सिन्हा तो दूसरी सीट पर कांग्रेस के ही जेठन सिंह खरवार चुनाव जीते थे। खरवार जनजाति परिवार से आने वाले स्वतंत्रता सेनानी थे। उनकी गिनती गढ़वा जिला के रहने वाले प्रथम सांसद के रूप में होती है।

    जब स्वतंत्र पार्टी ने दर्ज की जीत

    1957 के आम चुनाव में यहां से इंडियन नेशनल कांग्रेस के गजेन्द्र प्रसाद सिन्हा ने चुनाव जीता। फिर 1962 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी की प्रत्याशी पोड़ाहाट की राजकुमारी और रामगढ़ ईस्टेट की राजमाता शशांक मंजरी चुनाव जीतकर संसद पहुंचीं।

    1977 का चुनाव हार गई थीं कमला कुमारी

    1967 और 1971 दोनों बार के आम चुनाव में कांग्रेस की प्रत्याशी कमला कुमारी जीतीं। कमला कुमारी को 1977 के आम चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। 1980 के आम चुनाव में इंदिरा कांग्रेस की कमला कुमारी ने वापसी करते हुए जनता पार्टी के रामदेनी राम को 45 हजार से अधिक मतों से हराया था।

    जब पूर्व सीएम को मिली हार

    इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए आम चुनाव में कमला कुमारी ने जनता पार्टी के प्रत्याशी सह बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास को हराकर 1 लाख 85 हजार से ज्यादा मतों से हराकर जीत का चौका मारा था। 1989 के आम चुनाव में जनता दल के जोरावर राम ने भाजपा के रामदेव राम को हराया था।

    रामदेव राम ने पहली बार खिलाया कमल

    1991 में हुए आम चुनाव में भाजपा के रामदेव राम ने पहली बार इस सीट पर कमल खिलाया। 1996, 1998, 1999 के आम चुनावों में भाजपा के ब्रजमोहन राम लगातार तीन बार सांसद चुने गए। 2004 में राजद के प्रत्याशी मनोज कुमार भुईयां ने ब्रजमोहन राम को हरा दिया। जीत के मात्र एक साल के बाद सवाल पूछने के एवज में रिश्वत लेते मनोज कुमार भुईयां कैमरे में कैद हो गए थे।

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    रिश्वतखोरी के आरोप में मनोज कुमार भुईयां के संसद से बाहर होने बाद 2007 में हुए उपचुनाव में राजद के प्रत्याशी घूरन राम ने जेल से चुनाव लड़ रहे नक्सली नेता सह बसपा प्रत्याशी कामेश्वर बैठा को हराया था।

    2009 के चुनाव ने सबको चौंकाया

    साल 2009 में पलामू लोकसभा चुनाव का परिणाम चौंकाने वाला रहा। यहां से झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर नक्सली कमांडर कामेश्वर बैठा चुनाव जीत गए। इसके बाद उन्होंने देश की मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। पलामू से बैठा का सांसद चुना जाना देशभर में चर्चा का विषय बना। इसके बाद के चुनाव में भी बैठा कई बार लड़े लेकिन जीत नहीं मिली। पूर्व डीजीपी और पूर्व नक्सली चुनावी मैदान में एक-दूसरे के आमने-सामने हो चुके हैं।

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