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    Chunavi किस्‍सा: ‘आपकी प्रजा ने मुझे चुना है, अब एक घर भी दे दीजिए', जब एक महारानी को हराने वाले शख्स ने की यह मांग, जानें फिर क्‍या हुआ

    Updated: Fri, 03 May 2024 01:35 PM (IST)

    लोकसभा चुनाव 2024 के तीसरे चरण का मतदान 7 मई को होना है। इस बीच देश में सियासी पारा चढ़ा हुआ है। हवा में सियासी किस्से तैर रहे हैं। चुनावी किस्‍सों की सीरीज में आज हम आपके लिए लाए हैं उस नेता की कहानी जिसने चुनावी मैदान में महारानी को हराया और फिर उनसे मिलना पहुंचा और उनके घर की मांग कर दी। पढ़िए क्‍या था पूरा मामला...

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    Lok Sabha Chunav 2024: महारानी राजलक्ष्मी को हराने वाले जनता पार्टी के नेता नानाजी ने उनसे ही मांग लिया घर।

     अमित श्रीवास्तव, बलरामपुर। चुनावी समर में दोस्ती और दुश्मनी की कहानियां सुनने को मिलती हैं। बलरामपुर में दुश्मनी की नहीं, दोस्ती की कहानी की चर्चा अमर है। बात वर्ष 1977 के लोकसभा चुनाव की है, तब बलरामपुर लोकसभा सीट थी।

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    साल 1977 में जनता पार्टी ने नानाजी देशमुख को चुनावी समर में उतारा था। इनके सामने कांग्रेस ने बलरामपुर राज परिवार की महारानी राजलक्ष्मी कुमारी देवी को मैदान में उतारा था। नानाजी देशमुख ने महारानी को चुनाव हरा दिया। चुनाव जीतने के बाद नानाजी, महारानी से उनके पैलेस मिलने पहुंच गए। राज परिवार के सलाहकार बृजेश सिंह बताते हैं कि राजमाता से जब नानाजी चुनाव जीतने के बाद मिलने आए तो बड़ी ही सहजता से मुलाकात की। नानाजी ने क्षेत्र के विकास की प्रतिबद्धता जताई।

    नानाजी बोले, ''आपकी प्रजा ने इस बार आपकी जगह मुझे अपना सांसद चुना है। अब मेरा फर्ज है कि मैं आपकी ही तरह उनके बीच रहकर सुख-दुख का भागीदार बनूं। आप महारानी हैं, मुझे भी एक घर दे दीजिए।''

    महारानी ने तोहफे में दिया था महराजगंज

    राजमाता ने महाराजा से बातचीत कर कहा कि ‘बलरामपुर स्टेट के महराजगंज की जमीन आज से आपकी।’ नानाजी ने वहां नया गांव बसाया। नाम रखा जयप्रभा ग्राम। जय यानी लोकनायक जयप्रकाश नारायण और प्रभा यानी उनकी जीवनसंगिनी प्रभावती। जब तक नानाजी दुनिया में रहे, इस गांव को अपने आदर्शों के अनुरूप ढालने में लगे रहे। आज भी जयप्रभा ग्राम उनके आदर्शों का संदेश दे रहा है।

    नानाजी के नाम है सबसे अधिक मतों से जीत का रिकॉर्ड

    साल 1967 में चुनाव जीतने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने 1971 का चुनाव बलरामपुर से न लड़ने का निर्णय लिया। इनके स्थान पर प्रताप नरायन तिवारी को मैदान में उतारा गया जो चुनाव हार गए। 1977 में नानाजी देशमुख को प्रत्याशी बनाया गया। नानाजी ने 2,17,254 मत लेकर कांग्रेस से तत्कालीन महारानी राजलक्ष्मी कुमारी देवी को 1,14,006 मतों के अंतर से पराजित किया जो अब तक की सबसे बड़ी जीत है।

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    साल 1991 में भाजपा के सत्यदेव सिंह ने 2,11,835 मत प्राप्त कर जनता पार्टी के सैयद मुजफर हुसैन किछौछी को 1,09,455 वोटों से हराकर दूसरे सबसे ज्यादा मतों से जीत कर सांसद बने।

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