Chunavi किस्से: कोई चवन्नी-अठन्नी और कोई झोली में डाल देता था टोकरी भर अनाज, सिर्फ 3 से 4 हजार में हो जाता था चुनाव
Lok Sabha Election 2024 चुनावी किस्सों की सीरीज में आज हम आपके लिए लाए हैं साल 1967 के एक चुनाव का बड़ा ही रोचक किस्सा। उस वक्त सिर्फ तीन से चार हजार रुपये में चुनाव हो जाया करते थे। तब पार्टियां कैसे चंदा जुटाती थीं और कैसे चुनाव प्रचार करती थीं। पढ़िए कैसे भाषण खत्म होते ही गले गमछा डाल चंदा जमा करने लगते थे कार्यकर्ता
आशीष सिंह चिंटू, जमुई। बात साल 1967 की है। उस वक्त हुए लोकसभा चुनाव में मलयपुर बस्ती स्थित चौहानगढ़ विद्यालय में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के मधु लिमये के भाषण ने लोगों को झकझोर कर रख दिया था। तब भाषण की समाप्ति के बाद लोगों से चुनावी खर्च के लिए एक-दो रुपये मांगे जाते थे। इसकी घोषणा मंच से बड़े नेता करते थे।
मधु लिमये द्वारा दान का आह्वान करने पर कार्यकर्ता गले में गमछा लटकाकर लोगों के बीच घूमने लगते थे, कोई चवन्नी तो कोई अठन्नी झोली में डालता जाता था। उस दौरान चुनाव प्रचार को स्मरण करते हुए मलयपुर निवासी 71 वर्षीय देवेंद्र सिंह बताते हैं कि कार्यकर्ता भी टिन को गोलकर उसमें बोल-बोलकर प्रचार करते थे। जिस गांव में जाते थे, वहीं के लोग खाना-नाश्ते की व्यवस्था कर देते। उस समय इतना मन भेद नहीं था।
उन्होंने बताया कि गुगुलडीह केवाल गांव के महेंद्र सिंह कांग्रेस पार्टी के जुझारू कार्यकर्ता थे। बावजूद, मधु लिमये के कार्यकर्ताओं के खाने-पीने की व्यवस्था भी वही कर देते थे। आदर-सत्कार से खाना खिलाते थे। गांव के मुखिया से चंदा में मिले अनाज से ही पार्टी कार्यालय में कार्यकर्ताओं का खाना बनता था। प्रचार के दौरान गांव वाले चूड़ा-गुड़, मूढ़ी आदि खिलाते थे।
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मकई और लाल टमाटर ही खा गए नेता जी
देवेंद्र सिंह कहते हैं कि उस दौरान श्याम प्रसाद सिंह के नेतृत्व में बरहट के जंगल स्थित गुरमाहा गांव गए थे। वहां जबरदस्त भूख लग गई थी। आदिवासी समुदाय के लोगों ने एक टोकरी मकई और लाल टमाटर रख दिए। लोगों ने बड़े चाव से उसे खाया।
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वह बताते हैं कि उस समय जात-पात की राजनीति नहीं थी। लोग विचारधारा से जुड़ते थे। राजनीतिक द्वेष नहीं होता था। चुनाव में अधिकतम तीन-चार हजार रुपये खर्च होते थे। हालांकि, उस समय चावल भी 40 पैसे मन, यानी एक रुपये क्विंटल ही मिलता था। पोलिंग एजेंट को बूथ का खर्च नहीं मिलता था।
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