सियासी लड़ाई में पांच बहुओं ने संभाली पारी, कहीं विरासत बचाने की चुनौती तो कहीं परिवार में आर-पार की तैयारी
Lok Sabha Election 2024 लोकसभा के चुनावी रण में कई बहुएं भी मैदान में हैं जो परिवार की सियासी लड़ाई की पारी संभाल रही हैं। इनमें कुछ के सामने विरासत को बचाए रखने की चुनौती है तो कहीं पर चुनावी लड़ाई के साथ-साथ पारिवारिक मनमुटाव से भी दो चार होना पड़ रहा है। जानिए क्यों खास है इन बहुओं की चुनावी लड़ाई।

चुनाव डेस्क, नई दिल्ली। Lok Sabha Election 2024: राजनीति में भी अन्य क्षेत्रों की तरह नई पीढ़ी अपने परिवार की विरासत संभालती आई है। आमतौर पर विरासत का जिम्मा पुत्र को ही दिया जाता है, लेकिन इस चुनाव में कई बहुएं भी मैदान में हैं, जो अपने परिवार की सियासी विरासत संभाल रही हैं। इनमें से कुछ के सामने पारंपरिक गढ़ बढ़ाने की चुनौती है तो कुछ चुनावी लड़ाई के साथ-साथ पारिवारिक खींचतान का भी सामना कर रही हैं।
विरासत बचाने का जिम्मा
मुलायम सिंह यादव की बहू और अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव उत्तर प्रदेश के मैनपुरी से चुनावी मैदान में हैं। उनके सामने विरासत बचाए रखने की चुनौती है। गौरतलब है कि मैनपुरी स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि रही है। उन्होंने यहां के लोगों से अपनेपन का रिश्ता बनाया था।
मुलायम सिंह के निधन के बाद बहू डिंपल यादव 2022 के उपचुनाव में मैदान में उतरीं और जीत हासिल की। इसके बाद सपा ने उन्हें फिर से मैनपुरी से उम्मीदार बनाया। उनके सामने भाजपा ने पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह और बसपा ने पूर्व विधायक शिवप्रसाद यादव को उम्मीदवार बनाया है।
बहू और बेटी आमने-सामने
शिवसेना और एनसीपी के दो हिस्से महाराष्ट्र की राजनीति और भी गरमा गई है और इस बार की लड़ाई काफी रोचक है। लेकिन राज्य की लड़ाई से भी ज्यादा चर्चा इस वक्त शरद पवार का गढ़ मानी जाने वाली बारामती लोकसभा सीट को लेकर है, जहां से उनकी बेटी और बहू आमने-सामने चुनावी मैदान में हैं।
खुद शरद पवार इस सीट से छह बार सांसद रह चुके हैं, इसके बाद उनकी बेटी सुप्रिया सुले लगातार दो बार से यहां से सांसद हैं। लेकिन इस बार शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने पार्टी तोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को सुप्रिया सुले के खिलाफ उतार दिया है, जो कि शरद पवार की भतीजा बहू हैं।
एनडीए में शामिल होने के कारण भाजपा और शिवसेना शिंदे गुट भी सुनेत्रा का समर्थन कर रहा है। ऐसे में राजनीतिक संघर्ष के साथ-साथ बारामती पारिवारिक संघर्ष का भी मैदान बन गया है। बहू और बेटी की चुनावी लड़ाई में शरद पवार के सामने चुनौती अपने गढ़ को बचाने की है।
सतह पर आई कलह
झारखंड की चुनावी लड़ाई में झारखंड मुक्ति मोर्चा के सामने चुनौतियां आसान नहीं हैं। पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पहले से ही भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते जेल में हैं, इधर परिवार की आपसी कलह भी सतह पर आ गई है। आम चुनाव की घोषणा के तुरंत बाद झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हो गई थीं।
यहीं नहीं, अब वह अपने ससुर शिबू सोरेन की परंपरागत सीट दुमका से उनकी ही पार्टी के प्रत्याशी को चुनौती दे रही हैं। भाजपा ने अपने प्रत्याशी को हटाकर इस सीट से सीता सोरेन को टिकट दिया था। ऐसे में दुमका का परिणाम उनके राजनीति की दिशा तय करेगा।
इंदिरा की बहुओं ने आगे बढ़ाई राजनीति की विरासत
गांधी परिवार की दोनों बहुएं, सोनिया और मेनका गांधी दशकों से परिवार की राजनीतिक विरासत संभालती आई हैं। जहां सोनिया ने कांग्रेस की जिम्मेदारी संभाली तो मेनका ने भाजपा का दामन थामा। हालांकि इस चुनाव में सोनिया मैदान में नहीं हैं, लेकिन मेनका गांधी अब भी सुल्तानपुर से चुनावी ताल ठोंक रही हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बहू और संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी ने राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद अगला चुनाव उन्होंने पीलीभीत से लड़ा और इसे अपना राजनीतिक गढ़ बनाया। वे छह बार यहां से सांसद रह चुकी हैं।
बेटे वरुण गांधी को भी उन्होंने इसी सीट से राजनीति का ककहरा सिखाया और 2009 में वह पीलीभीत से सांसद बने। हालांकि भाजपा ने इस बार उनका टिकट काटकर जितिन प्रसाद को अपना प्रत्याशी बनाया है।
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