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    चुनावी जंग में साहित्‍य के योद्धा: वे लेखक जिन्‍होंने सक्रिय राजनीति की और चुनाव भी लड़ा; फिर देश की बागडोर भी संभाली

    आगामी 19 अप्रैल को लोकसभा के चुनाव के पहले चरण के लिए मतदान होगा। इस चुनाव में भारतीय भाषा के कई साहित्यकार और कवि अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। ऐसे राजनेता-साहित्यकार के बारे में देश को जानना चाहिए। ऐसे साहित्यकारों और कवियों के बारे में आगामी अंकों में बताएंगे लेकिन पहले उन पूर्वज साहित्यकारों के बारे में जान लेते हैं जिन्होंने सक्रिय राजनीति भी की और चुनाव भी लड़ा।

    By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Updated: Mon, 08 Apr 2024 08:30 PM (IST)
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    Lok Sabha Chunav 2024: साहित्‍यकार जिन्‍होंने सक्रिय राजनीति भी की और चुनाव भी लड़ा।

    अनंत विजय, नई दिल्‍ली। आगामी 19 अप्रैल को लोकसभा के चुनाव के प्रथम चरण के लिए वोट डाले जाएंगे। इस चुनाव में भारतीय भाषा के कई साहित्यकार और कवि अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। ऐसे राजनेता-साहित्यकार के बारे में देश को जानना चाहिए। ऐसे साहित्यकारों और कवियों के बारे में आगामी अंकों में बताएंगे, लेकिन पहले उन पूर्वज साहित्यकारों के बारे में जान लेते हैं, जिन्होंने सक्रिय राजनीति भी की और चुनाव भी लड़ा।

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    एक बार किसी कार्यक्रम में राष्ट्रकवि दिनकर और उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पहुंचे थे। कार्यक्रम स्थल पर जाने के दौरान नेहरू सीढ़ियों पर लड़खड़ा गए थे, उस वक्त दिनकर ने उनका हाथ थाम लिया था। जवाहरलाल नेहरू ने इसके लिए दिनकर को धन्यवाद कहा। धन्यवाद के उत्तर में दिनकर ने कहा था- 'जब जब सत्ता लड़खड़ाती है तो सदैव साहित्य ही उसे संभालती है।'

    दिनकर ने उस समय चाहे ये बात हल्के अंदाज में कही हो, लेकिन इसके मायने बहुत गंभीर हैं। स्वाधीनता के बाद कई ऐसे साहित्यकार हुए जिनको संसद के उच्च सदन में समय समय पर राष्ट्रपति ने नामित किया। कुछ ऐसे साहित्यकार-कवि हुए, जिन्होंने लोकसभा चुनाव जीतकर संसद की गरिमा बढ़ाई तो कुछ ऐसे साहित्यकार हुए, उन्होंने लोकसभा का चुनाव तो लड़ा पर हार गए।

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    अटल का मन पद्य में रमा रहा

    सबसे पहले बात कर लेते हैं पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की। वाजपेयी कवि थे और उनके कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। राजनीति के मैदान में उतरे, लेकिन उनका कवि मन पद्य में रमा रहा। पहला चुनाव 1952 में लड़ा, लेकिन जीत नहीं सके। वाजपेयी ने हार नहीं मानी और 1957 में लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे।

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    फिर हार जीत लगी रही। अटल जी की कविताओं का संग्रह मेरी इक्यावन कविताएं को लोगों ने खूब पसंद किया था। गीत नया गाता हूं और हिंदू तन मन हिंदू जीवन, रग रग हिंदू मेरा परिचय जैसी पंक्तियां अब भी लोगों को याद हैं। अटल जी कविताओं की भाषा उनको समकालीन कवियों से अलग दिखाती हैं।

    आचार्य विष्णुकांत शास्त्री लिखे थे रिपोर्ताज

    यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि आचार्य विष्णुकांत शास्त्री ने साल 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान वो धर्मवीर भारती के साथ मोर्चे  पर गए थे और वहां से उन्होंने रिपोर्ताज लिखे, जो धर्मयुग पत्रिका में प्रकाशित हुए थे। विष्णुकांत शास्त्री कलकत्ता विश्वविद्यालय में आचार्य रहे। वे हिंदी के उन विरल आचार्यों में थे जिन्होंने कई विधाओं में श्रेष्ठ लेखन किया।

    आलोचना, निबंध, कविता के अलावा निराला और तुलसी की रचनाओं पर लिखा। दर्शन में उनकी विशेष रुचि थी और उन्होंने ज्ञान और कर्म के नाम से एक पुस्तक लिखी। 1944 में वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े और 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर बंगाल विधानसभा के सदस्य चुने गए। कालांतर में उन्होंने हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का दायित्व मिला।

    आलोचना की बात और नामवर याद न आएं...

    हिंदी आलोचना की जब भी चर्चा होती है तो नामवर सिंह का नाम आता है। उनकी पुस्तक दूसरी परंपरा की खोज काफी चर्चित रही और इस पुस्तक पर उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला। उनकी पुस्तक हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योग भी उल्लेखनीय रही। कहानियों पर वो नियमित स्तंभ लिखते रहे और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा केंद्र के संस्थापक भी रहे।

    नामवर सिंह ने साल 1959 में चंदौली (उप्र) से कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन बुरी तरह से पराजित हो गए। हालांकि, उसके बाद उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन प्रगतिशील लेखक संघ के माध्यम से राजनीति करते रहे।

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    वैरागी के बाल गीत, फिल्मी गीत और राजनीति

    ख्यात हिंदी कवि बालकवि बैरागी में कवित्व के अलावा राजनीति भी कूट-कूट कर भरी हुई थी। जितना वो काव्य मंचों पर सक्रिय रहते थे उससे अधिक राजनीति में उनकी सक्रियता रहती थी। जब वो मंच पर कविता पाठ करते थे तो उनकी ओजपूर्ण वाणी से श्रोता मुग्ध हो जाते थे। उनकी कविता झर गए पात, बिसर गए टहनी काफी लोकप्रिय रही।

    उन्होंने बच्चों के लिए भी काफी कविताएं लिखीं। कई फिल्मों के लिए गीत भी लिखे। वो मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के रहने वाले थे। सक्रिय राजनीति में रहे और विधानसभा और लोकसभा का चुनाव लड़कर विधायक और सांसद बने। राज्यसभा के भी सदस्य रहे।

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