Lok Sabha Election 2019 : खेत्रपाल से 100 रुपये लेकर शपथ लेने गए थे जनेश्वर मिश्र
1969 में फूलपुर लोकसभा के उपचुनाव जीतने के बाद संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के जनेश्वर मिश्र के पास पैसा नहीं था कि वह शपथ लेने दिल्ली जाते। उनकी मदद रामनाथ खेत्रपाल ने की थी।
प्रयागराज : आज जहां चुनाव में खड़े होने वाले कई ऐसे प्रत्याशी हैं, जो करोड़ों और अरबों की प्रापर्टी के मालिक हैं। वहीं एक जमाना वह भी था जब लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के पास पैसा नहीं रहता था। सादगी से चुनाव लड़ते थे। चुनाव में लोगों के सहयोग से काम चलता था। इसका उदाहरण फूलपुर लोकसभा सीट के लिए 1969 में हुए उप चुनाव में जनेश्वर मिश्र के साथ भी हुआ। उनके पास चुनाव लडऩे के लिए पैसे नहीं थे। उन्होंने दूसरों से पैसे लेकर चुनाव लड़ा था। चुनाव जीतने के बाद उनके पास इतने पैसे भी नहीं बचे थे कि वह शपथ लेने के लिए दिल्ली जा सकें। तब जनेश्वर मिश्र को सिविल लाइंस में रहने वाले रामनाथ खेत्रपाल ने 100 रुपये दिए थे। उन्होंने चुनाव में भी जनेश्वर मिश्र की मदद की थी।
1969 में फूलपुर लोकसभा सीट पर हुआ था उप चुनाव
1969 में विजय लक्ष्मी पंडित के फूलपुर लोकसभा सीट से इस्तीफा देने के बाद वहां पर दूसरी बार उप चुनाव हुआ। जनेश्वर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। उनके पास चुनाव लडऩे के लिए पैसे नहीं थे सो उन्होंने दूसरों से मदद मांगी। उप चुनाव में कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने कांग्रेेस प्रत्याशी केशव मालवीय को हराया।
450 रुपये जनेश्वर मिश्र को रामनाथ खेत्रपाल ने दिए थे
चुनाव के दौरान जनेश्वर मिश्रा के कुल 4650 रुपये खर्च हुए थे। इसमें 450 रुपये जनेश्वर मिश्र को रामनाथ खेत्रपाल ने दिए थे। चुनाव जीतने के बाद जनेश्वर मिश्र खेत्रपाल से मिलने उनके घर गए। उन्होंने जनेश्वर से हाल पूछा और कहा कि शपथ लेने कब जा रहे हो तो जनेश्वर ने जवाब नहीं दिया। उन्होंने पूछा कि पैसे हैं कि नहीं, शपथ लेने कैसे जाओगे, जनेश्वर इस सवाल पर भी शांत रहे। खेत्रपाल ने तुरंत 100 रुपये का नोट निकालकर जनेश्वर को दिया। कहा था कि आराम से शपथ लेने जाना और वापस लौटना। किसी चीज की चिंता नहीं करना।
प्रचार से लेकर उन्हें चुनाव जिताने में समर्थकों ने जी-जान लगा दिया था
वरिष्ठ समाजवादी नेता विनोद चंद्र दुबे बताते हैं कि उस चुनाव में जनेश्वर ने पर्चे भी खुद नहीं छपवाए थे। लोगों ने उनकी पूरी मदद की थी। प्रचार से लेकर उन्हें चुनाव जिताने में समर्थकों ने जी जान लगा दिया था। जब उपचुनाव का परिणाम आया था तो कांग्रेस को विश्वास नहीं हो रहा था कि पंडित नेहरू की विरासत की सीट अब उनके पास नहीं रही। वहीं से कांग्रेस की फूलपुर लोकसभा सीट से पकड़ कमजोर होती गई। 1984 के बाद कांग्रेस कभी फूलपुर लोकसभा से नहीं जीती।
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