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    Lok Sabha Election 2024: जब कांग्रेस की रणनीति में फंसे अटलजी और हार गए थे 1984 का लोकसभा चुनाव

    Updated: Mon, 18 Mar 2024 09:03 AM (IST)

    1984 का लोकसभा चुनाव याद आ रहा है जब कांग्रेस ने अपनी चुनावी जाल में फंसाकर पांसा पलट दिया था। दरअसल कांग्रेस ने अपनी चुनावी रणनीति में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को फंसा लिया था। किसी ने भी इस चुनाव में अटलजी की हार की कल्पना भी नहीं की थी। 1984 के लोकसभा चुनाव में अटलजी ने अपने पैतृक संसदीय क्षेत्र ग्वालियर से चुनाव लड़ने का फैसला किया था।

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    जब कांग्रेस की रणनीति में फंसे अटलजी और हार गए थे 1984 का लोकसभा चुनाव (Image: Jagran)

    जोगेंद्र सेन, ग्वालियर। Gwalior Lok Sabha Chunav: मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने 16 मार्च को आगामी लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखों की घोषणा की। चुनाव 7 चरणों में होंगे, जो 19 अप्रैल से शुरू होकर 1 जून को समाप्त होंगे। नतीजे 4 जून को घोषित किए जाएंगे। तारीखों की घोषणा के साथ ही आचार सहिंता भी लागू हो गई है।

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    भाजपा समेत कई राजनीतिक पार्टियां चुनाव प्रचार में जुट गई है। ऐसे चुनावी माहौल को देखते हुए वर्ष 1984 का लोकसभा चुनाव याद आ रहा है, जब कांग्रेस ने अपनी चुनावी जाल में फंसाकर पांसा पलट दिया था। दरअसल, कांग्रेस ने अपनी चुनावी रणनीति में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को फंसा लिया था। किसी ने भी इस चुनाव में अटलजी की हार की कल्पना भी नहीं की थी।

    1984 का लोकसभा चुनाव

    1984 के लोकसभा चुनाव में अटलजी ने अपने पैतृक संसदीय क्षेत्र ग्वालियर से चुनाव लड़ने का फैसला किया था। वहीं, कांग्रेस की ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया ने ग्वालियर से अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। उस समय तक माधवराव गुना से प्रत्याशी थे।

    जब अटलजी के पास नहीं था समय

    कम समय होने के कारण अटलजी ग्वालियर जिला मुख्यालय से महज 80 किमी की दूरी पर स्थित भिंड संसदीय क्षेत्र से दूसरा नामाकंन दाखिल करने में असमर्थ रहे। इससे चुनावी लड़ाई और भी कठिन हो गई।

    अटलजी ने माधवराव सिंधिया से की थी चर्चा

    ऐतिहासिक चुनाव के साक्षी उम्रदराज भाजपा नेताओं ने बताया कि अटलजी ने ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने से पहले माधवराव सिंधिया से चर्चा की थी।माधवराव ने उन्हें बताया था कि वे अपने परंपरागत गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र से ही चुनाव लड़ेंगे और उनका ग्वालियर से चुनाव लड़ने से कोई इरादा नहीं है। दरअसल, अटलजी के माधवराव सिंधिया से बात करने का कारण था कि वह नहीं चाहते थे कि संगठन के लिए समर्पित राजमाता विजयाराजे सिंधिया पुत्र व संगठन को लेकर किसी धर्मसंकट में फंसे।

    जब ऐन वक्त पर राजीव गांधी ने कर दी ये गलती

    इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस की बागडोर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हाथ में सौंपी गई। अटलजी को उनके क्षेत्र में उलझाने की नीयत से ऐन वक्त पर राजीव गांधी ने माधवराव सिंधिया को ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से नामांकन दाखिल करने को कहा। पहली बार माधवराव सिंधिया ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतरे, जिससे मुकाबला काफी संघर्षपूर्ण हो गया। वहीं, दूसरी तरफ अटलजी देशभर में चुनाव प्रचार नहीं कर सके। उनका इस क्षेत्र से दूसरा चुनाव था, लेकिन देशभर की निगाहें ग्वालियर संसदीय क्षेत्र पर ही टिकी हुई थी।

    एक तरफ सपूत है, तो दूसरी तरफ पूत

    चुनाव प्रचार के आखिरी दिन दोनों उम्मीदवार ने चुनावी सभा की। वर्तमान ऊंट पुल (जिंसी नाला नंबर-एक) चौराहे पर भाजपा की चुनावी सभा में अटलजी के साथ राजमाता विजयाराजे सिंधिया भी मौजूद थीं। राजमाता के भाषण के अंतिम शब्द थे कि एक तरफ सपूत है, तो दूसरी तरफ पूत, अब फैसला आप लोगों को करना है। इन्ही शब्दों ने चुनाव का पांसा पलट दिया। अटलजी हार गए और उसके बाद कभी ग्वालियर से कोई चुनाव नहीं लड़ा।

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