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    Mera Power Vote: महिलाओं को चाहिए आर्थिक और सामाजिक समानता, लगातार बढ़ रहा वोट प्रतिशत

    By Anurag MishraEdited By: Anurag Mishra
    Updated: Tue, 27 Feb 2024 05:31 PM (IST)

    महिलाओं का मतदान प्रतिशत कुल मिलाकर निरंतर बढ़ा ही है। देश के गणतंत्र बनने के बाद 1951-52 में यह 50.8% था। एक दशक बाद 1962 में यह घटकर 46.6% पर आ गया। लेकिन 2019 के आम चुनाव में 66.9% प्रतिशत महिला मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। 1962 में पुरुषों और महिलाओं के मतदान प्रतिशत में 16.7% का अंतर था।

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    इस पर्व में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने लोकतंत्र को मजबूत बनाने का काम भी किया है।

    सोनल गोयल, नई दिल्ली। भारतीय लोकतंत्र में महिलाओं की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। महिलाएं देश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं, इसलिए उनकी भागीदारी लोकतंत्र को अधिक समावेशी बनाती है। महिलाएं शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, और रोजगार जैसे सामाजिक और आर्थिक मुद्दों के प्रति अधिक जागरूक और संवेदनशील होती हैं। वे इन मुद्दों पर ध्यान देने वाले उम्मीदवारों को वोट देती हैं, जो समाज के लिए बेहतर नीतियां बनाने में मदद करता है।

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    वैसे तो हर चुनाव में मतदान का प्रतिशत घटता-बढ़ता रहता है, लेकिन महिलाओं का मतदान प्रतिशत कुल मिलाकर निरंतर बढ़ा ही है। देश के गणतंत्र बनने के बाद 1951-52 में यह 50.8% था। एक दशक बाद 1962 में यह घटकर 46.6% पर आ गया। लेकिन 2019 के आम चुनाव में 66.9% प्रतिशत महिला मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। 1962 में पुरुषों और महिलाओं के मतदान प्रतिशत में 16.7% का अंतर था, लेकिन पिछले आम चुनाव में यह घटकर सिर्फ 0.4% रह गया।

    लोकतंत्र में आमजन के लिए अपना निर्णय सुनाने का सबसे बड़ा माध्यम चुनाव होता है। इस पर्व में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने लोकतंत्र को मजबूत बनाने का काम भी किया है। आज महिला मतदाता किसी भी पार्टी की जीत-हार तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। यही कारण है कि राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों और सरकार की नीतियों में महिलाओं को अहम स्थान दिया जाने लगा है।

    हमें इस बात पर गर्व है भारत जिस दिन आजाद हुआ, उसी दिन से महिलाओं को वोटिंग का अधिकार मिल गया था। अमेरिका को अपनी महिलाओं को वोट देने का अधिकार देने में 144 साल लग गए थे। ब्रिटेन को भी एक सदी का समय लग गया। कुछ ऐसा ही न्यूजीलैंड में भी था जहां 13 साल के संघर्ष के बाद महिलाओं को वोटिंग का अधिकार मिल पाया था।

    महिला वोटरों की बढ़ती भागीदारी भारतीय लोकतंत्र के लिए एक सकारात्मक बदलाव है। यह राजनीतिक दलों को महिलाओं के मुद्दों को गंभीरता से लेने के लिए मजबूर करता है।

    हालांकि कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां महिलाएं अब भी मतदान के मामले में पुरुषों से काफी पीछे हैं। उत्तराखंड, मेघालय, हिमाचल, मणिपुर, बिहार जैसे राज्य इस मामले में नजीर है जहां महिलाओं ने पुरूषों से अधिक मत दिया। वहीं मिजोरम, छत्तीसगढ़, कर्नाटक जैसे राज्यों में महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले कम मत दिया।

    इसलिए यह बात भी उतनी ही महत्वपूर्ण है कि महिलाएं अपनी शक्ति को पहचानें करें और चुनावों में अधिक से अधिक संख्या में और सक्रिय रूप से भाग लें। यह सुनिश्चित करेगा कि उनकी आवाज सुनी जाए और उनके लिए महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित किया जाए। महिलाओं समेत सभी वोटरों का मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं।

    जरूरी है कि महिलाओं को मतदान के लिए प्रोत्साहित करने के लिए हर स्तर पर जागरूकता अभियान चलाया जाए। उनके लिए राजनीतिक शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए। महिला उम्मीदवारों के लिए चुनाव लड़ना आसान हो, इसके लिए वित्तीय और अन्य सहायता प्रदान की जाए।

    महिलाओं के खिलाफ चुनावी हिंसा और धमकियों को रोकने के लिए कड़े कानून बनाए जाएं। इन उपायों से महिलाएं अपनी पूरी क्षमता का उपयोग लोकतंत्र को मजबूत बनाने और समाज के लिए एक बेहतर भविष्य बनाने में कर सकेंगी।

    (सोनल गोयल आईएएस अधिकारी है। वह त्रिपुरा सरकार में सचिव के पद पर कार्यरत हैं)