Move to Jagran APP

Jagran Election Travels: सर्जिकल स्ट्राइक और 72 हजार नहीं, नक्सल बेल्ट बस्तर को चाहिए शांति

जागरण की इलेक्शन ट्रैवल्स पहुंची छत्तीसगढ़... लोगों की राय-बड़े नक्सली ठिकानों पर करें सर्जिकल स्ट्राइक जंगल तक पहुंचे विकास कोई बोला महागठबंधन का होगा बंटाधार।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 02 Apr 2019 11:50 AM (IST)Updated: Tue, 02 Apr 2019 11:58 AM (IST)
Jagran Election Travels: सर्जिकल स्ट्राइक और 72 हजार नहीं, नक्सल बेल्ट बस्तर को चाहिए शांति
Jagran Election Travels: सर्जिकल स्ट्राइक और 72 हजार नहीं, नक्सल बेल्ट बस्तर को चाहिए शांति

हेमंत कश्यप, जगदलपुर। अरे, छोड़ो यार... हमें सर्जिकल स्ट्राइक से मतलब है न सालाना 72 हजार रुपये पाने से। हम तो नक्सल हिंसा से जूझते बस्तर समेत मध्य भारत में शांति चाहते हैं। जो करेगा शांति दिलाने का ठोस वादा वही हमारा रहनुमा होगा। बस्तर संभाग के जगदलपुर से धमतरी के लिए चली बस में एक यात्री ने कुछ इस अंदाज में चुनावी चर्चा को हवा दे दी। फिर क्या था। यात्री एक-एक कर मुखर होने लगे।

loksabha election banner

एक यात्री ने कहा बस्तर किस तरह का क्षेत्र है, कौन नहीं जानता। मीलों सफर तय कर हम बैंक और एटीएम पहुंचते हैं लेकिन अपना जमा धन ही नहीं निकाल पाते। एटीएम में पैसा रहे यह जिम्मेदारी किसकी है। सांसद, विधायक, केंद्र व राज्य की सरकार या बैंक, हमको इससे कोई मतलब नहीं।

हमें तो जीवन चलाने के लिए जरूरी संसाधन चाहिए। जो अभी भी यहां के लिए दुरूह है। दूसरा यात्री बोला पिछले पांच सालों में बदलाव तो आया है। सड़कें जंगल तक पहुंची हैं। कई गांव जुड़े भी हैं। तभी एक तीसरा यात्री फिर चर्चा को बैंकों पर केंद्रित कर देता है।

अधेड़ यात्री के चेहरे पर आक्रोश के भाव आते हैं- वह बोल पड़ता है- हम तो ये बैंक वालों की मनमानी से परेशान हैं। एक तो इनके एटीएम में रुपये नहीं रहते, दूसरे बैंक के एटीएम से रुपये निकालो तो 180 से लेकर 210 रुपये तक तुरंत काट लेते हैं। कभी-कभी तो लगता है कि बैंक में खाता खुलवाकर बड़ी गलती कर दी।

हद हो गई, गरीब बेचारा आठ सौ रुपये में कैसे सिलेंडर भरवाएगा? तब तक दूसरा सुर सुनाई दिया... अरे भैया, पटरी बिछ जाए पर ट्रेन ही न आए तो क्या मतलब। तब तक एक ने कहा, अब तक तो जो होता आया है, उसके मुताबिक जिसने भी रुपये देने की बात कही, पूरी नहीं हुई। इतने में नई आवाज आई, अब तो नक्सलियों के खिलाफ हो जाए सर्जिकल स्ट्राइक, तब मानें। धमतरी से कोंटा के सफर की ओर बढ़ती बस का पूरा माहौल चुनावी है, साफ-सुथरे और सपाट तर्क।

बनावटीपन बिल्कुल भी नहीं। जैसे ही उन्हें छेड़ा, भई भाजपा या कांग्रेस, किसे जिता रहे हो इस बार? धमतरी से कोंटा जा रहे विजय नायक ने कहा, बात हार-जीत की नहीं। अब किसी न किसी को तो जिताना ही होगा, काम करें या न करें। बस्तर के सातों जिले में बड़ा जंगल है।

लेकिन वनों से जुड़ा ऐसा एक भी उद्योग यहां नहीं है, जिसमें सौ युवाओं को भी रोजगार मिला हो। देश में बन रहे महागठबंधन पर कहा कि आगे आगे देखते जाओ, होता है क्या?होगा बंटाधार। इतने में करपावंड के सोनाराम बघेल बोल पड़े, वनों के संरक्षण व वन आधारित उद्योग की मांग बहुत दिनों से हो रही है। आदिवासियों का जिस पर अधिकार है, उसे अधिकारी और दलाल खा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मोदी हो या राहुल, गरीबों के तो केवल भगवान ही आधार हैं। सबको केवल अपने लोग ही दिखते हैं, जिनका भला वे करेंगे।

केशकाल घाट का दोहरीकरण हो

दुर्ग से कोंटा जा रहे हरिमन झा, मनोहर शर्मा व रामरतन शर्मा ने कहा कि व्यवसाय और रिश्तेदारी के चलते वे बस्तर आते हैं, लेकिन केशकाल घाट का विकल्प तैयार नहीं किया जा रहा। उन्होंने सवाल भी उठाया, पंद्रह साल से यहां भाजपा सरकार रही, फिर भी...?

इतने में बस की पिछली सीट पर बैठे एक सज्जन उछलकर बोल पड़े, राहुल गांधी ही कौन सी जादू की छड़ी घुमा देंगे। पचासों साल देश में उनकी पार्टी राज की। तब याद नहीं आई देश की दिक्कतें, गरीबों की परेशानियां?

रेललाइन 50 साल पुरानी मांग

राजनांदगांव से किरंदुल जाने वाली एक अन्य बस में यात्रा कर रहे दल्लीराजहरा व कांकेर लोकसभा क्षेत्र निवासी दीपक बाघमारे, मनोज साहू ने कहा कि बस्तर की तरह दल्ली में भी नक्सल आतंक है। इससे मुक्ति मिलनी चाहिए। इस चुनाव में उनके लिए मुख्य मुद्दा 50 साल बाद दल्लीराजहरा- रावघाट- बस्तर रेललाइन का पूरा नहीं होना है। यह काम हो जाता तो बसों के महंगे किराए से मुक्ति मिल जाती।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.