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    अतीत के आईने से: भारत में सबसे बड़ी वामपंथी पार्टी है सीपीआइएम

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Tue, 02 Apr 2019 09:55 AM (IST)

    भारत में फिलहाल पश्चिम बंगाल त्रिपुरा और केरला में सीपीआइएम सबसे ज्यादा असरदार है। इसका गठन 1964 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआइ) के विभाजन से हु ...और पढ़ें

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    अतीत के आईने से: भारत में सबसे बड़ी वामपंथी पार्टी है सीपीआइएम

    नई दिल्ली [अंकुर अग्निहोत्री]। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) भारत की सबसे बड़ी वामपंथी पार्टी है। भारत में फिलहाल पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और केरला में सीपीआइएम सबसे ज्यादा असरदार है। इसका गठन 1964 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआइ) के विभाजन से हुआ। यह पश्चिम बंगाल वाम मोर्चा का नेतृत्व करती है। 2016 तक, पार्टी के पास 1,048,678 सदस्य होने का दावा किया गया था। पार्टी का सर्वोच्च निकाय पोलित ब्यूरो है।

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    गठन
    चीन के साथ 1962 की लड़ाई के समय सीपीआइ के भीतर कई गुट उभरे। पार्टी के कुछ नेताओं पर चीन का समर्थन करने के आरोप लगे। कानू सान्याल सशस्त्र विद्रोह को सही मानते थे। इसी वर्ष पार्टी के महासचिव अजय घोष का निधन हो गया। उसके बाद एसए डांगे को पार्टी का चेयरमैन बनाया गया और ईएमएस नंबूदिरीपाद महासचिव बनाए गए। ये संतुलन बनाने की कोशिश थी क्योंकि ईएमएस पार्टी में उदारवादी धड़े का नेतृत्व करते थे और डांगे कट्टरपंथी नीतियों में विश्वास करते थे। हालांकि ये प्रयोग 1964 में विफल हो गया। इस वर्ष बांबे (अब मुंबई) में डांगे समूह का अलग सम्मेलन हुआ और साथ-साथ कलकत्ता में पी सुंदरैया की अगुआई में अलग सम्मेलन हुआ। कलकत्ता सम्मेलन में जो लोग शामिल हुए उन्होंने माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नाम से नया दल बनाया।

    उतार-चढ़ाव
    1967 में हुए लोकसभा चुनाव में सीपीआइएम को 19 सीट मिली और सीपीआइ को 23 सीटों पर सफलता हासिल हुई। केरल और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में सीपीआइएम सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी।

    नक्सलबाड़ी आंदोलन
    इसी वर्ष पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में किसानों का उग्र आंदोलन शुरू हुआ, जिसे सीपीआइएम के कट्टरपंथी नेता चारु मजूमदार और कानू सान्याल का समर्थन मिला। हालांकि सीपीएम सरकार ने इस हिंसक आंदोलन को दबा दिया। इसके बाद नक्सलबाड़ी समर्थक नेताओं ने ‘ऑल इंडिया कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ कम्युनिस्ट रिवोल्यूशनरी’ (एआइसीसीआर ) का गठन किया और वे सीपीआइएम से अलग हो गए। आंध्र प्रदेश में भी तेलंगाना सशस्त्र विद्रोह समर्थक नेताओं का अलग धड़ा बना।

    पश्चिम बंगाल में बनी सरकार
    1971 के लोकसभा चुनाव में सीपीआइएम को 25 सीटें मिलीं जिनमें से 20 पश्चिम बंगाल से आईं। इसी साल विस चुनाव में भी बंगाल में पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं। फिर 1977 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने बहुमत हासिल किया और ज्योति बसु मुख्यमंत्री बने। इसके बाद से लेकर 2011 तक बंगाल में सीपीआइएम की अगुवाई में वाम मोर्चे की सरकार रही। केरल में भी अभी वाम मोर्चा ही सत्ता में है।

    बाहर से दिया समर्थन
    वर्ष 2004 के लोकसभा चुनावों के बाद सीपीआइ और सीपीआइएम ने यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दिया था। हालांकि अमरीका के साथ परमाणु करार के विरोध में दोनों दलों ने पिछले यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था।

    वर्तमान स्थिति
    वर्तमान में सीपीआइएम के लोकसभा में नौ सांसद हैं। 2004 में पार्टी को 5.66 फीसद वोट मिले थे और उसके पास 43 सांसद थे। पार्टी ने लड़ी गई 69 सीटों में औसतन 42.31 फीसद जीत हासिल की थी।

    नारे निराले
    जन संघ को वोट
    दो, बीड़ी पीना छोड़
    दो...बीड़ी में तंबाकू है,
    कांग्रेस-वाला डाकू है

    भारतीय जन संघ ने 1967 के लोकसभा चुनाव में इस स्लोगन के माध्यम से वोटरों से ये अपील की थी कि वे कांग्रेस और तंबाकू त्याग दें। इस चुनाव में भारतीय जन संघ ने 35 सीटों पर जीत हासिल की थी।