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    Lok Sabha Election 2024: भाजपा का जोर चौतरफा, कांग्रेस का फोकस गांवों पर, जानिए छत्तीसगढ़ की इन सीटों का समीकरण

    Updated: Sat, 04 May 2024 12:07 PM (IST)

    Chhattisgarh Lok Sabha Election 2024 छत्तीसगढ़ के रण में रायगढ़ और सरगुजा की लड़ाई भी अहम है। रायगढ़ में भाजपा के राधेश्‍याम राठिया के मुकाबले कांग्रेस से डॉ. मेनका देवी सिंह मैदान में हैं। वहीं सरगुजा में भाजपा के चिंतामणि‍ महाराज का मुकाबला कांग्रेस की शशि सिंह से है। जानिए दोनों सीटों पर भाजपा और कांग्रेस कैसे दे रहे हैं चुनावी अभियान को धार।

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    Lok Sabha Election 2024: तीसरे चरण में छत्तीसगढ़ की सात सीटों पर चुनाव होना है।

    विकाश चन्‍द्र पाण्‍डेय, अंबिकापुर। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में भाजपा के राधेश्‍याम राठिया के मुकाबले सारंगढ़ राजघराने की राजकुमारी डॉ. मेनका देवी सिंह कांग्रेस का झंडा उठाए हुए हैं। मुख्‍यमंत्री विष्‍णुदेव साय यहां से चार बार सांसद रह चुके हैं। पिछली बार गोमती साय विजयी रही थीं, जो मात्र 255 वोटों के अंतर से पत्‍थलगांव से विधायक चुनी जा चुकी हैं।

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    वहीं सरगुजा में बड़ी पहुंच-पहचान वाले भाजपा के चिंतामणि‍ महाराज का मुकाबला कांग्रेस की शशि सिंह से है। विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर चिंतामणि भाजपा में आए थे। प्रदेश में सबसे कम उम्र की दलीय प्रत्‍याशी शशि भारत जोड़ो यात्रा में सहभागिता से राहुल गांधी की विश्‍वास-पात्र बनीं।

    जीतने की ललक में अंतर

    कांग्रेस के लिए छत्‍तीसगढ़ में अपनी दो सीटें (बस्‍तर और कोरबा) हैं, जबकि भाजपा के लिए उन दो सीटों को जीते बिना उसका चार सौ पार वाला अभियान सफल नहीं होने वाला। लड़ने और जीतने की ललक-लालसा का यह अंतर शहर से गांव तक हर जगह दिख रहा। रायगढ़ में रात आठ बजे ही कांग्रेस के जिला कार्यालय पर ताला लटक गया था, जबकि दो मंजिल वाला भाजपा का कार्यालय गुलजार था।

    यह तर्क हो सकता है कि भाजपा की सक्रि‍यता का कारण अगले दिन मुख्‍यमंत्री की जनसभा थी, लेकिन अगले दिन रायगढ़ से जसपुर और जसपुर से अंबिकापुर तक कांग्रेस का न तो कोई प्रचार वाहन दिखा और न ही किसी नेता-कार्यकर्ता से भेंट-मुलाकात हुई। अलबत्‍ता इस रास्‍ते में भाजपा की प्रचार टोली अपनी एक और जीत के लिए प्रतिबद्ध दिखी।

    अजेय रही भाजपा

    11 संसदीय क्षेत्रों वाले छत्‍तीसगढ़ में यह अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित रायगढ़ और सरगुजा की वस्‍तुस्थिति है, जहां राज्‍य गठन के बाद से भाजपा आज तक नहीं हारी। लगभग चार सौ किलोमीटर की इस दूरी में टंगे झंडों में लगभग आधे बजरंग बली के पताके हैं। शेष 50 प्रतिशत में भाजपा के झंडों की हिस्‍सेदारी लगभग 40 प्रतिशत है।

    बताना आवश्‍यक नहीं कि बचे झंडे कांग्रेस के हैं। विभि‍न्‍न वेश-भूषा में प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के बड़े-बड़े होर्डिंग भी भाजपा की सक्रियता की हुंकारी भर रहे। मनोरा ब्‍लाक में चना-चबेना बेचकर गुजर-बसर करने वाले राजेश प्रजा‍पति जैसे इसका गूढ़ रहस्‍य समझा रहे हों। कांग्रेस की माली हालत पहले जैसी नहीं रही। प्रचार में पिछड़ने का यही कारण है।

    कांग्रेस और भाजपा की रणनीति

    समीकरण समझना है तो शहर-बाजार से निकल सुदूर गांवों का रुख करना होगा। हामी भरते हुए जसकरन सिदार कहते हैं कि झंडे वोट नहीं होते और जो असली वोटर होते हैं, वे बहुत बोलते भी नहीं। चना खरीदने पहुंचे नई उम्र के चार-पांच दोस्‍त उनकी बातों पर हव (हां) कहते हुए एक साथ खिलखि‍ला पड़ते हैं। बहुत कुरेदने पर वे कहते हैं कि मोदी के आगे कांग्रेस की चाल लड़खड़ा रही है। कांग्रेस का फोकस गांवों पर अधिक है, जबकि भाजपा का चौतरफा।

    बदल चुकी है प्रकृति

    अब चुनाव की प्रकृति बदल चुकी है। जीत के लिए समय, शक्ति और संसाधन तो चाहिए ही, इन तीनों के बीच संतुलन भी आवश्‍यक है। भाजपा संतुलित तरीके से आगे बढ़ रही। कांग्रेस अपने प्रत्‍याशियों के भरोसे है। कोल इंडि‍या से सेवानिवृत्ति के बाद अंबिकापुर में पेट्रोल पंप के मालिक बने आरके पांडेय सरगुजा संसदीय क्षेत्र के कई समीकरण समझाते हुए कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में मतदान चेहरे पर होता है।

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    वह कहते हैं कि इस बार भी भाजपा का चेहरा प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ही हैं। कांग्रेस के पास अपने प्रत्‍याशियों की छवि और साख है। वे जूझ भी रहे हैं, लेकिन सांगठनिक रूप से भाजपा और राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ जैसी सहायता उन्‍हें नहीं मिल रही। हालांकि, वे यह बताना नहीं चूकते कि मुकाबला कांटे का है। और तो और हर बार प्रत्‍याशी बदल देने वाली भाजपा को इस बार टक्‍कर कांग्रेस की महिलाएं दे रहीं।

    ताबड़तोड़ रैलियों की योजना

    उल्‍लेखनीय है कि कांग्रेस को ग्सत्ता से दूर करने के बाद पिछले वर्ष 28 दिसंबर को राजधानी रायपुर में भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों की एक बड़ी बैठक हुई थी। उसमें लोकसभा चुनाव के लिए चार माह के अभियान की रणनीति बनी। तय हुआ कि शुरुआती दो माह गांव चलो अभियान के बाद ताबड़तोड़ रैलियां होंगी।

    गांव चलो अभियान का विधानसभा चुनाव में उसे सुफल मिल चुका था। लिहाजा भाजपा के बड़े नेता जनसंपर्क के साथ जनसभाओं में जुटे हुए हैं। मुख्‍यमंत्री विष्‍णुदेव साय प्रतिदिन तीन-चार सभाएं तो कर ही रहे, उनकी पत्‍नी कौशल्‍या साय भी मंच से धुआंधार भाषण दे रहीं। दूसरी तरफ कांग्रेस इत्‍मीनान के भाव से प्रचार कर रही।

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