Bihar Assembly Election 2025: वोट प्रतिशत और सीटों का गणित, दो चुनावों के आंकड़े बताते हैं बदलते समीकरण की कहानी
बिहार की राजनीति में 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव महत्वपूर्ण रहे। 2015 में महागठबंधन जीता जिसमें राजद को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं। 2020 में समीकरण बदल गए भाजपा और जदयू साथ आए। राजद का वोट प्रतिशत बढ़ा पर सीटें कम हुईं जबकि भाजपा की सीटें बढ़ीं। Bihar Election 2025 में क्या होगा ये देखने लायक होगा।

सुनील राज, पटना। बिहार की राजनीति हमेशा ही उतार-चढ़ाव से भरी रही है। यहां जातियों का समीकरण पांच साल में नई कहानी लिखते हैं। राजनीति के उतार-चढ़ाव को समझने के लिए 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव सबसे बड़े उदाहरण हैं।
दोनों ही चुनावों में मतदाताओं ने अलग-अलग संदेश दिया और गठबंधन की राजनीति ने नतीजों की दिशा ही बदल दी। दोनों ही चुनाव में वोट प्रतिशत और सीटों का गणित बदलने से सत्ता की चाबी इधर से उधर होती रही। आंकड़े बताते हैं कि राजद-भाजपा जैसे विरोधी दल का जब वोट प्रतिशत बढ़ा तो इनकी सीटें घट गई और जब सीटें बढ़ी तो वोट प्रतिशत घट गए।
साल 2015 का चुनाव नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के साथ आने से बने महागठबंधन के लिए ऐतिहासिक रहा। उस वक्त जदयू, राजद-कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा। परिणाम आए तो राजद को सबसे ज्यादा 80 सीटें और 18.4 प्रतिशत वोट मिले। जदयू ने 71 सीटें जीतकर 16.8 प्रतिशत वोट हासिल किए। जबकि कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं और उसका वोट प्रतिशत 6.7 प्रतिशत रहा।
दूसरी ओर मुकाबले में खड़ी भाजपा को 24.4 प्रतिशत वोट तो मिले परंतु जीत मिली 53 सीटों पर। आंकड़ों से साफ है कि 2015 में महागठबंधन ने 178 सीटें जीतकर सत्ता पर कब्जा कर लिया, जबकि एनडीए को केवल 58 सीटें मिलीं। यह नीतीश-लालू के सोशल इंजीनियरिंग एकजुटता ने मोदी लहर में भी बड़ी जीत हासिल की।
2020 में समीकरण पूरी तरह बदला
पांच साल बीतते-बीतते 2020 में समीकरण पूरी तरह बदल चुके थे। गए। इस बार नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, जबकि राजद ने कांग्रेस और वामदलों को साथ लिया। नतीजे कड़े मुकाबले में आए। इस चुनाव वैसे तो राजद के वोट प्रतिशत बढ़ा और 23.1 प्रतिशत वोट के साथ सबसे बड़ा दल बना लेकिन उसकी 80 सीटें घटकर 75 हो गई।
वहीं भाजपा ने 19.5 प्रतिशत वोट के साथ 74 सीटें जीती। हालांकि पिछले चुनाव की अपेक्षा जदयू कमजोर हुआ और उसे केवल 43 सीटें और 15.4 प्रतिशत वोट मिले। वहीं कांग्रेस का वोट प्रतिशत जरूर बढ़कर 9.5 प्रतिशत रहा परन्तु इतने वोट के बाद भी वह सिर्फ 19 सीटें जीत सकी। वाम दलों सीपीआइ, सीपीआइ-एमएल और सीपीएम को 16 सीटें और 4.25 प्रतिशत वोट मिले।
दो चुनावों के आंकड़े स्पष्ट कर देते हैं कि राजद का हालांकि 2015 में वोट प्रतिशत कम था परंतु उसकी सीटें ज्यादा थी। पांच वर्ष बाद के चुनाव में राजद का वोट प्रतिशत तो बढ़ा परंतु सीटें घट गई। वहीं जिस भाजपा को 2015 में महज 53 सीटें और 24.4 प्रतिशत वोट हासिल किया 2020 में उसकी सीटें जरूर बढ़ कर 74 हो गई परंतु वोट प्रतिशत घटकर 19.5 प्रतिशत हो गया।
चुनावी आंकड़े बताते हैं कि राजद लगातार अपना वोट आधार बढ़ा रहा है तो भाजपा सीटों के लिहाज से मजबूत हुई है। आंकड़े यह भी साफ करते हैं कि बिहार की राजनीति हर चुनाव नए रंग दिखाती है। आने वाले चुनाव और उसके परिणाम बताएंगे कि किसी गठबंधन का गठित सही बैठा और मतदाताओं ने किसे मौका दिया।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।