Bihar Election: नई उड़ान भरने को आतुर है सीमांचल की राजनीति, इन मुद्दों को लेकर हो रहा घमासान
सीमांचल की राजनीति में इस बार कई मुद्दे हावी हैं। प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने घुसपैठ रोकने की बात कही है जिसे बिहार की अस्मिता से जोड़ा जा रहा है। वहीं राहुल गांधी और तेजस्वी यादव वोटर अधिकार यात्रा के माध्यम से वोट चोरी और मतदाता सूची की गड़बड़ी का मुद्दा उठा रहे हैं।

शंकर दयाल मिश्रा, भागलपुर। प्रशासनिक तौर पर यह चार जिलों (पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज) वाला पूर्णिया प्रमंडल है और भौगोलिक रूप से सीमांचल। राजनीति को भी इसका भौगोलिक स्वरूप ही रास आता है।
इस प्रमंडल में विधानसभा की 24 सीटें हैं और सभी की सभी तेज राजनीतिक तरंगें बिखेर रहीं। अधिसंख्य सीटों पर मुसलमान मतदाताओं की बहुलता है, इसलिए यहां गोलबंदी तगड़ी होती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह घुसपैठ रोकने की बात कर गए हैं, जो कि मुद्दा बन रहा। इसे वे बिहार की अस्मिता और सुरक्षा से जोड़कर सामने रख रहे हैं।
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा से वोट चोरी और मतदाता सूची की गड़बड़ी भी बड़ा प्रश्न है। इसके अलावा आरक्षण और रोजगार भी मुद्दा है। पूर्णिया के निर्दलीय सांसद पप्पू यादव का फैक्टर भी यहां थोड़ा-बहुत रहता है।
पिछली बार सीमांचल की पांच सीटों पर जीत दर्ज करने वाले एआइएमआइएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी फिर से मैदान में उतर गए हैं। जन सुराज पार्टी भी जोर आजमाइश कर रही। सीमांचल में बांग्ला बोलने वाले बदिया मुसलमानों की संख्या अच्छी-खासी है।
बांग्लादेशी घुसपैठिए भी यहां पकड़े जाते रहे हैं। हाल में ही प्रधानमंत्री ने पूर्णिया एयरपोर्ट का उद्घाटन किया। 40 हजार करोड़ की योजनाओं का शिलान्यास-उद्घाटन हुआ। मखाना बोर्ड का गठन हुआ।
इस तरह एनडीए अपने कामकाज की दुहाई दे रही। कुल मिलाकर, घुसपैठ बनाम वोट चोरी, विकास बनाम आरक्षण और रोजगार, एनडीए बनाम महागठबंधन की बहस ने पूरे इलाके को चुनावी रणभूमि बना दिया है। कह सकते हैं कि घुसपैठ की पीठ पर सवार सीमांचल की राजनीति एक नई उड़ान भरने को आतुर है।
किशनगंज की चारों सीटें मुस्लिम राजनीति का केंद्र
2020 में कांग्रेस ने किशनगंज पर जीत दर्ज की। बहादुरगंज और कोचाधामन में एआइएमआइएम के विधायक जीते जो बाद में राजद के हो गए ठाकुरगंज राजद के कब्जे में आया।
किशनगंज सीट पर कांग्रेस और भाजपा में कड़ा मुकाबला होता है, जबकि बाकी तीन सीटों पर राजद और एआइएमआइएम के बीच खींचतान बनी रहती है। यहां मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका निभाता है।
पूर्णिया की सात सीटों पर जटिल समीकरण
भाजपा पिछली बार पूर्णिया और बनमनखी में जीती थी। जदयू धमदाहा में सफल रहा। कांग्रेस ने कसबा और एआइएमआइएम ने अमौर पर कब्जा जमाया। बायसी सीट से एआइएमआइएम के जीते विधायक बाद में राजद में सम्मिलित हुए।
रूपौली उप नाव में निर्दलीय जीतकर शंकर सिंह ने सबको चौंकाया। पूर्णिया शहर सीट पर भाजपा का वर्चस्व लंबे समय से है। अमौर, बायसी और कसबा मुस्लिम बहुल क्षेत्र हैं।
कटिहार की सातों सीटें उलझाती हैं समीकरण
यहां की सातों सीटें समीकरणों को उलझाती रही हैं। भाजपा ने 2020 में कटिहार, कोढ़ा और प्राणपुर पर कब्जा किया। कांग्रेस ने मनिहारी और कदवा सीटें जीतीं। बरारी जदयू और बलरामपुर सीट भाकपा-माले के खाते में गई।
कटिहार शहर पूर्व उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद का गढ़ है। मनिहारी पर कांग्रेस मजबूत रही है। कदवा और प्राणपुर हमेशा त्रिकोणीय मुकाबले का गवाह बनते हैं।
अररिया में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर
छह विधानसभा सीटों वाले अररिया जिला की राजनीति जातीय और धार्मिक समीकरणों पर आधारित है। 2020 में भाजपा ने फारबिसगंज, सिकटी और नरपतगंज जीता।
कांग्रेस को अररिया और जदयू को रानीगंज में जीत मिली। एआइएमआइएम ने जोकीहाट का मैदान मारा, लेकिन उसके विधायक सरफराज आलम बाद में राजद में चले गए।
अररिया सीट मुस्लिम बहुल है और कांग्रेस नेता आबिदुर्रहमान लगातार जीत रहे। फारबिसगंज और नरपतगंज पर भाजपा का दबदबा है।
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