Phulwari Assembly Seat 2025: राजग से 2 दावेदार ठोक रहे ताल, महागठबंधन नहीं बदलेगा चेहरा!
फुलवारी विधानसभा क्षेत्र में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट पर राजनीतिक दलों की तैयारी जोरों पर है। राजद कांग्रेस और जदयू ने यहाँ कई बार जीत हासिल की है। इस बार जदयू और सीपीआई-माले के बीच टक्कर की संभावना है। ग्रामीण आबादी और जातिगत समीकरणों का चुनाव पर गहरा प्रभाव पड़ता है इसलिए सभी पार्टियां मतदाताओं को लुभाने में लगी हैं।

पवन कुमार मिश्र, पटना। शहरी-ग्रामीण आबादी वाली पाटलिपुत्र लोकसभा सीट में आने वाली राजधानी पटना की फुलवारी विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है। 1977 में फुलवारी विधानसभा क्षेत्र का गठन हुआ और अबतक 12 चुनाव हो चुके हैं। इनमें सबसे अधिक चार बार महागठबंधन के प्रमुख घटक राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने चार, कांग्रेस ने तीन व जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने दो बार जीत हासिल की है।
इसके अलावा एक-एक बार जनता पार्टी, जनता दल व सीपीआई माले को जनता ने मौका दिया। गत तीन विधानसभा चुनावों (2010, 2015, 2020) में यहां से महागठबंधन के राजद और एक बार सीपीआई-माले ने जीत हासिल की थी। सीपीआई-माले को 2019 में नौबतपुर निर्वाचन क्षेत्र के पुनपुन प्रखंड की दलित बहुल 20 पंचायतों के फुलवारी में शामिल होने के बाद राजद ने पहली बार सीपीआई-माले काे यह सीट दी थी।
सीपीआई माले के गोपाल रविदास ने पहली ही बार में 91 हजार से अधिक मत प्राप्त कर जेडीयू के अरुण मांझी को 13 हजार 857 मतों से हराया था। आसन्न विधानसभा चुनाव में भी राजग के जदयू व महागठबंधन के सीपीआई-माले के गोपाल रविदास के बीच ही टक्कर की बात कही जा रही है। हालांकि, इस बार जदयू से अरुण मांझी के अलावा एक वर्ष पूर्व राजद से जदयू में लौटे श्याम रजक भी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।
बताते चलें कि श्याम रजक फुलवारी विधानसभा सीट से सर्वाधिक छह, एक बार जनता दल, तीन बार राजद व दो बार जदयू से विजय हासिल कर चुके हैं। निर्वाचन क्षेत्र में अरुण मांझी, श्याम रजक के अलावा सीपीआई माले के गोपाल रविदास के समर्थकों ने जनसंपर्क समेत अन्य तैयारियां शुरू कर दी हैं।
श्याम रजक व अरुण मांझी दोनों की दावेदारी राजग को भारी पड़ने की बात कही जा रही है। वहीं, एआइएमआइएम और जन सुराज समेत अन्य दलों से कौन प्रत्याशी होगा, अभी तक तय नहीं हुआ है।
74 प्रतिशत ग्रामीण मतदाता तय करते जीत-हार:
फुलवारी ग्रामीण प्रधान विधानसभा सीट है। यहां करीब 26 प्रतिशत शहरी और 74 प्रतिशत ग्रामीण आबादी है। सुरक्षित सीट होने के कारण यहां अनुसूचित जाति का बाहुल्य है लेकिन ओबीसी व मुस्लिम वोट भी निर्णायक साबित होते हैं। बिहार जाति सर्वे 2023 के अनुसार यहां ओबीसी-ईबीसी आबादी 63 प्रतिशत है। ऐसे में इसका जीत-हार से सीधा संबंध है।
2020 के आंकड़ों के अनुसार, फुलवारी में 23.45 प्रतिशत अनुसूचित जाति, करीब 15 प्रतिशत यादव व कुशवाहा-कोईरी जैसे अन्य पिछड़ा वर्ग करीब 15 प्रतिशत है। मुस्लिम आबादी भी करीब 15 प्रतिशत है। इसके अलावा भूमिहार, राजपूत व अन्य जातियां हैं। ग्रामीण क्षेत्र की अनुसूचित जाति को सीपीआई-माले का कैडर वोट माना जाता है। यादव व मुस्लिम का झुकाव राजद के कारण महागठबंधन की ओर रहता है।
जदयू कार्यकर्ताओं के अनुसार, नौबतपुर से अलग होकर पुनपुन प्रखंड की जो 20 पंचायतें शामिल हुईं हैं, उनमें से 14 में सीपीआई-माले के मुखिया-सरपंच हैं। उसे सबसे ज्यादा वोट उसी क्षेत्र से मिलते हैं। उसमें खासकर दलित वोटों में सेंधमारी के लिए राजग खास रणनीति पर काम कर रहा है।
अंतिम मतदाता सूची के बाद तय होंगे प्रत्याशी:
मतदाता गहन पुनरीक्षण की प्रारूप सूची में फुलवारी निर्वाचन क्षेत्र से दीघा, बांकीपुर, मसौढ़ी के बाद सर्वाधिक मतदाताओं के नाम हटे हैं। यहां 34 हजार 986 मृत, स्थायी रूप से स्थानांतरित या दूसरी विधानसभा में पंजीकृत लोगों के नाम हटे हैं। 30 सितंबर को अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन होगा। इसके बाद ही राजग के घटक दल जदयू, एआइएमआइएम व जनसुराज जैसे दल अपने प्रत्याशियों के नाम तय करेंगी।
शहरी क्षेत्र व महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी तो बदलेगी गणित:
विभिन्न दलों के नेताओं के अनुसार यदि फुलवारी शहरी क्षेत्र व महिलाओं का मतदान प्रतिशत बढ़ा तो पहली बार जातीय समीकरण की गणित गड़बड़ा सकती है। इस बार निर्वाचन आयोग भी 66 प्रतिशत मतदान के लिए विशेष अभियान चला रहा है।
इसमें भी खास जोर महिलाओं व उन शहरी बूथों पर दिया जा रहा है जहां मतदान प्रतिशत काफी कम है। कुल मिलाकर इस बार भी यहां कांटे की टक्कर होगी, बस राजग के संभावित प्रत्याशी एक-दूसरे की खिलाफत नहीं करें।
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