क्या जदयू-भाजपा का गठबंधन ही 'परफेक्ट मैच' है? सीटों की संख्या में बढ़ोतरी कह रही खास कहानी
Bihar vidhan sabha chunav Result: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए मतों की गिनती पूरी होने के बाद अब नेता सुस्ताने के साथ ही साथ चिंतन-मंथन भी कर रहे। 2005 में सत्ता में आने के बाद से जब सीएम नीतीश कुमार की पार्टी जदयू भाजपा के साथ रही और जब राजद के साथ गई तो उनके प्रदर्शन में साफ अंतर देखने को मिला। ऐसे में राजनीति के जानकारों का मानना है कि जदयू और भाजपा का गठबंधन ही सही है।

Bihar vidhan sabha chunav Result: बीच-बीच में जदयू-भाजपा संबंध को लेकर तरह-तरह की बातें होती रहती हैं। फाइल फोटो
जागरण संवाददाता, मुजफ्फरपुर। Bihar vidhan sabha chunav Result: बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम सामने आने के बाद सत्ताधारी एनडीए में खुशी की लहर है।
वे जनता की ओर से दिए गए प्रचंड बहुमत के निहितार्थ को समझने की कोशिश करने के साथ ही साथ नई सरकार बनाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की दिशा में काम करते दिख रहे हैं।
गठबंधन परफेक्ट मैच
इस बीच कई विश्लेषण सामने आ रहे हैं। लालू विरोध के आधार पर सत्ता में आए एनडीए के दलों के बीच के संबंधों का और उसका ग्राउंड पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर भी एक विश्लेषण सामने आया है। जिसमें यह जानने की कोशिश की गई है कि क्या जदयू और भाजपा का गठबंधन परफेक्ट मैच है?
भाजपा के साथ गठबंधन
मुजफ्फरपुर जिले की बात करें तो भाजपा और जदयू की युगलबंदी को जनता लगातार पसंद करती रही है। चुनावी ट्रेंड भी यही बताते हैं कि जब जदयू महागठबंधन के साथ गया तब उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली, लेकिन भाजपा के साथ गठबंधन में उसे खूब समर्थन मिला है।
इस बार भी एनडीए के तहत जदयू को जिले में चार सीटें मिलीं और पार्टी ने सभी पर जीत दर्ज की। इसी तरह भाजपा ने भी अपने हिस्से की सभी सीटों पर शानदार प्रदर्शन किया।
2005 में बेहतर प्रदर्शन
राजनीतिक के जानकारों का मानना है कि यह गठबंधन जनता की पहली पसंद बन चुका है। सामाजिक समीकरण भी इस गठबंधन को मजबूती प्रदान करते हैं। जदयू के वरीय नेता नरेंद्र पटेल ने बताया कि 2005 से जदयू और भाजपा साथ मिलकर चुनाव लड़ते रहे हैं और प्रदर्शन हमेशा बेहतर रहा है।
2015 में बुरा प्रदर्शन
वर्ष 2015 में पार्टी एनडीए के साथ नहीं, बल्कि महागठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़ी थी। शहर की सीट से विजेंद्र चौधरी, कुढ़नी से मनोज कुमार सिंह उर्फ मनोज कुशवाहा और बोचहां से रमई राम उम्मीदवार थे, लेकिन किसी भी सीट पर पार्टी को सफलता नहीं मिली।
एक सीट पर जीत
वहीं, 2020 के विधानसभा चुनाव में स्थिति पूर्ववत हुई। जदयू ने जिले की चार सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे । गायघाट से पूर्व विधायक महेश्वर यादव, कांटी से मो. जमाल, मीनापुर से मनोज किसान और सकरा से अशोक चौधरी मैदान में थे। इनमें से केवल सकरा सीट पर पार्टी को जीत मिली।
शानदार सफलता
इससे पूर्व 2010 में जदयू ने जिले के छह सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे और सभी पर जीत दर्ज की। इनमें कांटी से ई. अजीत कुमार, मीनापुर से दिनेश प्रसाद, साहेबगंज से राजू कुमार सिंह राजू, कुढ़नी से मनोज कुशवाहा, सकरा से सुरेश चंचल और बोचहां से रमई राम प्रत्याशी थे।
चार सफलता
नरेंद्र ने बताया कि नवंबर 2005 के चुनाव में भी पार्टी ने जिले की सभी सीटों सकरा से बिलट पासवान, बोचहां से रमई राम, मीनापुर से दिनेश प्रसाद, औराई से अर्जुन राय, कांटी से ई. अजीत कुमार, साहेबगंज से राजू कुमार सिंह राजू, कुढ़नी से मनोज कुमार सिंह, बरूराज से नंदकुमार राय और गायघाट से वीरेन्द्र कुमार सिंह ने जीत हासिल की थी। इस बार भी एनडीए गठबंधन के तहत जदयू को मिली चारों सीटों पर पार्टी ने विजय पताका फहराया था।
कार्यकर्ताओं के लिए भी सहज
यह परिणाम वैसे तो केवल एक जिले का है, लेकिन इसका संदेश स्पष्ट है। अन्य जिलों में भी उल्लेखित अवधि के दौरान दोनों दलों का प्रदर्शन कुछ इसी तरह का देखने को मिला था। इसलिए यह बात सामने आ रही है कि जदयू और भाजपा के गठबंधन को न केवल शीर्ष स्तर पर वरन ग्राउंड लेवल पर भी पसंद किया जाता है। दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के लिए साथ मिलकर काम करना सहज और सरल होता है।

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