Bihar Politics: 48 साल से ताली बजाने को तरस रहा कांग्रेस का 'हाथ', इस सीट पर 1977 में लगा था 'ग्रहण'!
कभी बैलगाड़ियों पर निर्भर पूर्णिया अब हवाई यात्रा के लिए तैयार है। पूर्णिया सदर विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है लेकिन कांग्रेस यहां 48 वर्षों से जीत के लिए तरस रही है। 1952 से 1977 तक कांग्रेस का दबदबा था लेकिन 1977 के बाद जनता पार्टी और फिर माकपा ने जीत हासिल की। वर्तमान में भाजपा का प्रतिनिधित्व है और कांग्रेस पूर्णिया पर विशेष ध्यान दे रही है।

प्रकाश वत्स, पूर्णिया। बस ढाई-तीन दशक पूर्व तक बैलगाड़ी पर सवार पूर्णिया अब हवाई सफर की तैयारी में है। देश के प्राचीनतम जिलों में शुमार जिला व इसका मुख्यालय पूर्णिया सदर विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी अहम है। बड़ी बात यह है कि कांग्रेस पूरे 48 साल से यहां जीत को तरस रही है।
कार्यकर्ताओं के हाथ ताली पीटने को तरस रहे हैं। प्रथम बार में छक्का लगातार छह चुनावों में जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस ने यहां इस बार मजबूत प्रयास भी शुरू किए हैं, लेकिन अभी चुनावी धूम आना बाकी है। चुनावी धूम का रंग परिणाम तय करेगा।
पूर्णिया सदर विधानसभा क्षेत्र का गठन सन 1951 में हुआ था। सन 1952 में हुए प्रथम चुनाव में यहां कांग्रेस के कमलदेव नारायण सिंहा विजयी हुए थे। सन 1977 तक वे लगातार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। सन 1977 के चुनाव में यहां जनता पार्टी के देवनाथ राय विजयी हुए थे।
यही चुनाव कांग्रेस के लिए बड़ा ग्रहण बन गया और तब से आज तक पार्टी यहां विजय पताका फहराने में असफल है। पूर्णिया का ताज चुनापुर गांव पहुंच गया था। चुनापुर गांव पहचान का मोहताज नहीं है। इसी गांव में सैन्य एयरपोर्ट भी है और अब यहीं से लोग हवाई यात्रा भी करेंगे।
मूल रूप से इस गांव की पहचान यहां की पौराणिक संपन्नता व फिर विद्वता की भी रही है। स्व. देवनाथ राय भी उस समय इलाके के जमींदार माने जाते थे। यूं तो पूरा राय परिवार मां लक्ष्मी की कृपा वाला परिवार माना जाता था और अब भी यह धारणा कमोवेश जीवित है।
स्व. देवनाथ राय के भी दो पुत्र चिकित्सक व एक उच्च न्यायालय के अधिवक्ता हैं। इसी तरह इलाके में इस परिवार की अलग प्रतिष्ठा भी उनकी जीत का कारण बना था।
सन 1980 में लाल झंडे की मजबूत धमक हुई और देवनाथ राय चुनाव हार गए। माकपा के अजीत सरकार विजयी हुए और सन 1998 तक यहां का प्रतिनिधित्व किया। सन 1998 में ही उनकी हत्या हो गई और उपचुनाव में उनकी पत्नी माधवी सरकार विजयी हुई।
सन 2000 के चुनाव से यहां भाजपा का कमल खिल रहा है। सन 2000 से 2010 राजकिशोर केशरी यहां जीत करते रहे। जीत के कुछ दिनों बाद ही उसकी हत्या हो जाने से सन 2011 में हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी किरण देवी विजयी हुई थी।
सन 2015 के चुनाव में भाजपा ने यहां विजय कुमार खेमका को मैदान में उतारा और अभी तक वे यहां का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इस बार इस सीट पर कांग्रेस की खास नजर टिकी हुई है।
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