NDA में छोटे दलों के पूरे नहीं होंगे किंगमेकर बनने के सपने, इस तरह होगा सीटों का बंटवारा
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा और जदयू ने राजग में सीट बंटवारे को लेकर सहमति बना ली है। सहयोगी दलों को उनकी वास्तविक क्षमता के अनुसार ही सीटें मिलेंगी उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं। दोनों दल लगभग 105-107 सीटें अपने पास रख सकते हैं। राजग सरकार में स्थिर बहुमत और मजबूत सरकार सुनिश्चित करना चाहती है।

अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में सीट बंटवारे को लेकर अंतिम निर्णय भले ही अभी लंबित है, लेकिन भाजपा-जदयू के बीच आपसी समझ बन चुकी है कि सहयोगी दलों को व्यावहारिक हिस्सेदारी ही दी जाएगी।
अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं। जाहिर है, दोनों बड़े दल सतर्कता के साथ आगे बढ़ रहे हैं। छोटे दलों के किंगमेकर बनने की संभावना नहीं रहने जा रही है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के चिराग पासवान, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी एवं राष्ट्रीय लोक मोर्चा के उपेंद्र कुशवाहा गठबंधन में सम्मानजनक हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं।
तर्क है कि उनके पास क्षेत्रीय आधार और जातिगत वोट बैंक है, जिसे नजरअंदाज करना गठबंधन के लिए नुकसानदेह हो सकता है। मगर भाजपा-जदयू के शीर्ष नेताओं की साझा रणनीति यह सुनिश्चित करना है कि सीटों का बंटवारा ऐसा हो कि चुनाव के बाद बिहार में स्थिर सरकार बने और बाद में अनावश्यक समीकरण बदलने की गुंजाइश न रहे।
भाजपा और जदयू को मिलेंगी सबसे ज्यादा सीटें
इस मंशा के तहत राजग के दोनों बड़े दल अपने पास सर्वाधिक सीटें रखेंगे और अन्य सहयोगी दलों को वास्तविक क्षमता के अनुसार ही सीटें मिलेंगी। उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं। राजग के शीर्ष सूत्र के अनुसार जदयू और भाजपा अपने पास 105 से 107 सीटें रख सकते हैं। बाकी की सीटों पर सहयोगी दलों में बंटेंगी।
सीटों को लेकर इस बार बरती जा रही सतर्कता
पिछली बार की स्थितियों से सबक लेते सतर्कता बरती जा रही है। 2020 के विधानसभा चुनाव में राजग ने कुल 243 सीटों में से 125 सीटें जीतकर बहुमत प्राप्त किया था। मतलब सरकार बनाने के आंकड़े से सिर्फ दो ज्यादा। इसमें भाजपा को 74 और जदयू को 43 सीटें मिलीं थीं। सहयोगी दलों हम और विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) ने चार-चार सीटें जीतीं थी। तब वीआईपी के मुकेश सहनी भी राजग के साथ थे।
विपक्षी गठबंधन में राजद सबसे बड़ा दल बनकर उभरा था और उसे 75 सीटें मिलीं थीं। कांग्रेस को 19 और वामदलों को 16 सीटें मिली थीं। चुनाव परिणाम आने के बाद दोनों छोटे दलों को लेकर संशय गहराने लगा था। यदि उनमें से कोई एक भी पाला बदल लेता तो राजग की सरकार अल्पमत में आ जाती। ऐसे में जदयू ने एक बसपा विधायक एवं एक निर्दलीय को साथ लाकर सरकार पर संभावित खतरे को टाल दिया।
गठबंधन के सहयोगियों को दिया गया ये संकेत
राजग के इस फार्मूले से साफ है कि छोटी पार्टियों को सम्मानजनक हिस्सेदारी मिलेगी, लेकिन चुनावी शक्ति को संतुलित रखने का भी प्रयास होगा। इस बार भाजपा और जदयू ने यह संदेश पहले ही दे दिया है कि गठबंधन में सहयोगियों की भूमिका अहम तो होगी, पर निर्णायक नहीं, क्योंकि इस बार स्थिर बहुमत और मजबूत सरकार ही राजग की प्राथमिकता है।
बड़े दलों की मजबूरी
बिहार की राजनीति में बड़ी पार्टियां लंबे अरसे से अकेले सभी सीटों पर चुनाव नहीं लड़ पा रही हैं। क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों के कारण भाजपा, जदयू, कांग्रेस और राजद जैसे बड़े दलों को अन्य छोटे-छोटे दलों को गठबंधन में शामिल करने की मजबूरी रहती है। इस बार भी छोटे दलों की भूमिका महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनका वोट बैंक कई जिलों में निर्णायक साबित होता है।
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