जागरण संपादकीय: बेहतर कल की आस, उम्मीद जगाता नव वर्ष का आगमन
अच्छा हो कि नए वर्ष में सचमुच नई तरह की राजनीति की जाए और उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जाए जो जनहित से जुड़े हैं और जिनका समाधान कर देश को आगे ले जाया जा सकता है। जब राजनीति अपने पथ और दायित्वों से भटके तब समाज को अपनी सहमतियों और असहमतियों से राजनीतिक वर्ग पर ऐसा दबाव बनाना होता है कि वह जो अभीष्ट है उसकी पूर्ति करे।
समय के साथ बहुत कुछ नया और बेहतर होता है, लेकिन नव वर्ष का आगमन यह कहीं अधिक उम्मीद जगाता है कि आने वाला समय शुभ हो। हम भारतीय सभी के शुभ की कामना करते हैं, क्योंकि भारतीय संस्कृति यही कहती है। यही कामना इस वर्ष भी की जानी चाहिए।
इसके साथ ही यह आशा भी की जानी चाहिए कि देश ने अपने लिए जो लक्ष्य निर्धारित किए हुए हैं, वे समय पर सही तरह से पूरे हों, ताकि विकसित भारत की दिशा में कदम बढ़ा रहे देश के समक्ष कोई अवरोध उत्पन्न न हों और यदि वे उत्पन्न हों भी तो उन्हें सफलतापूर्वक दूर किया जा सके।
अवरोधों को हटाने अर्थात समस्याओं का निराकरण करने की सबसे अधिक जिम्मेदारी शासन- प्रशासन की होती है और शासन-प्रशासन की सामर्थ्य बहुत कुछ देश की राजनीति के रुख-रवैये से तय होती है। इसीलिए यह कहा जाता है कि राजनीति का काम है लोगों को दिशा दिखाना।
हमारी राजनीति यह काम वास्तव में कर सके, इसके लिए इस नए वर्ष में राजनीतिक दलों को अपने रवैये में बदलाव लाने के लिए विशेष प्रयत्न करने होंगे। इसलिए और भी, क्योंकि बीते वर्ष टकराव और कलह की जो राजनीति देखने को मिली और इसके चलते देश की जनता का ध्यान वास्तविक मुद्दों से भटकाने की जैसी कोशिश की गई, वह बहुत ही निराशाजनक है।
बीते कुछ समय से राजनीति के स्तर पर यह जो प्रतीति कराने की कोशिश की जा रही है कि स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद हमारा संविधान खतरे में है, वह व्यर्थ का विचार है। इसी तरह यह प्रचारित करना भी सस्ती राजनीति का ही परिचायक है कि गांधी अथवा आंबेडकर की विरासत खतरे में पड़ गई है। ऐसे विचार भारत की राजनीतिक अपरिपक्वता और साथ ही छिछले सार्वजनिक विमर्श का परिचायक हैं।
अच्छा हो कि नए वर्ष में सचमुच नई तरह की राजनीति की जाए और उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जाए, जो जनहित से जुड़े हैं और जिनका समाधान कर देश को आगे ले जाया जा सकता है। जब राजनीति अपने पथ और दायित्वों से भटके, तब समाज को अपनी सहमतियों और असहमतियों से राजनीतिक वर्ग पर ऐसा दबाव बनाना होता है कि वह जो अभीष्ट है, उसकी पूर्ति करे।
जब इस पर देश और दुनिया एकमत है कि आने वाला कल भारत का है, तब उन संभावनाओं को भुनाने की हर संभव कोशिश होनी चाहिए, जो सामने दिख रही हैं। चूंकि संभावनाएं अपने साथ चुनौतियां लेकर भी आती हैं, इसलिए उनका सामना हमें पहले से अधिक दृढ़ता और मिलकर करना होगा। ऐसा किया जाना तब कहीं अधिक आसान होगा, जब नए विचार और नई कार्य संस्कृति को अपनाया जाएगा। इस संदर्भ में जितना सजग सरकारी तंत्र को रहना होगा, उतना ही समाज को भी।
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