डॉ. सूर्यकांत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से सिंगल यूज यानी एक बार प्रयोग में लाए जाने वाले प्लास्टिक का उपयोग बंद करने का आह्वान किए जाने के बाद से देश में उसके खिलाफ माहौल बनना शुरू हुआ है। आगामी दो अक्टूबर से सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करने की तैयारी की जा रही है। आंकड़ों के अनुसार आज भारत में औसत व्यक्ति प्रतिवर्ष 11 किलो प्लास्टिक की वस्तुओं का उपयोग किया जा रहा है, जबकि विश्व में यह 28 किलो प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष है। इसके बावजूद प्लास्टिक का उपयोग इसलिए चिंताजनक है, क्योंकि हमारे यहां उसके निस्तारण की सही व्यवस्था नहीं बन सकी है।

एक प्लास्टिक बैग अपने वजन से कई गुना ज्यादा वजन उठा सकता है। इसके कारण बहुत से लोग जब कुछ खरीदने जाते हैं तो कपड़े या जूट का थैला नहीं लेकर जाते। सामान बेचने वाले विक्रेता उन्हें पॉलीथिन के थैले में सामान दे देते हैं। इसके कारण ही सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बहुत बढ़ गया है। इससे ऐसे जहरीले पदार्थ निकलते हैं जो मानव स्वास्थ्य को खराब कर रहे हैं।

जल प्रदूषण का कारण बना प्लास्टिक

प्लास्टिक आज जल प्रदूषण का बड़ा कारण बन रहा है, इसकी वजह इस पर बढ़ती हमारी निर्भरता है। जैसे पानी पीने की बोतल, प्लास्टिक के चम्मच, टूथब्रश, थाली, कप, गिलास, बैग आदि। एक समय इनमें से अनेक वस्तुएं प्लास्टिक की नहीं होती थीं। दरअसल सहूलियत के कारण प्लास्टिक का अधिक उपयोग बढ़ा है। आज तमाम वस्तुओं की पैकिंग के लिए भी प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है। यहां तक कि बच्चों के खेलने के लिए भी प्लास्टिक के खिलौने बनाए जाने लगे हैं।

समुद्र में हजारों वर्षों तक पड़ी रहती हैं प्लास्टिक की वस्तुएं

प्लास्टिक की ज्यादातर वस्तुएं एक बार में काम में लेने के बाद फेंक दी जाती हैं। ये इधर-उधर जमा होती रहती हैं और जब बारिश होती है तो ये पानी के साथ बहकर नदियों और नालों में चली जाती हैं। उसके बाद समुद्र में चली जाती हैं। कई बार तो इन प्लास्टिक की थैलियों के कारण नदी-नालों का बहाव रुक जाता है। प्लास्टिक की वस्तुएं हजारों वर्षों तक समुद्र में पड़ी रहती हैं। इनसे धीरे-धीरे जहरीले पदार्थ निकलते हैं, जो जल को प्रदूषित करते रहते हैं। कई बार समुद्री जीव प्लास्टिक को खाना समझकर खा लेते हैं। इसके कारण उनके फेफड़ों या फिर श्वास नली में यह प्लास्टिक फंस जाता है और उनकी मृत्यु हो जाती है। यूनेस्को के अनुसार दुनिया में प्लास्टिक के दुष्प्रभाव से लगभग 10 करोड़ समुद्री जीव-जंतु प्रति वर्ष मर रहे हैं।

जलाने से और ज्यादा फैलता है प्रदूषण

प्लास्टिक की विघटन प्रक्रिया में 400 से ज्यादा साल लग जाते हैं। इस दौरान वे जहरीली गैसें छोड़ते रहते हैं, जिसके कारण भूमि बंजर हो जाती है। प्लास्टिक के कचरे को सही तरह निस्तारित करने के बजाय कई लोग उसे जला देते हैं। लोग समझते हैं कि जलाने से उसे नष्ट किया जा सकता है और प्रदूषण से भी बचा जा सकता है, लेकिन होता बिल्कुल उलट है। जब प्लास्टिक बनाया जाता है तो उसमें बहुत सारे घातक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। जब उसे जलाया जाता है तो ये सारे रसायन हवा में फैल जाते हैं और वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं।

पूरा जीवन प्लास्टिक से घिरा हुआ

प्लास्टिक को जलाए जाने के कारण जो धुआं उत्पन्न होता है उसमें ज्यादा देर तक सांस ली जाए तो कई बीमारियां हो सकती हैं। चूंकि प्लास्टिक का उपयोग दैनिक जीवन में खूब होने लगा है इसलिए लोगों पर उसका दुष्प्रभाव भी बढ़ रहा है। कहा जाता है कि मानव अपने पूरे जीवन में सबसे ज्यादा प्लास्टिक से ही घिरा रहता है और उसी का सबसे ज्यादा उपयोग करता है। लोगों को दैनिक जीवन में जिन वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है उन सभी में प्लास्टिक जहर घोल देता है। इसके चलते अनेक भयंकर बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं।

प्लास्टिक की बजाय स्टील की बोतल का करें इस्तेमाल

मानव के अतिरिक्त पशु, पक्षी एवं वातावरण को भी इससे भयानक नुकसान हो रहा है। प्लास्टिक के दुष्प्रभाव को रोकने के लिए इससे बनी वस्तुओं का बहिष्कार आवश्यक है। दुनिया के अनेक देशों में ऐसा पहले से ही हो रहा है। बतौर उदाहरण कई लोग प्लास्टिक से बने टूथब्रश का इस्तेमाल छोड़ रहे हैं और पीने के पानी के लिए प्लास्टिक के बजाय स्टील की बोतल का इस्तेमाल कर रहे हैं। कई लोग इस्तेमाल योग्य प्लास्टिक के बैग और बोतल तब तक प्रयोग कर रहे हैं जब तक वे खराब नहीं हो जाते। इसी तरह प्लास्टिक से बनी हुई ऐसी वस्तुओं के इस्तेमाल से बच रहे हैं जिनका एक बार इस्तेमाल करने के बाद फेंक दिया जाता है।

प्लास्टिक वस्तुओं के इस्तेमाल से बचना चाहिए 

यह अच्छी बात है कि प्लास्टिक के दुष्प्रभाव का प्रचार-प्रसार शुरू हो गया है, लेकिन आवश्यकता इसकी है कि प्लास्टिक की उन वस्तुओं के विकल्प तलाशे जाएं जिनका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है। कुछ वस्तुओं के विकल्प तो उपलब्ध हैं या फिर आसानी से उपलब्ध हो सकते हैं, लेकिन प्लास्टिक की सभी वस्तुओं का विकल्प खोजने में समय लग सकता है। जब तक ऐसा नहीं होता तब तक आम लोगों को यथासंभव प्लास्टिक की वस्तुओं के इस्तेमाल से बचना चाहिए। प्लास्टिक के नुकसान से छात्रों को भी परिचित कराया जाना चाहिए ताकि वे बचपन से ही प्लास्टिक दुष्प्रभाव के बारे में जानें।

प्लास्टिक के जरिए सड़क बनाने की तकनीकि

प्लास्टिक के उचित निस्तारण के तरीके भी खोजे जाने चाहिए। इस सिलसिले में प्रो. राजगोपालन वासुदेवन ने प्लास्टिक की समस्या का बहुत ही लाजवाब हल निकाला है। उन्होंने प्लास्टिक के जरिये सड़क बनाने की तकनीक की खोज की है। उनके शोध से पता चला है कि एक मजबूत सड़क बनाने में यह बहुत मददगार है। इस कार्य के लिए उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा जा चुका है। कई देशों ने इस तकनीक को अपनाना भी शुरू कर दिया है। इसमें ब्रिटेन एवं नीदरलैंड सबसे ऊपर हैं।

पर्यावरण की रक्षा करने में बनें मददगार 

इससे निजात पाने के लिए कुछ देशों ने प्लास्टिक बैग पर आंशिक तो कुछ देशों ने पूर्ण प्रतिबंध लगाया है। कुछ देश ऐसे प्लास्टिक की खोज के प्रयासों को बढ़ावा दे रहे हैं जिसका क्षरण जल्द हो जाए और जो इस प्रक्रिया में जल, जमीन या हवा को नुकसान न पहुंचाए। जब तक ऐसा प्लास्टिक नहीं मिलता तब तक सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बंद कर हम न केवल पर्यावरण की रक्षा करने में मददगार बनेंगे, बल्कि स्वस्थ समाज की दिशा में भी आगे बढ़ेंगे।

(लेखक इंडियन कॉलेज ऑफ एलर्जी एंड एप्लायड इम्यूनोलॉजी के अध्यक्ष हैं)

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