राज कुमार सिंह। नए वर्ष का स्वागत अनेक आशाओं के साथ अवश्य किया जा रहा है, लेकिन बीता वर्ष बता रहा है कि इस नए वर्ष में टकराव की राजनीति जारी रहेगी। शायद आपसी तल्खी और बढ़ जाए। 2024 राजनीतिक विरासत ही कुछ ऐसी छोड़ कर जा रहा है। वैसे राजनीतिक टकराव की नींव वर्ष 2023 में ही तब पड़ गई थी, जब दो दर्जन विपक्षी दलों ने आईएनडीआईए बनाया और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गौतम अदाणी के जरिये सीधे प्रधानमंत्री मोदी पर प्रहार किया, जिनकी साख भाजपा की सबसे बड़ी पूंजी रही है।

बीच-बीच में उजागर अंतर्विरोधों के बावजूद आईएनडीआईए 18वीं लोकसभा चुनाव में भाजपा को अकेले दम बहुमत पाने से वंचित करने में सफल भी रहा, पर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू जैसे मित्रों की बदौलत मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बन गए। फिर भी लगातार दो लोकसभा चुनावों में पस्तहाल रहे विपक्ष को संजीवनी तो मिल ही गयी।

उसका असर भी नई संसद के पहले सत्र में दिखा, जब विपक्ष ज्यादा आक्रामक दिखा, पर फिर समीकरण बदल गए। पहले हरियाणा और फिर महाराष्ट्र में प्रचंड जीत से भाजपा ने विपक्ष के उत्साह की हवा निकाल दी। संसद के शीतकालीन सत्र में भाजपा के आक्रामक तेवर भी लौट आए तो आईएनडीआईए में तकरार दरारों में तब्दील होती दिखी। संसद के बीते सत्र में भीमराव आंबेडकर का मुद्दा भी जुड़ गया।

यह तय है कि नए वर्ष में वक्फ बोर्ड और एक देश-एक चुनाव विधेयक पर भी जोर आजमाइश जारी रहेगी और समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर भी राजनीति गरमाएगी। इस सबकी छाया वर्ष 2025 पर पड़ेगी ही। आंबेडकर मुद्दे पर प्रदर्शन के दौरान भाजपा-कांग्रेस सांसदों में हुई धक्का-मुक्की मामले में राहुल गांधी के विरुद्ध एफआईआर दर्ज हो चुकी है। यह मामला पिछली लोकसभा में मानहानि मामले में राहुल गांधी की सदस्यता समाप्ति के बाद भाजपा-कांग्रेस में चले टकराव के दूसरे संस्करण का रूप ले सकता है।

भाजपा मामले को कानूनी रूप देना चाहेगी, जबकि कांग्रेस राजनीतिक। हालांकि अदाणी और ईवीएम मुद्दे पर कांग्रेस आईएनडीआईए में अकेली पड़ती दिख रही है, लेकिन आंबेडकर के मुद्दे को वह फिर ‘गेम चेंजर’ बनाना चाहेगी। साझा लाभ देख कर आईएनडीआईए भी आंबेडकर के मुद्दे पर एक स्वर में बोलता नजर आएगा।

इसकी पुष्टि इससे होती है कि दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने भगवान का अपमान बताते हुए आंबेडकर के नाम पर स्कालरशिप शुरू करने का ऐलान कर दिया है। निःसंदेह भाजपा भी शांत नहीं बैठने वाली। जाहिर है इस मसले पर टकराव आगे भी देखने को मिलेगा। किसी की प्रतिबद्धता मापने का कोई पैमाना न भी हो, पर ऐसे भावनात्मक मुद्दों के चुनावी दोहन का मौका कोई नहीं चूकना चाहता।

नया साल शुरू होते ही फरवरी में दिल्ली विधानसभा चुनाव हैं। देश की राजधानी में सत्ता की ‘हैट्रिक’ करने वाली आप चौथी बार जनादेश मांगेगी, जबकि 27 साल से विपक्ष में बैठी भाजपा दिल्लीवासियों का दिल जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। यह राजनीतिक शोध का विषय है कि पिछले तीन लोकसभा चुनावों में भाजपा को सभी सात सीटें जिताने वाली दिल्ली उसे विधानसभा चुनावों में क्यों नकारती रही है?

नए साल में दिल्ली के दिल में किसके लिए क्या है, वह तो चुनाव परिणाम बताएंगे, पर यह स्पष्ट है कि भाजपा और आप के बीच राजनीतिक टकराव चरम पर पंहुचेगा। टकराव कांग्रेस और आप के बीच भी बढ़ने वाला है। लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ीं कांग्रेस और आप विधानसभा चुनाव अकेले तो लड़ेंगी ही, एक-दूसरे पर तल्ख आरोप भी लगाएंगी। इसकी शुरूआत हो चुकी है।

दिल्ली कांग्रेस के बड़े नेता अजय माकन ने आप से दोस्ती को गलती मानते हुए केजरीवाल को देश विरोधी करार दे दिया है। आप ने माकन के विरुद्ध कार्रवाई न किए जाने पर गठबंधन से ही कांग्रेस को बाहर करने के लिए अन्य घटक दलों से बात करने की चेतावनी दे दी है।

आईएनडीआईए की बदौलत ही 99 सीटों पर पहुंच पाई कांग्रेस के लिए गठबंधन की राह लगातार मुश्किल होती दिख रही है। हरियाणा विधानसभा चुनाव में उसने किसी घटक दल को भाव नहीं दिया तो महाराष्ट्र में बड़ा भाई बन बैठी। ऐसे में हार का ठीकरा सबसे ज्यादा उसी पर फूटा। ममता बनर्जी ने गठबंधन के नेतृत्व के लिए दावेदारी जताई तो शरद पवार से लेकर लालू यादव तक ने उनका समर्थन करने में देर नहीं लगाई।

उत्तर प्रदेश के नौ विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को एक भी सीट न देकर अखिलेश यादव भी अपनी मंशा जता चुके हैं। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ईवीएम मु्द्दे पर कांग्रेस को चुनाव परिणाम स्वीकार करने की नसीहत दे चुके हैं, तो उप मुख्यमंत्री पद मांग रही कांग्रेस से झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी खुश नहीं। पिछली बार 70 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस 19 सीटें जीत कर गठबंधन में सबसे कमजोर कड़ी साबित हुई थी।

इसलिए 2025 के अक्टूबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में लालू-तेजस्वी भी उसे हद में रखना चाहेंगे। बेलगावी अधिवेशन के 100 वर्ष पूरे होने पर वहां आयोजित कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने 2025 को कांग्रेस के सशक्तीकरण का वर्ष बताया है, लेकिन मित्र दलों से उसके बढ़ते टकराव से तो गठबंधन में बिखराव की आशंका गहरा रही है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)