जिज्ञासा
जिज्ञासा का अर्थ है जानने की इच्छा। मनुष्य के अंदर जिज्ञासा आदिकाल से ही विद्यमान रही है। मनुष्य सदै
जिज्ञासा का अर्थ है जानने की इच्छा। मनुष्य के अंदर जिज्ञासा आदिकाल से ही विद्यमान रही है। मनुष्य सदैव से ही क्या, कौन और कैसे के उत्तर खोजने में लगा रहा है। सबसे पहले पहिए का आविष्कार हुआ था, जो जिज्ञासा का ही परिणाम था। मनुष्य में मुख्यत: दो प्रकार की जिज्ञासाएं होती हैं। पहली जिज्ञासा वह होती है जिससे भौतिक ज्ञान की अभिवृद्धि होती है। अंग्रेजी भाषा में एक कहावत है जिसका आशय है-जिज्ञासा ज्ञान की माता है। वास्तव में संसार में जितना भी ज्ञान और विज्ञान हमें दिखाई देता है उसके पीछे मनुष्य की जिज्ञासा की ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
जिज्ञासा के कारण विभिन्न प्रकार के विषयों का ज्ञान प्राप्त कर मनुष्य ने आदिम अवस्था से इतनी प्रगति की है। वह जगत के समस्त प्राणियों पर नियंत्रण करता है। दूसरे प्रकार की जिज्ञासा आत्मतत्व से संबंधित है। मनुष्य को आत्मा और परमात्मा के बारे में जानने की उत्कंठा ही आत्मज्ञान कहलाती है। मनुष्य को वेदों का ज्ञान सृष्टि के आरंभ में परमेश्वर ने स्वयं दिया है। ऋषियों ने अपनी जिज्ञासा के बल पर वेदों के ज्ञान के आधार पर दर्शनों की रचना की जिनमें ब्रह्मज्ञान और आत्मज्ञान की जिज्ञासा जताकर अनेक प्रकार से उसे शांत करने के प्रयास कर हम मनुष्यों का मार्गदर्शन किया है। इसी प्रकार षड्दर्शनों में भी जिज्ञासाओं का उल्लेख मिलता है। मीमांसा दर्शन का आरंभ 'अथातो धर्म जिज्ञासा' से हुआ है, जिसका भावार्थ यह है कि हम अभ्युदय और नि:श्रेयस के प्रतिपादक धर्म के मर्म को समझें। ब्रह्मसूत्र या वेदांत दर्शन का आरंभ ही 'अथातो ब्रह्मजिज्ञासा' से हुआ है, जिसका भावार्थ यह है कि जगत् की नश्वरता के बाद अनंत, अखंड, महान् ब्रह्म को जानने की जिज्ञासा होती है। मनुष्य को आत्मज्ञान हो जाए और वह ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर ले तो उसके बाद उसके लिए अन्य कुछ भी प्राप्त करना शेष नहीं रहता है और वह मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ़ कर प्रथम सोपान प्राप्त कर लेता है। इसलिए अपने अंतर्मन में जिज्ञासा रूपी ज्योति को जलाए रखिए। यह ज्योति आपके ज्ञान-विज्ञान का आधार बनेगी और अंत में यह बह्म जिज्ञासा की ओर ले जाएगी। जिज्ञासा की शक्ति अनंत है। यह किसी को भी नई ऊंचाइयों पर ले जा सकती है।
[कृष्णकांत वैदिक]
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