Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    शक्ति का महत्व

    By Edited By:
    Updated: Thu, 04 Dec 2014 04:45 AM (IST)

    भारत में शक्ति का महत्व आदिकाल से ही माना गया है। चाहे धर्म हो, अर्थ हो, काम हो और चाहे मोक्ष हो, इन

    भारत में शक्ति का महत्व आदिकाल से ही माना गया है। चाहे धर्म हो, अर्थ हो, काम हो और चाहे मोक्ष हो, इन चारों पुरुषार्थो की प्राप्त शक्ति के बिना संभव नहीं। शक्तिहीन पुरुष या राष्ट्र न अपनी न अपने सम्मान की रक्षा कर सकता है और न कोई उन्नति कर सकता है। कमजोरी के क्षणों में ही मनुष्य संयम खोता है, पाप करता है और असफल होकर संताप करता है। छांदोग्य उपनिषद के अनुसार जिस समय मनुष्य में बल होता है तभी वह कर्म करता है, दृष्टा और श्रोता होता है। बल से पृथ्वी, अंतरिक्ष, आकाश, पर्वत, देव और मनुष्य संचालित होते हैं। सौ विज्ञानवानों को एक बलवान कंपायमान कर देता है। इसलिए तुम बल की उपासना करो। एक अन्य उपनिषद के अनुसार बलहीन व प्रमादी व्यक्ति आत्मा का साक्षात्कार नहीं कर सकता।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पशुओं की भांति हमें भी कुछ शक्तियां स्वाभाविक रूप से प्राप्त हैं, परंतु मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक बल के बगैर उनसे अधिक लाभ नहीं होता। इसलिए व्यायाम द्वारा, अध्ययन व मनन द्वारा बौद्धिक व मानसिक और ध्यान के जरिये दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मिक बल का विकास कर मनुष्य दुर्लभ लौकिक और अलौकिक उपलब्धियां प्राप्त करता है। यह शक्ति सत्व, राजस और तामस तीन प्रकार की होती है। सत्व से ज्ञान, भक्ति, साधना, राजस से निर्माण और कर्म और तामस शक्ति से विध्वंस होता है। इसलिए हमें तामस शक्ति की आकांक्षा नहीं होनी चाहिए। शक्ति का सकारात्मक प्रयोग ही अच्छा होता है। शक्ति की साधना सर्वप्रथम हम ऋग्वेद की एक ऋचा में पाते हैं जिसमें शक्ति की अधिष्ठात्री देवी कहती हैं कि यह समस्त संसार उन्हीं से उत्पन्न और संचालित है। देश में वर्ष में दो नवरात्र शारदीय और बासंतिक दिनों में सभी शक्ति की ही उपासना करते हैं। भगवान राम ने भी युद्ध से पहले शक्ति की उपासना की थी। दुर्गासप्तशती के अनुसार देवता भी बार-बार शक्ति की ही शरण में जाते हैं। भारत भर में शक्ति के 51 पीठ हमें शक्ति की ही महत्ता की याद दिलाते हैं, परंतु एक दौर में हम शक्ति के महत्व को भूल गए थे, जिसके कारण हम अपना गौरव और ज्ञान-विज्ञान खोकर गुलाम हुए। हम सब मिलकर शक्ति की साधना करें, स्वयं और राष्ट्र को शक्तिशाली बनाएं।

    [रामकुमार शुक्ल]